4 दिसंबर को शनि अमावस्या, शनिदेव की कृपा पाने के लिए पीपल के वृक्ष का करें पूजन
 

इस वर्ष मार्गशीर्ष अमावस्या 4 दिसंबर, शनिवार को पड़ रही है। इस दिन शनिदेव की पूजा करने से प्राणी को कष्टों से मुक्ति मिलती है। नवग्रहों में शनि को न्यायाधिपति माना गया है, वे मनुष्यों को उनके कर्मानुसार फल प्रदान करते हैं। अच्छे कर्म करने वालों को अच्छा और बुरे कर्म करने वालों को बुरा फल देते हैं। 

 

4 दिसंबर शनि अमावस्या

शनिदेव की कृपा पाने के लिए पीपल के वृक्ष का करें पूजन

इस वर्ष मार्गशीर्ष अमावस्या 4 दिसंबर, शनिवार को पड़ रही है। इस दिन शनिदेव की पूजा करने से प्राणी को कष्टों से मुक्ति मिलती है। नवग्रहों में शनि को न्यायाधिपति माना गया है, वे मनुष्यों को उनके कर्मानुसार फल प्रदान करते हैं। अच्छे कर्म करने वालों को अच्छा और बुरे कर्म करने वालों को बुरा फल देते हैं। 


ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में शनि दोष, ढैय्या या साढ़ेसाती का प्रभाव होता है, उन्हें पीपल की पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं और जातक पर उनके अशुभ प्रभावों में कमी आती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर शनिदेव की कृपा पाने के लिए पीपल के वृक्ष का पूजन क्यों किया जाता है?  जानते हैं इसके पीछे क्या है पौराणिक कथाएं -


शास्त्रों के अनुसार ऋषि पिप्लाद के पिता ऋषि दधीचि को वृत्रासुर वध के लिए अपनी देह का त्याग किया और उनकी हड्डियों से देवताओं ने वज्र बनाकर वृत्रासुर का वध किया।उनकी पत्नी अपने नवजात पुत्र को पीपल वृक्ष की कोटर में छोड़कर पति के साथ सती हो गई। पीपल के पत्ते खाकर जब ये बड़े हुए तो इन्हें ज्ञात हुआ कि शनि की दशा के कारण ही इनके माता-पिता को मृत्यु का सामना करना पड़ा। इसके बाद क्रोधित होकर पिप्लाद ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तपस्या की। 


पिप्लाद ऋषि के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उनसे वर मांगने को कहा, तब पिप्लाद ने ब्रह्मा जी से ब्रह्मदंड मांगा। इसके बाद पीपल के वृक्ष में बैठे शनिदेव पर उन्होंने ब्रह्मदंड से प्रहार किया। इससे शनि के पैरों में घोर पीड़ा होने लगी। इसके बाद शनिदेव दर्द से भगवान शिव को पुकारने लगे। 


भगवान शिव ने आकर पिप्लाद के क्रोध को शांत किया और शनि की रक्षा की। कथा के अनुसार पिप्लाद का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ था और पीपल के पत्तों को खाकर इन्होंने तप किया था इसलिए माना जाता है कि पीपल के पेड़ की पूजा करने से शनि के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है।


एक अन्य पौराणिक  कथा के अनुसार- एक बार असुरों ने स्वर्ग पर अपना आधिपत्य कर लिया। उस समय कैटभ नाम का राक्षस था जो पीपल वृक्ष का रूप धारण करके यज्ञ को नष्ट कर देता था। जब भी कोई ब्राह्मण यज्ञ के लिए समिधा के लिए पीपल वृक्ष के पास जाता, तो यह राक्षस उसे खा जाता। ऋषियों को समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर ब्राह्मण कहां गायब हो जाते हैं। ब्राह्मण कुमारों के वापस न लौटने पर ऋषि मुनियों को उनकी अत्यंत चिंता होने लगी। इसके बाद ऋषियों ने शनिदेव को अपनी समस्या बताई और उनसे सहायता मांगी। 


इस बात का पता लगाने के लिए शनिदेव ब्राह्मण रूप धारण करके पीपल के पास गए। जैसे ही शनिदेव पीपल के समीप पहुंचे तो कैटभ ने शनि महाराज को भी पकड़ने की कोशिश की। जिसके बाद शनिदेव और कैटभ में युद्ध हुआ। शनि ने कैटभ का वध कर दिया और उन्होंने ऋषियों से कहा कि आप सभी भयमुक्त होकर शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करें, इससे शनि की पीड़ा से मुक्ति प्राप्त होगी।