आज है नारद जयंती, जानिए क्यों पूजनीय माने जाते हैं नारद

नारद जी ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं। भगवान अपनी शक्ति के रूप में 'शक्त्यावेशावतार 'धारण करते हैं। नारद जी मुख्य 'शक्त्यावेशावतार' हैं जिनमें साक्षात भक्ति की शक्ति का आवेश हुआ था।
 

देवर्षि नारद को लेकर हैं तरह तरह की भ्रांतियां

जानिए उनके अहम योगदान

कई चीजों के ज्ञाता थे नारद

इसीलिए धार्मिक ग्रंथों में है अहम स्थान

भागवतमहापुराण के अनुसार देवर्षि नारद भगवान के तीसरे अवतार हैं..इसीलिए लिखा है...
तृतीयमृषिसर्गम् च देवर्षित्वमुपेत्य स:

नारद जी भक्ति के प्रमुख आचार्य माने जाते हैं। इन्होंने भक्ति सम्बन्धी समस्त शास्त्रीय ज्ञान चौरासी सूत्रों के रूप में प्रकट किया है, जो "नारद भक्ति दर्शन" के नाम से विख्यात हैं।

नारद जी ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं। भगवान अपनी शक्ति के रूप में 'शक्त्यावेशावतार 'धारण करते हैं। नारद जी मुख्य 'शक्त्यावेशावतार' हैं जिनमें साक्षात भक्ति की शक्ति का आवेश हुआ था।

नारद जी भगवान के अवतार भी माने जाते हैं ! इनका नाम नारद इसीलिए पड़ा कि..
" नरस्येदं नारं नारं द्यति इति नारदः  "
अर्थात्...मनुष्यों का जो अज्ञान है उसको द्यति माने खण्डयति, नश्यति, नाशयति..जो अज्ञान को नष्ट करके प्रेमानंद प्रदान करे उसका नाम नारद है।
शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सब लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारदजी का सदा से प्रवेश रहा है।
नार' शब्द का अर्थ जल है। ये सबको जलदान, ज्ञानदान करने एवं तर्पण करने में निपुण होने की वजह से नारद कहलाए। अथर्ववेद में भी अनेक बार नारद नाम के ऋषि का उल्लेख है। प्रसिद्ध मैत्रायणी संहिता में नारद को आचार्य के रूप में सम्मानित किया गया है।

हमारे यहाँ वेदों में कर्म, ज्ञान और भक्ति तीन मार्ग है। इन तीनों के लिए अलग अलग ग्रंथ है। भक्ति मार्ग में नारद भक्ति दर्शन, शांडिल्य भक्ति दर्शन और आंगिरस मध्य मीमांसा दर्शन है।

शांडिल्य दर्शन बहुत गूढ़ है, बड़े बड़े बुद्धिमानों का मस्तिष्क फटने लगता है। अंगिरा ऋषि का दर्शन देवी मीमांसा दर्शन है। नारद भक्ति दर्शन बहुत सरल है, गधा भी समझ जाए। नारद भक्ति दर्शन कलियुग के लिए बनाया गया है।

नारद जी का भक्ति दर्शन सबके अंत में बना है। पहले उन्होंने बनाया नारद स्मृति , इसमें कर्मकांड का निरूपण है। फिर बनाया नारद पाँचरात्र , इसमें कर्म और उपासना दोनों का निरूपण है और अंत में नारद भक्ति दर्शन जिसमें शुद्ध भक्ति का निरूपण है। न कर्म की अपेक्षा, न ज्ञान की और न योग की। इसीलिए ये सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ माना गया है ।

नारद जी को ब्रह्मा ने कहा था कि जिस प्रकार मनुष्यों में श्रीकृष्ण की भक्ति जल्दी प्रकट हो, उसका वर्णन करो। इसी दृष्टिकोण को लेकर नारद भक्ति दर्शन का प्राकट्य हुआ जिसमें 84 छोटे छोटे सूत्र हैं ।
 नारदसंहिता के नाम से उपलब्ध इनके एक अन्य ग्रन्थ में भी ज्योतिषशास्त्र के सभी विषयों का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि देवर्षिनारद भक्ति के साथ-साथ ज्योतिष के भी प्रधान आचार्य हैं।
नारद जी अनेक कलाओं में निपुण माने जाते हैं। ये वेदांतप्रिय, योगनिष्ठ, संगीत शास्त्री, औषधि ज्ञाता, शास्त्रों के आचार्य और भक्ति रस के प्रमुख माने जाते हैं। ये भागवत मार्ग प्रशस्त करने वाले देवर्षि हैं और 'पांचरात्र' इनके द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ है। वैसे 25 हजार श्लोकों वाला प्रसिद्ध नारद पुराण भी इन्हीं द्वारा रचा गया है।

संगीत के महान आचार्य भी हैं महर्षि नारद
आजकल धार्मिक चलचित्रों और धारावाहिकों में नारदजी का जैसा चरित्र-चित्रण हो रहा है, वह देवर्षि की महानता के सामने एकदम बौना है।
नारदजी के पात्र को जिस प्रकार से प्रस्तुत किया जा रहा है, उससे आम आदमी में उनकी छवि लडा़ई-झगडा़ करवाने वाले व्यक्ति अथवा विदूषक की बन गई है। यह उनके प्रकाण्ड पांडित्य एवं विराट व्यक्तित्व के प्रति सरासर अन्याय है।