आज है कामिका एकादशी, जानिए इससे जुड़ी कथा
कामिका एकादशी श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनाई जाती है। कामिका एकादशी विष्णु भगवान की आराधना एवं पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय होता है। इस व्रत के पुण्य से जीवात्मा को पाप से मुक्ति मिलती है। यह एकादशी कष्टों का निवारण करने वाली और मनोवांछित फल प्रदान करने वाली होती है। कामिका एकादशी को श्री विष्णु का उत्तम व्रत कहा गया है कहा जाता है कि इस एकादशी की कथा श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। इससे पूर्व राजा दिलीप को वशिष्ठ मुनि ने सुनायी थी जिसे सुनकर उन्हें पापों से मुक्ति एवं मोक्ष प्राप्त हुआ।
कहा जाता है कि प्राचीन काल में किसी गांव में एक ठाकुर जी थे। क्रोधी ठाकुर का एक ब्राह्मण से झगडा हो गया और क्रोध में आकर ठाकुर से ब्राह्मण का खून हो जाता है। अत: अपने अपराध की क्षमा याचना हेतु ब्राह्मण की क्रिया उसने करनी चाही, परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया और वह ब्रह्म हत्या का दोषी बन गया परिणाम स्वरूप ब्राह्मणों ने भोजन करने से इंकार कर दिया। तब उन्होने एक मुनि से निवेदन किया कि ‘हे भगवान, मेरा पाप कैसे दूर हो सकता है।’ इस पर मुनि ने उसे कामिका एकाद्शी व्रत करने की प्रेरणा दी। ठाकुर ने वैसा ही किया जैसा मुनि ने उसे करने को कहा था। जब रात्रि में भगवान की मूर्ति के पास जब वह शयन कर रहा था। तभी उसे स्वपन में प्रभु दर्शन देते हैं और उसके पापों को दूर करके उसे क्षमा दान देते हैं।
"पूजा-विधि"
एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के पश्चात संकल्प करके श्री विष्णु के विग्रह की पूजन करना चाहिये। भगवान विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि नाना पदार्थ निवेदित करके, आठों प्रहर निर्जल रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण एवं कीर्तन करना चाहिए। एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है अत: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजनादि ग्रहण करें। इस प्रकार जो कामिका एकादशी का व्रत रखता है उसकी कामनाएं पूर्ण होती हैं।
"महत्व"
कामिका एकादशी उत्तम फलों को प्रदान करने वाली होती है। इस एकादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से अमोघ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन तीर्थ स्थलों में विशिष स्नान दान करने की प्रथा भी रही है इस एकादशी का फल अश्वमेघ यज्ञ के समान होता है। इस एकादशी का व्रत करने के लिये प्रात: स्नान करके भगवान श्री विष्णु को भोग लगाना चाहिये। आचमन के पश्चात धूप, दीप, चन्दन आदि पदार्थों से आरती करनी चाहिये।
कामिका एकादशी व्रत के दिन श्री हरि का पूजन करने से व्यक्ति के पितरों के भी कष्ट दूर होते है। व्यक्ति पाप रूपी संसार से उभर कर, मोक्ष की प्राप्ति करने में समर्थ हो पाता है। इस एकादशी के विषय में यह मान्यता है, कि जो मनुष्य़ सावन माह में भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसके द्वारा गंधर्वों और नागों की सभी की पूजा हो जाती है। लालमणी मोती, दूर्वा आदि से पूजा होने के बाद भी भगवान श्री विष्णु उतने संतुष्ट नहीं होते, जितने की तुलसी पत्र से पूजा होने के बाद होते है। जो व्यक्ति तुलसी पत्र से श्री केशव का पूजन करता है। उसके जन्म भर का पाप नष्ट होते है।
इस एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही यज्ञ करने समान फल प्राप्त होते है। कामिका एकादशी के व्रत में शंख, चक्र, गदाधारी श्री विष्णु जी की पूजा होती है। जो मनुष्य इस एकादशी को धूप, दीप, नैवेद्ध आदि से भगवान श्री विष्णुजी की पूजा करता है उसे शुभ फलों की प्राप्ति होती है।