प्रत्येक दिन करें हनुमान चालीसा का पाठ, दूर होती हैं कई तरह की बाधाएं
 

रामभक्त भगवान हनुमानजी की पूजा-आराधना से सभी तरह के कष्ट और संकट पल भर में दूर हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि बजरंगबली कलयुग में भी मौजूद हैं और आज भी अपने भक्तों की पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
 

प्रत्येक दिन करें हनुमान चालीसा का पाठ

दूर होती हैं कई तरह की बाधाएं
 

रामभक्त भगवान हनुमानजी की पूजा-आराधना से सभी तरह के कष्ट और संकट पल भर में दूर हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि बजरंगबली कलयुग में भी मौजूद हैं और आज भी अपने भक्तों की पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि जो भक्त नियमित हनुमानजी की पूजा आराधना करता है उसे सभी तरह के कष्टों का निवारण जल्द हो जाता है। 


आप को बता दें कि हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए किसी विशेष प्रकार की पूजा की जरूरत नहीं होती है मात्र हनुमान जी के नाम का स्मरण करने से सारी विपदा दूर हो जाती है। नियमित रूप से हनुमानजी पूजा और उपासना से आपके घर और मन से सभी तरह नकारात्मक ऊर्जाएं दूर हो जाती हैं। हनुमानजी की उपासना के लिए हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के पाठ को विशेष महत्व दिया गया है। 


गोस्वामी तुलसीदास नें हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए हनुमान चालीसा के पाठ की रचना की थी। शनिदोष, पितृदोष, नकारात्मक ऊर्जा, भूत-प्रेत की बाधा और अन्य तरह की दूसरी परेशानियों का दूर करने के लिए नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करना बहुत ही लाभकारी माना गया है।


व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जाओं से बचने के लिए हनुमानजी को अत्यंत निडर एवं बलशाली माना गया है। ऐसा माना जाता है कि राम भक्त हनुमानजी बुरी आत्माओं का नाश करके लोगों को उससे मुक्ति प्रदान करते हैं। जो भक्तजन नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। हनुमानजी उनकी हर मनोकामना को पूरी करते हैं क्योंकि हनुमान जी अष्टसिद्धि और नवनिधि के दाता हैं। जिन लोगों को लगातार किसी प्रकार का रोग पीछा करते हैं उन्हें नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। क्योंकि हनुमानजी अपने भक्तों से समस्त रोग और कष्ट को हर लेते हैं। इसके अलावा छात्रों के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करना भी बहुत उपयोगी होता है। इसके जाप से स्मरण शक्ति बढ़ती है और शिक्षा के क्षेत्र में कामयाबी मिलती है।


हनुमान चालीसा 


दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निजमनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।


चौपाई


जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।। रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।। कंचन वरन विराज सुवेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै। शंकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग वन्दन।।

विद्यावान गुणी अति चातुर।राम काज करिबे को आतुर।। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।। भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।। रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।। सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा। नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कवि कोविद कहि सके कहाँ ते।। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र विभीषन माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना।। जुग सहस्र योजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।। दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।। सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।। भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।। संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा। तिनके काज सकल तुम साजा। और मनोरथ जो कोई लावै।सोई अमित जीवन फल पावै।।

चारों युग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस वर दीन जानकी माता।। राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को भावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै।। अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई।। संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।। जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहिं बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।। तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।


दोहा 


पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

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