जानिए कब है आषाढ़ माह का पहला प्रदोष व्रत, तिथि, पूजा विधि और आषाढ़ प्रदोष व्रत का महत्व 

आषाढ़ मास आरंभ हो चुका है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत महीने में दो बार रखा जाता है। पहला व्रत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन और दूसरा व्रत शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन रखा जाता है।
 

आषाढ़ मास आरंभ हो चुका है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत महीने में दो बार रखा जाता है। पहला व्रत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन और दूसरा व्रत शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन रखा जाता है। आषाढ़ माह में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। 


धार्मिक मान्यता है कि आषाढ़ मास में प्रदोष व्रत करने से जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। पंचांग के मुताबिक आषाढ़ महीना 23 जून से शुरू होकर 21 जुलाई तक चलेगा। आषाढ़ महीना भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा के लिए बहुत खास महीना माना जाता है। इस माह का प्रदोष व्रत भगवान शिव की विशेष कृपा दिलाता है। 


आषाढ़ माह में दो प्रदोष व्रत रखे जाते हैं। पहला प्रदोष व्रत 3 जुलाई, त्रयोदशी को और दूसरा व्रत 18 जुलाई, त्रयोदशी आषाढ़ी शुक्ल पक्ष को रखा जाएगा। 


आषाढ़ प्रदोष व्रत का महत्व


धार्मिक मान्यता के अनुसार, आषाढ़ माह में प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और इस व्रत के प्रभाव से सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। आषाढ़ माह में प्रदोष व्रत करने से सभी प्रकार के रोग और विकार दूर हो जाते हैं। इसके अलावा जो लोग कर्ज से जूझ रहे हैं वे कर्ज से मुक्त हो जाएंगे।


प्रदोष व्रत पूजा विधि


सूर्योदय से पहले स्नान कर लीजिए। 
साफ वस्त्र धारण करके सूर्य को जल चढ़ाइए। 
मंदिर में चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर शिव और मां पार्वती की मूर्ति को रखकर उपवास का संकल्प लीजिए।
इसके बाद शिवलिंग पर शहद, घी और गंगाजल से अभिषेक करें।
कनेर फूल, बेलपत्र और भांग अर्पित करिए।
इसके बाद देसी घी का दीया जलाकर आरती करें और मंत्रों का जाप करें।
विधिपूर्वक शिव चालीसा का पाठ करना भी फलदायी है।
भगवान शिव को फल और मिठाई का भोग लगाएं।
अंत में लोगों में प्रसाद का वितरण करें।