14 नवंबर को नींद से जागेंगे श्रीविष्णु, जानिए महत्व, पूजा विधि और मंत्र
 

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी है। इस वर्ष देवउठनी एकादशी 14 नवंबर, रविवार को है। मान्यता है इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु चार माह की निद्रा से जागते हैं।
 

14 नवंबर को देवउठनी एकादशी

नींद से जागेंगे भगवान विष्णु 

जानिए महत्व, पूजा विधि और मंत्र

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी है। इस वर्ष देवउठनी एकादशी 14 नवंबर, रविवार को है। मान्यता है इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु चार माह की निद्रा से जागते हैं। जब भगवान विष्णु नींद से जागते हैं तो उसे देबप्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी कहा जाता है।


 इस दिन से मांगलिक कार्यों की शुरूआत भी होती है। देवउठनी एकादशी पर तुलसी और भगवान विष्णु के विग्रह स्वरूप शालिग्राम के विवाह का परंपरा है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है।


देवउठनी एकादशी का महत्व


पुराणों की मान्यता है कि देवता भी एक नियत समय पर सोते और जागते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु साल के चार माह शेषनाग की शैय्या पर सोने के लिये क्षीरसागर में शयन करते हैं तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को वे उठ जाते हैं। इसलिए इसे देवोत्थान, देवउठनी या देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। 


भगवान विष्णु के उठ जाने के बाद अन्य देवता भी निद्रा त्यागते हैं। आम भाषा में देखा जाए तो देवप्रबोधनी का अर्थ है स्वयं में देवत्व जगाना। प्रबोधिनी एकादशी का तात्पर्य है कि व्यक्ति अब उठकर कर्म-धर्म के रूप में देवता का स्वागत करें। इस एकादशी का का मूल भाव यह है कि हम किसी को कष्ट न पहुंचाएं, ईर्ष्या-द्वेष के भाव न रखें। यह दृढ़ संकल्प अपने मन में जगाना ही प्रबोधिनी है।


पूजा विधि 


आइए जानते हैं कि भगवान विष्णु की देवठान एकादशी के दिन पूजा किस विधि से करना चाहिए। 


1. देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य, फूल, गंध, चंदन, फल और अर्घ्य आदि अर्पित करें।
2. भगवान की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्य यंत्रों के साथ निम्न मंत्रों का जाप करें- 


उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते।त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे।
हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।


3. इसके बाद भगवान की आरती करें और फूल अर्पण करके निम्न मंत्रों से प्रार्थना करें-


इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।।


4. इसके बाद प्रहलाद, नारदजी, परशुराम, पुण्डरीक, व्यास, अंबरीष, शुक, शौनक और भीष्म आदि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत और प्रसाद का वितरण करें।