जगन्नाथ रथयात्रा 2021 : जानें इससे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य और ऐतिहासिक बातें
जगन्नाथ रथ यात्रा कल से प्रारंभ हो रही है जिसका समापन 20 जुलाई को देवशयनी एकादशी के दिन होगा। हालांकि पिछले साल की तरह इस साल भी कोरोना गाइडलाइंस के चलते लाखों की संख्या में श्रद्धालु रथ यात्रा में भाग नहीं ले सकेंगे। भगवान जगन्नाथ जी के स्मरण में निकाली जाने वाली जगन्नाथ यात्रा हिन्दू धर्म का बेहद प्रसिद्ध त्योहार है। हर साल पुरी (उड़ीसा) में जगन्नाथ रथ यात्रा का विशाल आयोजन होता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, पुरी यात्रा हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। कहते हैं कि इस यात्रा के माध्यम से भगवान जगन्नाथ साल में एक बार प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर में जाते हैं।
इस पर्व की खास बातें-
भगवान को ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन जिस कुंए के पानी से स्नान कराया जाता है वह पूरे साल में सिर्फ एक बार ही इसी तिथि पर खुलता है। कुंए से पानी निकालकर दोबारा उसे बंद कर दिया जाता है। भगवान को हमेशा स्नान में 108 घड़ों में पानी से स्नान कराया जाता है।
प्रत्येक वर्ष भगवान जगन्नाथ सहित बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाएं नीम की लकड़ी से ही बनाई जाती है। इसमें रंगों की भी विशेष ध्यान दिया जाता है। भगवान जगन्नाथ का रंग सांवला होने के कारण नीम की उसी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता जो सांवले रंग की हो। वहीं उनके भाई-बहन का रंग गोरा होने के कारण उनकी मूर्तियों को हल्के रंग की नीम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।
तीनों के रथ का निर्माण और आकार अलग-अलग होता है। रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ अन्य रथों कि तुलना में बड़ा होता है और रंग लाल पीला होता है। भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे पीछे चलता है पहले बलभद्र फिर सुभद्रा का रथ होता है।
भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष कहते है जिसकी ऊंचाई 45.6 फुट होती है। बलराम के रथ का नाम ताल ध्वज और उंचाई 45 फुट होती है। वहीं सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फुट ऊंचा होता है। अक्षय तृतीया से नए रथों का निर्माण आरंभ हो जाता है। प्रतिवर्ष नए रथों का निर्माण किया जाता है। इन रथों को बनाने में किसी भी प्रकार के कील या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है।