इस विधि से करें अक्षय नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा, सभी दुखों से मिल सकता है छुटकारा
हिंदू धर्म में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का विशेष महत्व है।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी
भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना
पेड़ के नीचे भोजन बनाकर भगवान विष्णु को लगाएं भोग
हिंदू धर्म में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का विशेष महत्व है। इसे आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन आंवले के पेड़ ते नीचे भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन लोग आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर भगवान विष्णु को भोग लगाते हैं और प्रसाद के रूप में ग्रहण भी करते हैं। जिससे व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने के विधान है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक माह के प्रतिपदा तिथि से लेकर पूर्णिमा तक आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है। जिससे इस माह का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर ब्राह्मणों को खिलाने से और स्वयं खाने से शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है। साथ ही व्यक्ति की सभी मनोकामना भी पूरी हो सकती है।
इस विधि से करें आंवले के पेड़ की पूजा
अक्षय नवमी को आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के बाद आंवले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। पूजा के दौरान आंवले के पेड़ में सबसे पहले गाय का कच्चा दूध चढ़ाएं और फूल माला, सिंदूर (सिंदूर के उपाय), अक्षत सहित पूजा करें। इसके बाद आंवले के पेड़ में कच्चा सूत बांधकर भगवान विष्णु (भगवान विष्णु मंत्र) स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। इससे शुभ परिणाम मिल सकते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा जरूर दें। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।
आंवले के पेड़ की पूजा के साथ करें इस स्तुति का जाप
आंवले के पेड़ की परिक्रमा करने के दौरान इस स्तुति का 108 बार जाप अवश्य करें। इससे शुभ परिणाम की प्राप्ति हो सकती है और सभी दुखों से भी छुटकारा मिल सकता है। इतना ही नहीं अगर किसी व्यक्ति के विवाह में किसी प्रकार की परेशानी आ रही है, तो अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ करने से लाभ हो सकता है।
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे:।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम:।।