BHU के वैज्ञानिकों ने खोज लिया किडनी की लाइलाज बीमारी का कारण, जीनोम वैरिएंट्स की पहचान ये होगा फायदा
बीएचयू के शोधार्थियों ने पालीसिस्टिक किडनी रोग (पीकेडी) के 35% नए जीनोम वैरिएंट्स की पहचान की है। यह खोज रोग की आनुवंशिक समझ और भविष्य के उपचार में बड़ी सफलता साबित होगी।
BHU PKD genetic research breakthrough
Identification of 95 DNA variants PKD
Polycystic kidney disease genome study BHU
New PKD variants improve transplant success
Genetic basis of PKD treatment discovery
वाराणसी स्थित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के आनुवंशिक विकार केंद्र के वैज्ञानिकों ने पालीसिस्टिक किडनी रोग (पीकेडी) पर महत्वपूर्ण शोध कर चिकित्सा जगत में नई उम्मीद जगाई है। प्रो. परिमल दास और उनकी टीम ने इस रोग से जुड़े 35 प्रतिशत नए जीनोम वैरिएंट्स की पहचान की है। यह खोज न केवल रोग की जटिलताओं को समझने में मदद करेगी बल्कि भविष्य में इसके उपचार के लिए नई दिशा भी प्रदान करेगी।
पीकेडी और इसके खतरे
पालीसिस्टिक किडनी रोग एक गंभीर आनुवंशिक बीमारी है जिसमें किडनी में तरल पदार्थ से भरे कई सिस्ट विकसित हो जाते हैं। धीरे-धीरे किडनी का आकार बढ़ जाता है और उसकी कार्यक्षमता घटने लगती है। अंततः यह रोग किडनी फेल होने का कारण बन सकता है। विश्व स्तर पर किडनी फेल होने के लगभग पांच प्रतिशत मामले पीकेडी से जुड़े होते हैं। यह रोग पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करता है, लेकिन इसके लक्षण अक्सर 30 से 40 वर्ष की आयु तक स्पष्ट नहीं होते।
95 डीएनए वैरिएंट्स की पहचान
बीएचयू की टीम ने पीकेडी-1 और पीकेडी-2 जीन में कुल 95 डीएनए वैरिएंट्स की पहचान की है। इनमें से 67 वैरिएंट्स पीकेडी-1 जीन में और 29 वैरिएंट्स पीकेडी-2 जीन में पाए गए। इनमें से 64 प्रतिशत वैरिएंट्स पहले रिपोर्ट किए जा चुके थे, जबकि शेष नए वैरिएंट्स इस शोध में सामने आए हैं। इन नए वैरिएंट्स से रोग के आनुवंशिक पूर्वाग्रहों को बेहतर तरीके से परिभाषित किया जा सकेगा।
किडनी प्रत्यारोपण में मदद
शोधकर्ताओं का मानना है कि नए डीएनए वैरिएंट्स की पहचान से आनुवंशिक रूप से संगत किडनी दाता खोजने में मदद मिलेगी। इससे किडनी प्रत्यारोपण के दौरान बेहतर मिलान संभव होगा, जिससे सर्जरी की सफलता दर बढ़ेगी और अस्वीकृति का जोखिम कम होगा। जिन परिवारों में पीकेडी का इतिहास है, वहां बच्चों और युवाओं में रोग की शुरुआत से पहले ही जोखिम का आकलन किया जा सकेगा।
व्यक्तिगत उपचार की दिशा
बीएचयू का यह शोध भविष्य में पीकेडी के लिए सटीक और व्यक्तिगत उपचार विकसित करने का मार्ग प्रशस्त करेगा। अन्य जीनों की भी पहचान की जा रही है जो रोग की शुरुआत और प्रगति के लिए जिम्मेदार हैं। इस शोध को विश्व के दो प्रतिष्ठित जर्नल—एल्सेवियर और टर्किश जर्नल ऑफ नेफ्रोलॉजी—में प्रकाशित किया गया है।
जीवनशैली प्रबंधन
- विशेषज्ञों का कहना है कि पीकेडी से पीड़ित लोगों को जीवनशैली में बदलाव करना जरूरी है।
- दिनभर में तीन से चार लीटर पानी पीएं।
- कैफीन युक्त पेय पदार्थों से बचें।
- हाई ब्लड प्रेशर नियंत्रित रखें और संक्रमण का तुरंत इलाज कराएं।
- नियमित व्यायाम करें लेकिन किडनी को नुकसान पहुंचाने वाले खेलों से बचें।
- धूम्रपान छोड़ें और नमक का सेवन कम करें।
- बीएचयू के शोध ने पालीसिस्टिक किडनी रोग के उपचार की दिशा में नई आशा जगाई है। आनुवंशिक स्तर पर मिली यह जानकारी आने वाले समय में लाखों मरीजों के जीवन को बेहतर बनाने में सहायक होगी।