कार्यकर्ता बोला- '...अगर ऐसा न होता तो बड़ी आसानी से चुनाव जीत जाते ओपी भइया'  
 

चंदौली समाचार ने भारतीय जनता पार्टी के लोगों से इस हार का कारण जानने की कोशिश की तो पार्टी के लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पार्टी उम्मीदवार घोषित करने से लेकर मतदान संपन्न होने तक ओपी भइया कुछ ऐसे लोगों के हाथ का खिलौना बन कर रह गए
 

चंदौली समाचार ने टटोला कार्यकर्ताओं की नब्ज

हार-जीत की चर्चाओं में दिखी नाराजगी

जानिए चंदौली नगर पंचायत में हार के कारण

हर किसी ने ओपी की दमदारी को सराहा


 चंदौली नगर पंचायत क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में ओम प्रकाश सिंह उर्फ ओपी सिंह का जब टिकट फाइनल हुआ था, तो भारतीय जनता पार्टी के अंदर तमाम तरह के रिएक्शन शुरू हो गए थे। कुछ लोग बाहरी तो कुछ लोग व्यापारी न होने का आरोप लगाकर उनके खिलाफ दुष्प्रचार शुरू किया, लेकिन इन सबके बावजूद ओम प्रकाश सिंह उर्फ ओपी सिंह ने सब कुछ झोंक कर चुनाव लड़ा और जीत के लिए जी-जान से मेहनत की लेकिन पार्टी की कुछ खामियों के कारण जीत हाथ से फिसल गयी। यह चुनाव लड़ने वाले नेताओं के साथ साथ पार्टी के लिए सबक जैसा है।

जैसे ही ओम प्रकाश सिंह उर्फ ओपी सिंह को टिकट मिला तो भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष और स्थानीय पदाधिकारियों के नेतृत्व में चुनाव को सकुशल संपन्न कराने के लिए जिला पंचायत सदस्य व मंडल अध्यक्ष जैसे नेता दिलीप सोनकर और भाजपा के जिला महामंत्री जितेंद्र पांडेय की अगुवाई में ओमप्रकाश सिंह का पूरा चुनाव प्रचार और चुनावी कार्यक्रमों का संचालन किया जाने लगा। चुनाव में नामांकन से लेकर मतदान के बीच पार्टी के अंदर कुछ ऐसी बातें हुई जिसके चलते ओमप्रकाश सिंह कांटेदार मुकाबले में निर्दलीय प्रत्याशी से चुनाव हार गए। हालांकि निर्दलीय प्रत्याशी सुनील यादव को पर्दे के पीछे से समाजवादी पार्टी तथा अन्य बिरादरी के लोगों का समर्थन हासिल था। इसलिए वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भारतीय जनता पार्टी के सारे चक्रव्यूह को भेजकर जीतने में सफल रहे।

 चंदौली समाचार ने भारतीय जनता पार्टी के लोगों से इस हार का कारण जानने की कोशिश की तो पार्टी के लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पार्टी उम्मीदवार घोषित करने से लेकर मतदान संपन्न होने तक ओपी भइया कुछ ऐसे लोगों के हाथ का खिलौना बन कर रह गए, जिनको अगर खुद चुनाव मैदान में उतार दिया जाए तो वह अपने गांव की ना तो प्रधानी जीत सकते हैं और ना ही अपने इलाके में वार्ड मेंबर बन सकते हैं। इतना ही नहीं ऐसे लोग पूरे चुनाव का मैनेजमेंट करते रहे, जिनको पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और पुराने कार्यकर्ताओं से परहेज था। वह केवल नए लोगों पर भरोसा करते रहे।

एक वोट दिया, किसी का दिलवा नहीं सका
 भारतीय जनता पार्टी के एक सक्रिय कार्यकर्ता ने कहा कि भाजपा के नेता उसके पास केवल वोट मांगने के लिए आए थे और किसी नेता ने कभी उसे यह नहीं कहा कि उसे अपना वोट देने के साथ-साथ पार्टी के लिए काम करना है। ऐसी स्थिति में उसने अपना वोट पार्टी को दे दिया लेकिन कभी भी खुलकर सक्रिय रूप से प्रचार नहीं किया। अगर वह प्रचार करता तो कम से कम 20 से 25 वोट जरूर भारतीय जनता पार्टी की झोली में डाल सकता था। उसके जैसे केवल 10 से 15 कार्यकर्ता लग गए होते तो ओपी चुनाव कभी नहीं हारते।

केवल मांगा था वोट, तो दे दिया
एक भाजपा के पुराने नेता व कार्यकर्ता ने कहा कि चुनाव के मौसम में कार्यकर्ताओं की पूछ होती है।चुनाव जीतने के बाद कार्यकर्ताओं को पदाधिकारी व वरिष्ठ नेता वैसे भी हासिए पर भेज देते हैं। लेकिन हम लोगों को अबकी बार चुनाव में भी नहीं पूछा गया। ओपी सिंह हाथ जोड़कर वोट मांगने आए थे, तो हमने अपना वोट दे दिया। मेरे घर परिवार के लोगों ने क्या किया उसकी गारंटी मैं कैसे ले सकता हूं।  उसने ऐसा न करने के पीछे अपनी मजबूरी भी बतायी और कहा कि उसने एक बार भाजपा के पदाधिकारियों से बात करके अपना पक्ष रखने की कोशिश की थी, तो कार्यालय के लोगों ने झटक दिया था। ऐसे में घर परिवार के लोग पार्टी के पदाधिकारियों के व्यवहार को भूल नहीं पाए हैं।वहां किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं देना मुनासिब नहीं समझा था। ऐसे में हमारे जैसा पार्टी का कार्यकर्ता योगी-मोदी के नाम पर पार्टी को वोट भले दे दे, चुनाव प्रचार में कभी सक्रिय नहीं होता है।

पूर्व सभासदों के किया था किनारा
 एक अन्य पदाधिकारी और पूर्व सभासद ने कहा कि उसका उसके वार्ड में अच्छा खासा प्रभाव है और वह लोगों के सुख दुख में शामिल भी होता है, लेकिन उसके वार्ड का चुनाव लड़ रहे सभासद और भाजपा के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी ने कभी उसे न तो चुनावी रणनीति का हिस्सा बनाया और ना ही अपने चुनाव प्रचार में उसको साथ लेकर गए। ऐसे में पार्टी के पदाधिकारी और पूर्व सभासद के रूप में उसकी अपने आप सक्रियता का कोई मतलब नहीं रह जाता है। अगर पार्टी के उम्मीदवार को उसकी जरूरत नहीं है और पार्टी संगठन उसकी महत्ता को नहीं समझता है, तो वह जबरन चुनाव प्रचार में किसके लिए दौड़ेगा। 

हमेशा योगी-मोदी के नाम पर नहीं मिलता वोट
 भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि ओमप्रकाश सिंह टिकट पाने के बाद से ही सांसद व विधायकों की तरह खुद को विजेता उम्मीदवार मान चुके थे। वह सोच रहे थे कि लोग योगी-मोदी और सांसद-विधायक के नाम पर उनको भी वोट देंगे, लेकिन जब वह चुनाव प्रचार में निकले तो उन्हें अपनी जमीनी हकीकत का एहसास हुआ। इसके बाद वह कुछ लोगों के हाथ की कठपुतली बन कर रह गए, जिससे वह दिल खोलकर पैसा खर्चा करने के बाद भी जीत हासिल नहीं कर पाए।

 

मिसमैनेजमेंट और संगठन की खामी
एक भाजपा नेता ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी का कोई और कैंडिडेट चुनाव लड़ता तो इतना खर्चा कभी नहीं कर पाता, जितना ओमप्रकाश सिंह ने किया। ओमप्रकाश सिंह पार्टी के मिसमैनेजमेंट और संगठन की बड़ी खामी की वजह से चुनाव हार गए हैं। ओपी सिंह ने जितनी मेहनत की वह काबिलेतरीफ है, तभी वह चुनाव में टक्कर दे पाए। अगर पार्टी के लोगों के भरोसे रहते तो चौथे नंबर पर चले जाते, क्योंकि जिस तरह का खेल नगर पंचायत के वोटों को अपने फेवर में करने के लिए खेला जा रहा था, उसमें ओपी सारे उम्मीदवारों पर भारी दिख रहे थे।

चंदौली के लोकल मुद्दे पर किसी नेता के पास कोई जवाब नहीं था। लोग ट्रेन न रुकने व पिलर पर बनने वाले पुल के रद्द होने और रेलवे ओवर ब्रिज के मामले को भी लेकर नाराज थे, जिसका बदला वह नगर पंचायत के उम्मीदवार से ले लिए। उन्हें यह नहीं मालूम था कि यह काम सांसद व विधायक है। नगर पंचायत का उम्मीदवार केवल नगर पंचायत में अच्छा काम कर ले..यही बहुत है।