बद्रीनाथ धाम में भी होते हैं भगवान भोलेनाथ के दर्शन, मंदिर से जुड़ी है शिव जी की ये कहानी    ​​​​​​​

उत्तराखंड के चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम स्थित है, जो हिंदुओं की आस्था का केंद्र बिंदु है । हर साल लाखों श्रद्धालु धाम के दर्शन के लिए देश विदेश से यहा पहुंचते हैं।
 

उत्तराखंड के चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम

भगवान विष्णु ऐसा माना है भोलेनाथ से रिश्ता

जानिए पौराणिक कथा और मान्यता

उत्तराखंड के चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम स्थित है, जो हिंदुओं की आस्था का केंद्र बिंदु है । हर साल लाखों श्रद्धालु धाम के दर्शन के लिए देश विदेश से यहा पहुंचते हैं। धाम प्रायः भगवान विष्णु को समर्पित है। लेकिन यहां भोलेनाथ को समर्पित आदिकेदार मंदिर भी है। जो तप्तकुंड के नजदीक है। जहां सभी भक्त भोलेनाथ के अंश रूप में दर्शन करते हैं।


पौराणिक कथा के अनुसार, संपूर्ण केदारखण्ड पर भगवान शिव का आधिपत्य था। एक बार जब नारायण (विष्णु) बद्री धाम में आए, तो उन्हें बद्रीनाथ धाम बहुत भाया और उनका मन हुआ कि वह यहीं रह जाएं, लेकिन बद्री क्षेत्र में तो कोई स्थान ही खाली नहीं था। इसलिए उन्होंने योजना बनाकर बाल रूप धारण किया और भगवान शिव और माता पार्वती के दरवाजे के सामने रोने लगे। उस समय माता पार्वती और भगवान शिव स्नान के लिए बद्रीनाथ मंदिर में स्थित तप्त कुंड में स्नान के लिए जाने की तैयारी कर रहे थे। तभी पार्वती ने रोते हुए बालक को देख उन्हें अपनी ममता की

छांव दी। हालांकि भगवान शिव ने उन्हें मना भी किया लेकिन माता नहीं मानी और बालक को अंदर ले जाकर वहां पर सुलाकर शिव जी के साथ स्नान के लिए चली गईं। उनके जाने के बाद नारायण ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और जब स्नान कर माता पार्वती और भगवान शिव लौटे, तो अंदर से दरवाजा नहीं खुला। जिसके बाद भोलेनाथ माता संग केदारनाथ धाम चले गए और आज भी वह अंश रूप में यहां पर विराजमान हैं। मूल स्थान होने के कारण ही इसे आदि केदार के नाम से जाने जाना लगा।

यहां दर्शन के बाद ही पूरी होती है यात्रा!


पुजारी विजय प्रसाद भट्ट बताते हैं कि सतयुग से पहले बद्रीनाथ धाम भगवान शिव का निवास स्थान था, जहां भगवान विष्णु ने बालक रूप में लीला रचकर यह जगह भगवान शिव और माता पार्वती से लिया था। साथ ही बताते हैं कि आदिकेदार के नजदीक ही गर्म कुंड भी है, जहां स्नान करने के बाद सभी श्रद्धालु सबसे पहले आदिकेदार के दर्शन के बाद ही बद्रीनाथ जी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।


वह बताते हैं कि इस केदार का वर्णन पांच केदारों में नहीं है, इसके बावजूद क्योंकि भगवान विष्णु ने भोलेनाथ और मां पार्वती को अपने माता-पिता की संज्ञा दी है, इसलिए तभी धाम की यात्रा पूरी मानी जाती है, जब यहां के दर्शन श्रद्धालु करते हैं।