सावन के आखिरी प्रदोष पर ऐसे करेंगे व्रत-पूजा तो बरसेगी भोलेनाथ की कृपा, कष्टों से मिलेगी मुक्ति 

 सावन में प्रदोष व्रत रखने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है साथ ही कुंडली में चंद्र का दोष होने पर वह भी दूर हो जाता है। 

 

इस बार सावन में दो प्रदोष व्रत पड़े हैं और सावन का आखिरी प्रदोष व्रत 20 अगस्त शुक्रवार को है। प्रदोष जिस वार को पड़ता है उसे उसी नाम से जाना जाता है जैसे इस बार शुक्रवार को पड़ने से यह शुक्र प्रदोष कहा जाएगा। शुक्र प्रदोष व्रत सुख-समृद्धि और मान -सम्मान के लिए अति विशिष्ट होता है।

भगवान शिव का प्रिय महीना सावन अब बस समाप्त होने ही वाला है। जैसे सावन में सोमवार के व्रत व पूजा का महत्व है वैसे ही प्रदोष के व्रत की भी महत्ता है। माना जाता है कि सावन में प्रदोष व्रत रखने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है साथ ही कुंडली में चंद्र का दोष होने पर वह भी दूर हो जाता है। 

इस बार सावन में दो प्रदोष व्रत पड़े हैं और सावन का आखिरी प्रदोष व्रत 20 अगस्त शुक्रवार को है। प्रदोष जिस वार को पड़ता है उसे उसी नाम से जाना जाता है जैसे इस बार शुक्रवार को पड़ने से यह शुक्र प्रदोष कहा जाएगा। शुक्र प्रदोष व्रत सुख-समृद्धि और मान -सम्मान के लिए अति विशिष्ट होता है। प्रदोष व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि –विधान से पूजा की जाती है। 

सावन प्रदोष व्रत का महत्व 

मान्यता है कि शुक्र प्रदोष व्रत करने से भक्त को भोलेनाथ का आशीर्वाद मिलता है साथ ही उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। वहीं इस व्रत को करने से व्यक्ति को आरोग्य, सुख-समृद्धि और शांति के साथ ही धन-धान्य का वरदान मिलता है। 

स्कंदपुराण व शिव पुराण में प्रदोष का महत्व 

स्कंदपुराण के साथ ही शिव पुराण में भी प्रदोष व्रत व पूजा का महत्व विस्तार से बताया गया है। इसके मुताबिक प्रदोष यानी त्रयोदशी तिथि पर शाम को सूर्यास्त के वक्त यानी प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं। इस दौरान की गई उनकी पूजा से भक्त की मनोकामना पूरी होती है। इस संयोग में भगवान शिव की पूजा से हर तरह के दोष भी दूर होते हैं।

प्रदोष की पूजा में करें इन चीजों का उपयोग 

प्रदोष व्रत में पूजा की थाली में अबीर, गुलाल, चंदन, अक्षत, फूल, धतूरा, बिल्वपत्र, जनेऊ, कलावा, दीपक, कपूर, मिष्ठान, अगरबत्ती और फल होना चाहिए।

यूं करें प्रदोष पर महादेव की पूजा 

-इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। 
-स्नान करने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र पहन लें।
-घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
-अगर संभव है तो व्रत करें।
-भगवान भोलेनाथ का गंगा जल से अभिषेक करें।
-भगवान भोलेनाथ को पुष्प अर्पित करें।
-इस दिन भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा भी करें। किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। 
-भगवान शिव को भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
-भगवान शिव की आरती करें। 
-इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।

शाम के समय भी फिर से स्नान करके बिलकुल इसी तरह फिर से पूजा करें क्योंकि प्रदोष के दिन शाम की पूजा का ही महत्व होता है। 

सावन का आखिरी शुक्र प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त 

त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ : 19 अगस्त दिन गुरुवार को रात 10 बजकर 54 मिनट से

त्रयोदशी तिथि की समाप्ति : 20 अगस्त दिन शुक्रवार को रात 08 बजकर 50 मिनट तक

शुक्र प्रदोष व्रत की पूजा –आराधना के लिए शुभ मुहूर्त शाम को 06 बजकर 40 मिनट से रात 08 बजकर 57 मिनट तक है। इसलिए भक्तों को इस प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा आराधना कर लेनी चाहिए।

नोट-  सावन मास में महादेव की पूजा के लिए कोई मुहूर्त नहीं देखा जाता है क्योंकि इस माह में हर दिन पावन होता है।

प्रदोष व्रत के नियम 

- प्रदोष व्रत में फलाहार का विशेष महत्व होता है। प्रदोष व्रत पूरे दिन रखा जाता है।
-इस व्रत में दूध का सेवन करें और पूरे दिन उपवास धारण करें।
-प्रदोष व्रत में अन्न, नमक, मिर्च आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रत के समय एक बार ही फलाहार ग्रहण करना चाहिए।