शिक्षक दिवस विशेष : मुर्गा बनने के दंड से मिली एक खास सीख, आज भी होता है उसका फायदा 
 

 

आज शिक्षक दिवस है। अपने गुरु जी को याद करने का यह सबसे बेहतरीन दिन होता है। आपके पास यह मौका होता है कि इस दिन आप चाहे तो अपने गुरु की कोई खास चीज गिफ्ट करके याद करें या बात करके उनका आशीर्वाद ले लें। या फिर उनकी कोई बात याद करके उनको नमन कर सकते हो जिसकी वजह से आपकी जिंदगी बदल गई हो।

आज एक ऐसी ही घटना आज मैं आप लोगों के साथ शेयर कर रहा हूं, जिसने मेरा जीवन बदल दिया था और उसी की वजह से आज मैं अपना काम नियमित तरीके से करने में सफल होता हूं और जीवन में लगातार आगे बढ़ने की कोशिश करता जा रहा हूं।

 हम ऐसे बहुत सारे लोग ऐसे होंगे जो होमवर्क पूरा न करने पर टीचर से डांट खाए होंगे या अपने गुरु की जी के द्वारा मार भी खाई होगी, लेकिन उससे उनके जीवन में कितना फर्क पड़ा है.. वह तो वही जानते हैं। गुरु जी के द्वारा दिया गया एक छोटा या बड़ा दंड जीवन में कितना फर्क लाता है, यह उस दंड पाने वाले के ऊपर भी निर्भर करता है। 

बात उन दिनों की है जब मैं 13-14 साल था। कक्षा 9 की परीक्षा पास करके 10वीं की पढ़ायी कर रहा था। कक्षा 10 में नंबर अच्छे आएं और प्रथम श्रेणी में पास हो जाऊं यह मेरी इच्छा के साथ साथ घर परिवार वालों की इच्छा थी। उससे ज्यादा की सोच उस जमाने में नहीं थी। पर हमारे गुरुजी की इच्छा यह थी कि उनका यह शिष्य प्रथम श्रेणी में पास हो बल्कि पूरे विद्यालय में सर्वाधिक नंबर लाए। हमारे गुरु जी ऐसा क्यों सोचते थे यह बात मुझे पता नहीं है, लेकिन उनके द्वारा जिस तरह से मुझे समझाया-बुझाया या बताया जाता था ऐसा मुझे लगता है कि उनका स्नेह अन्य बच्चों से मेरे ऊपर अधिक है। इसलिए वह मुझे इस तरह से कहा करते थे। 

घटना एक दिन की है जब मैंने अपना होमवर्क पूरा नहीं किया और स्कूल चला गया। सबेरे जब गुरु जी कक्षा में आए तो उन्होंने होमवर्क की कॉपी चेक करने के लिए सारे बच्चों को निर्देश दिया। सारे बच्चे अपनी अपनी होमवर्क की कॉपी को निकाल कर दिखाने के लिए तैयार हो गए, चूंकि मैंने होमवर्क किया ही नहीं था, तो मुझे समझ में ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं। आज गुरु जी के हाथ में डंडा भी था। वह अन्य दिनों की अपेक्षा वह गुस्से में भी थे। ऐसे में वह क्या करेंगे यह किसी को नहीं मालूम।

सबकी कॉपी चेक हुई। हमने से केवल 3 छात्र ऐसे थे, जिन्होंने होमवर्क पूरा नहीं किया था। हम तीनों छात्रों को गुरु जी ने बारी-बारी से अपने पास बुलाया और उनमें से दो की बातें सुनने के बाद उनको अपने स्थान पर बैठ जाने के लिए कहा। पर मेरे को सबसे अंत में अपनी बात रखने का मौका मिला। तब तक गुरुजी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। उन्होंने पूछा कि आखिर होमवर्क क्यों नहीं किया तो मैंने रात में जल्दी सो जाना और सुबह देर से उठने का कारण बता दिया। उस समय गांव में लाइट न होने की वजह से हम लोग जल्दी सो जाया करते थे और सुबह जब सूरज की रोशनी निकलती थी तभी सो कर उठा करते थे। 8 से 10 घंटे की नींद बड़ी चैन वाली मानी जाती थी। यह बात मैंने जैसे ही बताई उन्होंने अपने डंडे से चार डंडे धड़ाधड़ जड़ दिये। मैं दर्द से रोने लगा फिर उन्होंने मुर्गा बनने की सजा दे दी और कहा कि जब तक क्लास चलेगी तब तक मुर्गा बन कर रहना है। जैसे ही मैं मुर्गा बना उन्होंने मुर्गा बनने की कहानी सुनाई।

इसके बाद वह मुर्गे की तारीफ में कई बातें बताकर क्लास का मनोरंजन करने लगे। मुर्गा बनते देख मेरे सहपाठी हस रहे थे। गुरूजी मुर्गे के बारे में बता रहे थे... मुर्गा सुबह सबको बाग देकर जगाता है और मुर्गा अपने समय पर ही कुकड़ू-कू.. कुकड़ू-कू करता है। ताकि लोग उठ जाएं। अब लगता है कि उस जमाने में जब हर हाथ व हर घर में घड़ी नहीं होती थी तो मुर्गा ही हमारा एलार्म होता था। शायद गुरु जी ने इसीलिए मुर्गे की आवाज बोलने और बाग लगाने की सजा दी।

 उस दिन के बाद से मुझे सबेरे जागने का मन बनाया और धीरे धीरे वह मेरी आदत बन गयी। रात में जो कार्य हम नहीं कर पाते थे। वह स्कूल जाने के पहले करने लगे। सबेरे उठने की आदत से हमारे पास काम करने के लिए दो से ढाई घंटे मिलने लगे। वह आदत आज भी बड़े काम की है और अक्सर में अपने जरूरी काम सबेरे उठकर निपटा लिया करता हूं। इस घटना ने मुझे सुबह उठने के साथ-साथ समय के सदुपयोग की भी बात सिखाई, जो शायद कोई और नहीं सिखा पाया। मुझे उस समय हो सकता है गुरु जी के द्वारा दी गई सजा का मलाल रहा हो, पर उससे जो आदत बनी वह पूरी जिंदगी काम की है। ऐसे गुरु को मैं नमन करता हूं।

.....अखिलेश कुमार की कलम से