श्रीहरि विष्णु के इन 16 नामों का करें जाप, सभी संकट होंगे दूर
 

 


चातुर्मास 20 जुलाई से प्रारंभ हो रहा है। चातुर्मास में भगवान विष्णु जो इस जगत के पालनहार हैं, वे चार माह के लिए निद्रासन में चले जाते हैं। चातुर्मास में भगवान विष्णु जी का स्मरण करने से जातकों को वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु ने इस धरती पर अपने भक्तों को संकटों को दूर करने और जगत के पालनहार के लिए 24 अवतार लिए हैं। 

त्रेतायुग में जन्म लेने वाले पुरूषोत्तम श्रीराम भगवान विष्ण जी के ही एक अवतार हैं जिनका नाम जपने मात्र से भक्तों के कष्ट मिट जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु के 16 ऐसे नाम हैं जिन्हें कुछ खास परिस्थिति में जपने से जातकों को कई लाभ प्राप्त होते हैं। आइए जानते हैं भगवान विष्णु के 16 नामों को किन-किन परिस्थितियों में जपना चाहिए। इस संबंध में शास्त्रों में यह श्लोक भी मिलता है।


          विष्णोषोडशनामस्तोत्रं 

औषधे चिन्तयेद विष्णुं भोजने च जनार्दनं
शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिम
युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमं
नारायणं तनुत्यागे श्रीधरं प्रियसंगमे
दु:स्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम
कानने नारसिंहं च पावके जलशायिनम
जलमध्ये वराहं च पर्वते रघुनंदनम
गमने वामनं चैव सर्वकार्येषु माधवं
षोडश-एतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत
सर्वपाप विनिर्मुक्तो विष्णुलोके महीयते
- इति विष्णु षोडशनाम स्तोत्रं सम्पूर्णं

 

          किन-किन परिस्थितियों में जपें भगवान विष्णु के नाम


1. दवाई लेते समय जपें- विष्णु
2. भोजन करते समय जपें- जनार्दन
3. सोते समय जपें- पद्मनाभ
4. शादी-विवाह के समय जपें- प्रजापति
5. युद्ध के समय - चक्रधर 
6. यात्रा के समय जपें- त्रिविक्रम 
7. शरीर त्यागते समय जपें- नारायण 
8. पत्नी के साथ जपें- श्रीधर
9. नींद में बुरे स्वप्न आते समय जपें- गोविंद 
10. संकट के समय जपें- मधुसूदन
11. जंगल में संकट के समय जपें- नृसिंह 
12. अग्नि के संकट के समय जपें- जलाशयी 
13. जल में संकट के समय जपें- वाराह 
14. पहाड़ पर संकट के समय जपें- रघुनंदन
15. गमन करते समय जपें- वामन 
16. अन्य सभी शेष कार्य करते समय जपें- माधव 


वहीं भगवान विष्णु के इन 8 नामों को प्रतिदिन प्रातःकाल, मध्यान्ह और सायंकाल में जपने से कई प्रकार के संकट दूर होते हैं। भगवान विष्णु के इन नामों का वर्णन वामन पुराण में है।  


         विष्णोरष्टनामस्तोत्रं

अच्युतं केशवं विष्णुं हरिम सत्यं जनार्दनं।
हंसं नारायणं चैव मेतन्नामाष्टकम पठेत्।
त्रिसंध्यम य: पठेनित्यं दारिद्र्यं तस्य नश्यति।
शत्रुशैन्यं क्षयं याति दुस्वप्न: सुखदो भवेत्।
गंगाया मरणं चैव दृढा भक्तिस्तु केशवे।
ब्रह्मा विद्या प्रबोधश्च तस्मान्नित्यं पठेन्नरः।
इति वामन पुराणे विष्णोर्नामाष्टकम सम्पूर्णं।