केज विधि से मछली पालन का सपना रहा अधूरा, सरकार नहीं दे रही है बजट, 193 मत्स्य पालक कर रहे इंतजार
चंद्रप्रभा, नौगढ़, मुसाखाड़ जलाशयों को इंतजार
माता सुकेता योजना का मिलना है लाभ
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चंदौली जिले के चंद्रप्रभा, नौगढ़, मुसाखाड़ जलाशयों में पहली बार केज विधि से मछली पालन की योजना बजट के अभाव में अटक गई है। योजना के तहत जिले के 193 मत्स्य पालकों का चयन भी कर लिया गया है। लेकिन साल बीत गया योजना का लाभ एक भी मत्स्य पालक को नहीं मिल पाया।
इस योजना के तहत तीन लाख रुपये की लागत से एक केज की स्थापना की योजना है, जिसमें 60 प्रतिशत का अनुदान देने का प्राविधान किया गया है।
आपको बता दें कि पिछले साल मत्स्य विभाग की ओर से माता सुकेता योजना के तहत महिला सशक्तिकरण तीन लाख रुपये की जलाशयों में केज विधि के लिए लागत से से मछली पालने के लिए कुल 196 आवेदन प्राप्त हुए थे। इनमें तीन आवेदन निरस्त हो गए थे, जबकि 193 को स्वीकृत कर लिया गया। लेकिन बजट के अभाव में अभी तक एक भी केज स्थापित नहीं किया जा सका है। योजना के तहत 60 प्रतिशत अनुदान का प्रावधान है।
जिले में अंतरराष्ट्रीय स्तर की मछली मंडी के निर्माण को देखते हुए मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चल रही हैं। इनमें से एक माता सुकेता जो जलाशयों के आसपास रहने वाली महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के लिए योजना शुरू की गई है।
केज कल्चर या पिंजरा मछली पालन, मछलियों को पिंजरे में पालने की एक खास तकनीक है। इस तकनीक से मछलियों को अंगुली के आकार से लेकर एक किलो भार तक पाला जाता है। पिंजरे में मछलियों को पालने से उनका विकास अच्छा होता है और कम दिनों में ही मछलियां बड़ी हो जाती हैं। इससे मछली पालन करने वाले किसानों को अच्छा मुनाफा होता है ।
केज कल्चर में, मछलियों को तैरते हुए से लटकाए गए तार या फाइबर जाल से बने पिंजरों में सीमित रखा जाता है। पिंजरों का आकार एक से तीन मीटर तक होता है। पिंजरों को नदियों, झीलों और जलाशयों में लंगर के सहारे सुरक्षित किया जाता है।
इस संबंध में मत्स्य सहायक निदेशक रविंद्र प्रसाद ने बताया कि केज विधि जिले में मछली पालन के लिए माता सुकेता योजना के तहत 196 में से 193 मछली पालकों का चयन किया गया है लेकिन बजट के अभाव में किसी लाभ नहीं मिल पाया है।