जया एकादशी की पौराणिक कथा, इस दिन इंद्र के श्राप से मृत्युलोक पहुंची नृत्यांगना 
 

हर माह की एकादशी तिथि का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा और व्रत से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 

जया एकादशी की पौराणिक कथा

इस दिन इंद्र के श्राप से मृत्युलोक पहुंची नृत्यांगना 
 

हर माह की एकादशी तिथि का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा और व्रत से मोक्ष की प्राप्ति होती है। माघ के शुक्ल पक्ष की एकदशी के दिन जया एकादशी का व्रत रखा जाता है.। जया एकादशी का यह व्रत बहुत ही पुण्यदायी माना गया है।


 मान्यता के अनुसार, इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करने से भूत-प्रेत, पिशाच जैसी योनियों में जाने का भय नहीं रहता है और जीवन और मरण के बंधन से मुक्ति मिलकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार जया एकादशी 12 फरवरी, 2022 दिन शनिवार को है। 


आइए जानते हैं जया एकादशी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा...........

जया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा


पौराणिक कथा के मुताबिक, एक समय की बात है जब इंद्र की सभा में उत्सव मनाया जा रहा था। इस सभा में संत, देवगण समेत दिव्य पुरूष सभी उपस्थित थे। इस बीच सभा में गंधर्व गीत गाए जा रहे थे, जिन पर गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं । इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था, जो बहुत ही सुरीला गाता था, जितनी सुरीली उसकी आवाज़ थी उतना ही सुंदर रूप था। उधर गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी।


पुष्यवती और माल्यवान एक-दूसरे को देखकर सुध-बुध खो बैठते हैं और अपनी लय व ताल से भटक जाते हैं। उनके इस कृत्य से देवराज इंद्र नाराज़ हो जाते हैं और उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगोगे। श्राप के प्रभाव से वे दोनों प्रेत योनि में चले गए और दुख भोगने लगे। पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था। दोनों बहुत दुखी थे।


एक समय माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था। पूरे दिन में दोनों ने सिर्फ एक बार ही फलाहार किया था। रात्रि में भगवान से प्रार्थना कर अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे। इसके बाद सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई। अंजाने में ही सही लेकिन उन्होंने एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और वे पुन: स्वर्ग लोक चले गए।