जानिये भगवान शिव के पार्थिव पूजन की सरल विधि!!!!!!!
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कलियुग में पार्थिव शिवलिंगों की पूजा करोड़ों यज्ञों का फल देने वाली मानी गयी है । भगवान शिव का किसी पवित्र स्थान पर किया गया पार्थिव पूजन भोग और मोक्ष दोनों देने वाला है । पार्थिव पूजन करने का अधिकार स्त्री व सभी जातियों के लोगों को है ।
शिवपुराण के अनुसार पार्थिव पूजन की एक वैदिक रीति है । वेदपाठी ब्राह्मणों को वैदिक रीति से शिवलिंग का पूजन करना चाहिए परन्तु सर्वसाधारण को दूसरी रीति से पूजन करना चाहिए ।
पूजन में ध्यान रखने योग्य बातें!!!!!!!
सर्वसाधारण के लिए पार्थिव शिवलिंग के पूजन की विधि!!!!!!!
शिवपुराण में पार्थिव लिंग की पूजा भगवान शिव के नामों से बतायी गयी है जो सभी कामनाओं को पूरा करती है । इस प्रकार की पार्थिव पूजा भगवान शिव के आठ नामों—हर, महेश्वर, शम्भु, शूलपाणि, पिनाकधृक्, शिव, पशुपति और महादेव—के साथ की जाती है ।
करन्यास !!!!!!!!
ॐ ॐ अंगुष्ठाभ्यां नम: (दोनों हाथों की तर्जनी अंगुलियों से दोनों अंगुठों का स्पर्श करना चाहिए ।)
ॐ नं तर्जनीभ्यां नम: (दोनों हाथों के अंगूठों से दोनों तर्जनी अंगुलियों का स्पर्श करना चाहिए ।)
ॐ मं मध्यमाभ्यां नम: (दोनों अंगूठों से दोनों मध्यमा अंगुलियों का स्पर्श करना चाहिए ।)
ॐ शिं अनामिकाभ्यां नम: (दोनों अंगूठों से दोनों अनामिका अंगुलियों का स्पर्श करना चाहिए ।)
ॐ वां कनिष्ठिकाभ्यां नम: (दोनों अंगूठों से दोनों कनिष्ठिका अंगुलियों का स्पर्श करना चाहिए ।)
ॐ यं करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: (हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का परस्पर स्पर्श ।)
अंगन्यास !!!!
ॐ ॐ हृदयाय नम: (दाहिने हाथ की पांचों अंगुलियों से हृदय का स्पर्श करें ।)
ॐ नं शिरसे स्वाहा (दाहिने हाथ से सिर का स्पर्श करें ।)
ॐ मं शिखायै वषट् (दाहिने हाथ से शिखा का स्पर्श करें ।)
ॐ शिं कवचाय हुम् (दाहिने हाथ की अंगुलियों से बांये कन्धे का और बांयें हाथ की अंगुलियों से दाहिने कंधे का स्पर्श करें ।)
ॐ वां नेत्रत्रयाय वौषट् (दाहिने हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्यभाग का स्पर्श करें ।)
ॐ यं अस्त्राय फट् (इस वाक्य को पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिने ओर से आगे की ओर ले आएं और तर्जनीव मध्यमा अंगुलियों से बायीं हथेली पर ताली बजायें ।)।
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम् ।।
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम: ।
नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम् ।।
जो कैलास पर्वत पर एक सुन्दर सिंहासन पर विराजमान हैं, जिनके वामभाग में भगवती उमा उनसे सटकर बैठी हुई हैं, सनक-सनन्दन आदि भक्तजन जिनकी पूजा कर रहे हैं तथा जो भक्तों के दु:खरूपी दावानल को नष्ट कर देने वाले शक्तिशाली ईश्वर हैं । उनके चार हाथों में क्रमश: परशु, मृगमुद्रा, वर एवं अभयमुद्रा हैं । वे वस्त्र की जगह व्याघ्रचर्म धारण किये हुए हैं, उनके पांच मुख हैं और प्रत्येक मुखमण्डल में तीन-तीन नेत्र हैं । वे विश्व के आदि हैं और सबका भय हर लेने वाले हैं ।
भगवान शिव को धूप निवेदन करें । फिर घी से बरा हुआ दीपक दिखाएं । इसके बाद भगवान शिव को नैवेद्य में मिष्ठान व ऋतुफल अर्पित करें फिर भगवान को प्रेमपूर्वक आचमन करायें । (कुछ लोग भगवान को भांग का भोग लगाते हैं।) करोद्वर्तन के लिए दोनों हाथों की अनामिका ऊंगलियों में चंदन लेकर अंगूठे की सहायता से शिवलिंग पर छिड़कें । लोंग, इलायची, सुपारी द्वारा निर्मित ताम्बूल भगवान शिव को निवेदित करें । अंत में सामर्थ्यानुसार द्रव्य दक्षिणा समर्पित करें।
१. पूर्व दिशा में ॐ शर्वाय क्षितिमूर्तये नम: ।
२. ईशानकोण में ॐ भवाय जलमर्तये नम: ।
३. उत्तर दिशा में ॐ रुद्राय अग्निमूर्तये नम: ।
४. वायव्यकोण में ॐउग्राय वायुमूर्तये नम: ।
५. पश्चिम दिशा में ॐ भीमाय आकाशमूर्तये नम: ।
६. नैर्ऋत्य कोण में ॐ पशुपतये यजमानमूर्तये नम: ।
७. दक्षिण दिशा में ॐ महादेवाय सोममूर्तये नम: ।
८. अग्नि कोण में ॐ ईशानाय सूर्यमूर्तये नम: ।
आवाहन न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां नैव हि जानामि क्षमस्व परमेश्वर ।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सदाशिव ।
यत् पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।
‘सबको सुख देने वाले कृपानिधान भूतनाथ शिव ! मैंने अनजाने में या जानबूझकर यदि कभी आपका जप या पूजन किया हो तो आपकी कृपा से वह सफल हो जाए । हे गौरीनाथ ! मैं आधुनिक युग का महान पापी हूँ लेकिन आप सदा से ही महान पतितपावन हैं; इस बात को ध्यान में रख कर आप जैसा चाहें, वैसा करें । मैं जैसा हूँ, वैसा ही आपका हूँ, आपके आश्रित हूँ, इसलिए आपसे रक्षा पाने के योग्य हूँ । परमेश्वर ! आप मुझ पर प्रसन्न होइये ।’
इस प्रकार प्रार्थना करके हाथ में लिए हुए अक्षत और पुष्प को पार्थिव लिंग पर अर्पित कर दें ।
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ ! स्वस्थाने परमेश्वर ।
मम पूजां गृहीत्वेमां पुनरागमनाय च ।।
ॐ विष्णवे नम:, ॐ विष्णवे नम:, ॐ विष्णवे नम:,
ॐसाम्बसदाशिवाय नम:, ॐसाम्बसदाशिवाय नम:, ॐसाम्बसदाशिवाय नम:,
अंत में ‘अनेन पार्थिवलिंगपूजन कर्मणा श्रीयज्ञस्वरूप: शिव: प्रीयताम्, न मम ।’ ऐसा कहकर पृथ्वी पर जल छोड़ दें और अपने मस्तक व हृदय से लगा लें ।
भगवान शिव की पूजा भक्ति भाव से करनी चाहिए, अनावश्यक भ्रम या तर्क से नहीं । क्योंकि भक्ति से ही भगवान मनोवांछित फल देते हैं।