कल अक़ीदत के साथ मनाया जाएगा ईद ए मिलाद उन नबी का पर्व, जानिए इस दिन का इतिहास और रिवाज़ 
 

इस दिन हरे रंग के घागे बांधने या कपड़े पहनने का भी रिवाज़ है। हरे रंग का इस्लाम में बहुत महत्व होता है। इसके साथ ही इस दिन पारंपरिक खाने बनाए जाते हैं और गरीबों में बांटे जाते हैं।
 


चन्दौली जिले में ईद ए मिलाद उन नबी रविवार को सुबह से लेकर रात तक बड़ी अक़ीदत के साथ मनाया जाएगा। इस दिन ही इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद का जन्म हुआ था, और इसी दिन उनका इंतकाल(मृत्यु) भी हुआ था। इसलिए इस दिन को बारावफात के नाम से भी जाना जाता है।


आपको बता दें कि ईद ए मिलाद के दिन इस्लाम के मानने वाले मस्जिदों में नमाज अता करते हैं और हजरत मुहम्मद की शिक्षाओं और उपदेशों को अमल लाने का संकल्प लेते हैं। इस दिन हरे रंग के घागे बांधने या कपड़े पहनने का भी रिवाज़ है। हरे रंग का इस्लाम में बहुत महत्व होता है। इसके साथ ही इस दिन पारंपरिक खाने बनाए जाते हैं और गरीबों में बांटे जाते हैं। शिया और सुन्नी समुदाय के लोग इस दिन जुलूस भी निकालते हैं और हजरत मुहम्मद की शिक्षाओं को तख्तियों पर लिख कर सारी दुनिया को उससे रूबरू कराते हैं।


 मौलाना मंसूर आलम नोमानी ने बताया कि यह दिन इस्लाम मजहब का एक महत्वपूर्ण दिन है। हजरत मुहम्मद का जन्म 13 अप्रैल 570 ईस्वी में हुआ था और 8 जून 632 इस्वी में वफात हुआ। इस्लामी मान्यता के मुताबिक रबी  अल अव्वल की 12 तारीख को इ दए मिलाद का पर्व मनया जाता है। लेकिन सबसे पहले ईद ए मिलाद का पर्व मिश्र में मनाना शुरू हुआ था। फिर 11 वीं शताब्दी तक आते-आते पूरी दुनिया के मुसलमान इसे मनाने लगे।