चंदौली की इस सड़क पर तेजी से दौड़ता है 'विकास', 700 मीटर में तय होती है 4 किमी की दूरी

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत To6 से पुरवा वाया चकिया के लिए बनी 7 किलोमीटर लंबी सड़क पर जब जाएं तो सरकारी ठेकेदारों के द्वारा लगाए किलोमीटर वाले माइलस्टोन वाले पत्थर की जानकारी पर भरोसा न करें।
 

सड़क बनाने वाले ठेकेदारों की करतूत

अधिकारी भी नहीं देखते काम की गुणवत्ता

कमीशनखोर अफसरों की मौके पर न जाने का नमूना

उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में लापरवाह व बेपरवाह अफसरों और ठेकेदारों की मेहरबानी से विकास इतनी स्पीड से दौड़ता है कि आप सड़कों के किनारे लगाए गए किलोमीटर के पत्थर देख दंग रह जाएंगे। गांव की वास्तविक दूरी चाहे कितनी भी हो लेकिन सड़क के किनारे लगने वाले पत्थर पर वह कुछ और होती है। इससे गांव के लोग दुविधा में हो जा रहे हैं तो वहीं बाहर से आने वाले लोगों के लिए परेशानी खड़ी हो रही है।

चंदौली जिले की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत To6 से पुरवा वाया चकिया के लिए बनी 7 किलोमीटर लंबी सड़क पर जब जाएं तो सरकारी ठेकेदारों के द्वारा लगाए किलोमीटर वाले माइलस्टोन वाले पत्थर की जानकारी पर भरोसा न करें। इस पर न सिर्फ गांव का नाम गलत मिलेगा, बल्कि दूरी भी गलत लिखी मिलेगी। 

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1 करोड़ 98 लाख की भारी भरकम लागत से बनी इस सड़क को श्यामधर इंटरप्राइजेज हुकुलगंज वाराणसी के द्वारा बनाया गया है। 7 किलोमीटर इस सड़क का काम एक साल में पूरा होना था पर वह पहले ही पूरा कर लिया, लेकिन मौके पर काम की मॉनिटरिंग न होने व स्थानीय लोगों से मदद न लिए जाने के कारण किलोमीटर के पत्थर पर जसुरी गांव का नाम जसरी दर्ज हो गया है तथा दूसरी 4 किलोमीटर की जगह 7 किलोमीटर लिख दी गयी है।

मौके पर अगर जाकर इसे देखा जाय तो पता चलता है कि कटसिला के ठीक सामने नहर पर जसरी (जसुरी) को 7 किलोमीटर दर्शाया गया है वहां से ठीक 700 मीटर आगे जाने पर जसुरी मात्र 3 किलोमीटर हो जाता है, यानी कि 700 मीटर की दूरी 4 किलोमीटर घटा देती है। इस जानकारी से आने जाने वाले लोग भौचक्का हो जाते हैं और सोचने को मजबूर हैं कि 700 मीटर चलकर कैसे 3 किलोमीटर दूरी कम हो जाती है। क्या वाकई जिले में विकास की रफ्तार इतनी तेज है।

गाव के लोगों का कहना है कि इस नहर पर गांव का नाम भी काफी अशुद्ध लिखा गया है, जिस पर चलने वाले राहगीरों को काफी असुविधा का सामना करना पड़ता है।

गांव के लोगों का कहना है कि जब सड़कों को बनाने या पूर्ण करने पर भुगतान करने की बात आती है तो कोई अधिकारी मौके पर नहीं जाता है। अगर किसी अधिकारी या इंजीनियर की गाड़ी इस सड़क पर जाती तो ऐसी गड़बड़ी पर नजर जरूर पड़ती।  ठेकेदारों के हाथों की कठपुतली बने व पहले से फिक्स कमीशन पाने के बाद अफसर व विभागीय कर्मचारी मौके पर जाकर पसीना बहाने की जहमत नहीं उठाते हैं। कभी कभार कोई शिकायत मिल भी गयी तो देखने व जांच कराने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं।