पितृ पक्ष के दौरान करिए पितृ सूक्तम् का पाठ, पितर खुश होकर देते हैं आशीर्वाद
पितृ पक्ष का समय में पितरों के लिए समर्पित
तर्पण-दान-श्राद्ध का मिलता है मौका
अपनी उन्नति के लिए पितरों को संतुष्ट करना बेहद जरूरी
18 सितंबर बुधवार से पितृ पक्ष का प्रारंभ हो चुका है। पितृ पक्ष के समय में पितरों के लिए तर्पण, दान, श्राद्ध आदि करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने परिजनों को आशीर्वाद देते हैं। यदि आप अपने पितरों को खुश करना चाहते हैं तो उनके लिए ये कार्य करने जरूरी होते हैं। ऐसा नहीं करने से पितर नाराज हो सकते हैं और इससे पितृ दोष लगता है। पितृ दोष लगने पर परिवार के लोगों पर गंभीर परेशानियां आने लगती है। इसलिए पितृ पक्ष के समय में पितरों को संतुष्ट करना बेहद जरूरी होता है।
माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितर पृथ्वी लोक पर निवास करते हैं। इस दौरान जो लोग भी उनको तर्पण, श्राद्ध आदि से तृप्त करते हैं, उनसे वह प्रसन्न हो जाते हैं। पितृ पक्ष में उनकी पूजा करते समय आप कुछ उपायों को अपना सकते हैं, जिससे पितर खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। इसके लिए आप पूरे पितृ पक्ष में पितृ सूक्तम् का पाठ कर सकते हैं।
पितृ सूक्तम् की पाठ विधि
पितृ सूक्तम् का पाठ पितृ पक्ष, अमावस्या और पूर्णिमा तिथियों पर करना चाहिए। इसके लिए आप पितृ पक्ष में रोजाना सुबह उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर स्नान करें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर पितरों के लिए तर्पण करें। इस दौरान पितरों का आह्वान करें और जल, काले तिल और कुशा की मदद से तर्पण करें। इसके बाद आप कुश या कंबल के आसन पर बैठकर पितृ सूक्तम् का पाठ कर सकते हैं। यह संस्कृत में लिखा है. जिसमें आपको उच्चारण की शुद्धता का विशेष ध्यान रखना है।
पितृ सूक्तम् का पाठ
उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥
अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥
त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥
त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥
आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥
उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥
आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥
अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥
येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥
अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥
आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥