संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाता है हलषष्ठी व्रत, जानें इसका महत्व, पूजा विधि, मुहूर्त व कथा 

भादो मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी का व्रत रखा जाता है। इसे हल छठ या ललई छठ के नाम से भी जाना जाता है। इस बार हलषष्ठी का व्रत 28 अगस्त 2021, शनिवार को रखा जाएगा।

 

माना जाता है कि भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म इसी दिन हुआ था तो बलराम जयंती के रूप में भी ये पर्व मनाया जाता है। इस दिन माताएं श्री कृष्ण तथा बलराम की विधि विधान से पूजा करके उनसे अपनी संतान की लंबी उम्र का वरदान मांगती है। 

भादो मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी का व्रत रखा जाता है। इसे हल छठ या ललई छठ के नाम से भी जाना जाता है। इस बार हलषष्ठी का व्रत 28 अगस्त 2021, शनिवार को रखा जाएगा। माना जाता है कि भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म इसी दिन हुआ था तो बलराम जयंती के रूप में भी ये पर्व मनाया जाता है। इस दिन माताएं श्री कृष्ण तथा बलराम की विधि विधान से पूजा करके उनसे अपनी संतान की लंबी उम्र का वरदान मांगती है। 

बलराम जी को हलधर यानी हल धारण करने वाले के रूप में भी जाना जाता है इसीलिए उनकी जयंती को हलषष्ठी भी कहते हैं। साथ ही इस दिन हल की जुताई से उगे हुए अनाज नहीं खाए जाते हैं। 

हलषष्ठी का महत्व 

हलषष्ठी का व्रत माताएं अपनी संतान की दीर्घायु के लिए करती है। भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म इसी दिन हुआ था। इस दन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं तथा बलराम जी की और हल की विधि विधान से पूजा करती है। बलराम जी का अस्त्र गदा के साथ हल भी है इसलिए  षष्ठी तिथि को हल षष्ठी या हल छठ कहते हैं।हलषष्ठी व्रत के दौरान व्रत रखने वाली माताएं अन्न नहीं ग्रहण करती हैं। इसमें महुआ की दातुन की जाती है। हलषष्ठी व्रत में हल से जुते हुए अनाज और सब्जियों का प्रयोग वर्जित है। इस व्रत में वही वस्तु ग्रहण की जाती है जो तालाब या सरोवर में पैदा होती है या बिना जुते हुए भूमि में पाया जाता है। जैसे तिन्नी का चावल, कर्मुआ का साग  इत्यादि। इस दिन गाय के  किसी उत्पाद का प्रयोग नहीं होता है। इसमें भैंस का दूध, दही घी का प्रयोग किया जाता है।

हलषष्ठी पर पूजा का शुभ मुहूर्त 

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 27 अगस्त दिन शुक्रवार को को शाम 06 बजकर 48 मिनट पर लगेगी। यह तिथि अगले दिन यानी शनिवार, 28 अगस्त को 08 बजकर 56 मिनट तक रहेगी। व्रत में उदयातिथि से रखने का प्रावधान के चलते हल षष्ठी का व्रत 28 अगस्त को रखा जायेगा। 

हलषष्ठी पूजा विधि 

-सबसे पहले तो इस दिन घर के बाहर भैंस के गोबर से षष्ठी माता का चित्र बनाया जाता है। 
-उसके बाद गणेश गौरी और बलराम जी की पूजा की जाती है।
- एक छोटा सा तालाब बना कर झरबेरी ,पलाश और कुश का पेड़ लगाते हैं और वहीं बैठकर पूजा-अर्चना की जाती है। 
-वहीं व्रती हलषष्ठी व्रत की कथा भी सुनती है। ऐसी मान्यता है कि षष्ठी देवी और भगवान बलराम जी की पूजा करने से उनके पुत्रों की आयु में वृद्धि होती है और वे पूर्ण स्वस्थ और निरोग रहते हैं। बलराम जी उनके पुत्रों को लंबी आयु प्रदान करते हैं। इस दिन श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी की जयंती है।
- इस दिन भैंस के दूध से बने दही और सूखे महुवा के फूल को पलाश के पत्ते रखकर पूजा करते हैं और इसी को खाकर व्रत का समापन भी करती हैं। इस दिन महिलाएं शाम तक निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत से जीवन में सुख, शांति, धन, यश आदि की प्राप्ति होती है। इसीलिए महिलाएं इस व्रत को पूरे श्रद्धा भाव से रखती हैं।  

हलषष्ठी की पौराणिक कथा 

भागवत पुराण के अनुसार बलराम या संकर्षण को भगवान विष्णु का शेषावतार माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का अंश माने जाने वाले शेषनाग, उनके हर अवतार के साथ अवश्य धरती पर आते हैं। भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के बड़े भाई के रूप में शेषनाग ने बलराम जी के नाम से अवतार लिआ था। 

कथा के अनुसार जब मथुरा नरेश कंस अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को विदा कर रहा था, उसी समय आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी में देवकी और वासुदेव की आंठवी संतान को कंस का काल बताया था।
इसलिए कंस ने देवकी और वासुदेव को कारगार में कैद कर दिया था। 

कंस ने एक-एक करके उनकी छह सांतानों को मार दिया था लेकिन जब सातवीं संतान के रूप में शेषवतार भगवान बलराम गर्भ में स्थापित हुए तो श्री हरि ने योग माया से उन्हें माता रोहणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया था। इसलिए उनका जन्म भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप में नंदबाबा के यहां हुआ। बलराम मल्लयुद्ध, कुश्ती और गदायुद्ध में पारंगत थे तथा हाथ में हल धारण करते थे। इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है। इनके जन्म को हल षष्ठी के रूप में मनाया जाता है।