'ड्रग एडिक्शन' मानवता के सबसे बड़े दुश्मनों में से एक : डॉ प्रदीप चौरसिया
नशे से बचना है जरुरी
हर साल जागरूकता के लिए मनाया जाता है ये दिन
जानिए क्या करें और क्या नहीं
अंतरराष्ट्रीय मादक पदार्थ सेवन निरोध दिवस प्रत्येक वर्ष 26 जून को वैश्विक स्तर पे मनाया जाता है। 7 दिसम्बर 1987 को यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली में रेजोल्यूशन पास करके इसकी शुरुआत हुई। रेजोल्यूशन का नाम कुछ इस प्रकार है: इंटरनेशनल डे अगेंस्ट ड्रग एब्यूज एंड इल्लिसिट ट्रैफिकिंग। इस वर्ष की थीम है- "पीपल फर्स्ट: स्टॉप स्टिग्मा एंड डिस्क्रिमिनेशन, स्ट्रेनगथेन, प्रिवेंशन।" इस दिन को मनाने का उद्देश्य है कि दुनियाभर में लोगों को मादक पदार्थों के सेवन से होने वाले नुकसानों से अवगत कराया जाय; उन्हें सेवन से रोका जाय; ड्रग माफिया के व्यवसाय को ध्वस्त किया जाय।
मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए अगर सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन है तो ड्रग एडिक्शन भी कम बड़ा खतरा नही है। आज करोङों लोग इस नशे का शिकार हैं। खरबों रुपयों का काला बाजार चल रहा है। इन पैसों से दुनियाभर में अराजकता को बढ़ावा मिलता है।
क्या है यह नशा?
आप इसे सिगरेट, शराब और तम्बाकू के नशे की तरह ही समझ लीजिए। बस ग्रेड थोड़ा ऊपर हो जाता है। प्रतिबंधित ड्रग का नशा दिमाग को सामान्य नशाख़ोरी से कहीं ज्यादा प्रभावित करता है। ड्रग एडिक्ट हमेशा भ्रमित, तनावग्रस्त, अपनी दुनिया मे मगन और असन्तुलित शारीरिक हरकतों में उलझा रहता है।
इस नशे के शिकार आपको महानगरों में ज्यादा मिलते हैं। यह नशा महंगा और कठिनाई से मिलने वाला होता है। इसके कुछ प्रकार हैं-चरस,गांजा, अफ़ीम, कोकीन, एक्सटेसी, एलएसडी इत्यादि। इनमें से चरस और गांजा सर्वसुलभ और तुलनात्मक रूप से सस्ता है। वहीं कोकीन, अफ़ीम, एलएसडी और एक्सटेसी बेहद महंगे और जटिलता से मिलने वाले हैं।
कैसे लगती है लत?
इसके पीछे एक बहुत बड़ा बिज़नेस मॉडल काम करता है। कई देश की अर्थव्यवस्थाएं इनके व्यापार से मिलने वाले रेवेन्यू से ही चलती हैं। बेहद प्रतियोगी दुनिया में जीवन का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। खासकर युवा लोग पर्सनल लाइफ/पब्लिक लाइफ/फैमिली का बैलेंस नही खोज पा रहे हैं। तमाम नकारात्मकताओं के बीच उनकी उलझती मनःस्थिति उन्हें तनाव/अवसाद/अनिद्रा का शिकार बना देती है। ऐसी ही स्थिति में उन्हें भ्रमित करके इस नशे के दलदल में फांस लिया जाता है।
एकबार के सेवन से इन्हें आराम का भ्रम उत्पन्न होता है फिर लगातार सेवन से दिमागी रसायनों में बदलाव होने लगता है। यह तथाकथित दवा उनके जीवन के लिए जहर बन जाती है।
तरीका क्या होता है?
पाऊडर को नाक के जरिए सुड़कना; पानी में मिलाकर लेना; मसूड़ों पे रगड़ना; पेपर को लपेटकर जलाकर पीना; टेबलेट और ड्रॉप्स के रूप में लेना; इंजेक्शन के रूप में इस्तेमाल इत्यादि तरीके हैं मादक पदार्थों की नशाख़ोरी के।
रोकथाम के उपाय क्या हैं?
बच्चों और युवाओं को शिक्षित करना; व्यापक स्तर पे जागरूकता अभियान चलाना; एडिक्ट को मनोचिकित्सक की निगरानी में नशा निवारण केंद्र भेजना; सख़्त कानून बनाकर इनके निर्माण, व्यापार, संग्रहण और सेवन को प्रतिबंधित करना।
चीन के ग्वांग्झू प्रान्त से अफ़ीम के व्यापार को ख़त्म करने में मुख्य भूमिका निभाने वाले लिन जेयू के सम्मान में पूरी दुनिया संगठित होकर मानवता के इस दुश्मन से लड़ रही है। आंशिक सफ़लता के बीच चुनौतियां बहुत बड़ी हैं। इस मामले में भारत बहुत संवेदनशील स्थिति में है। देश के उत्तर पश्चिम सीमा पे ईरान-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान का त्रिकोण है जो लगातार नशे के व्यापार को बढ़ा रहा है। वहीं दक्षिण पूर्वी सीमा पे म्यामार के रास्ते यह जहर देश में फैल रहा है। भारत सरकार ने एनडीपीएस एक्ट, 1985 के अंतर्गत इसके रोकथाम के सारे उपाय कर रखे हैं। प्रतिबंधित ड्रग्स का सेवन, संग्रहण, व्यापार और उत्पादन हमारे देश में दंडनीय अपराध है।
सनद रहे, यह नशा भी एक मानसिक बीमारी है। बीमार का इलाज जरूरी है। कई लोग इस लत से बाहर निकलकर बेहतर जीवन जी रहे हैं। हमें मिलकर इस दुश्मन से लड़ना है और दुनिया को बचाना है।