अखंड सौभाग्य के लिए रखा जाता है कजरी तीज का व्रत, जानें महत्व, पूजा विधि व शुभ मुहूर्त
भादो मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को रखा जाता है कजरी तीज का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को बड़ी तीज व सातुडी तीज के नाम से भी जाना जाता है।
भादो मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को रखा जाता है कजरी तीज का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को बड़ी तीज व सातुडी तीज के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर व पूर्वी भारत में इस त्यौहार को उत्साह व उमंग के साथ मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती है वहीं कुंवारी लड़कियां मनचाहा वर पाने के लिए व्रत रखती है।
भादो मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को रखा जाता है कजरी तीज का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को बड़ी तीज व सातुडी तीज के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर व पूर्वी भारत में इस त्यौहार को उत्साह व उमंग के साथ मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती है वहीं कुंवारी लड़कियां मनचाहा वर पाने के लिए व्रत रखती है।
इस दिन जौ, चने, चावल और गेहूं के आटे व घी के सत्तू बनाए जाते हैं और पूजा में भी इन्हीं का भोग लगता है। यह व्रत जहां शाम में पूजा के साथ संपन्न होता है वहीं चंद्रमा की पूजा करके, अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। इस दिन महिलाएं दिन में झूले झूलती हैं, तीज के गीत गाती हैं। कजरी तीज के गीत इस त्यौहार का अभिन्न हिस्सा हैं।
इस बार कजरी तीज 25 अगस्त बुधवार को मनाई जाएगी। इस दिन शाम में जहां तीज माता की पूजा होगी वहीं रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाएगा।
कजरी तीज का शुभ मुहूर्त
तृतीया तिथि 24 अगस्त को शाम 04 बजकर 04 मिनट पर आरंभ हो जाएगी, जो कि 25 अगस्त की शाम 04 बजकर 18 मिनट तक रहेगी।
पंचांग के अनुसार तृतीया तिथि 24 अगस्त को सायंकाल 04 बजकर 05 मिनट से शुरू हो कर 25 अगस्त को शाम 04 बजकर 18 मिनट तक रहेगी लेकिन उदया तिथि होने के कारण कजरी तीज का व्रत 25 अगस्त को रखा जाएगा। कजरी तीज का व्रत वैसे तो सुहागिन महिलाएं ही रखती हैं लेकिन मान्यता है कि जिन लड़कियों की शादी में बाधांए आ रही हो वो भी कजरी तीज का व्रत रखती हैं।
इस शुभ योग में रखा जाएगा कजरी तीज का व्रत
इस बार कजरी तीज का व्रत 25 अगस्त को सुबह 05 बजकर 57 मिनट तक धृति योग रहेगा। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में इस योग को बेहद शुभ माना गया है। कहते हैं कि इस योग में किए गए कार्यों में सफलता हासिल होती है।
कजरी तीज का महत्व
कजरी तीज के व्रत का बड़ा महत्व है और इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। माना जाता है कि कुंवारी युवतियां भी ये व्रत रखती है जिसके प्रभाव से उन्हें सुयोग्य वर प्राप्त होता है। इसके साथ ही भगवान शंकर की कृपा से वैवाहिक जीवन की समस्याएं दूर हो जाती हैं।
कजरी तीज पर ऐसे करें पूजा
कजरी तीज की पूजा के लिए सबसे पहले घर में पूजा के लिए सही दिशा का चुनाव करके दीवार के सहारे मिट्टी और गोबर से एक तालाब जैसा छोटा सा घेरा बना लें। इसके बाद उस तालाब में कच्चा दूध और जल भर दें। फिर किनारे पर एक दीपक जलाकर रख दें। उसके बाद एक थाली में केला, सेब सत्तू, रोली, मौली-अक्षत आदि रखें। तालाब के किनारे नीम की एक डाल तोड़कर रोपें। इस नीम की डाल पर चुनरी ओढ़ाकर नीमड़ी माताजी की पूजा करें। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें।
चंद्रोदय के बाद खोलते हैं व्रत
कजरी तीज का ये व्रत करवाचौथ से काफी मिलता-जुलता है। इसमें पूरे दिन व्रत रखते हैं और शाम को चंद्रोदय के बाद व्रत खोला जाता है। कजरी तीज के दिन जौ, गेहूं, चने और चावल के सत्तू में घी और मेवा मिलाकर तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। चंद्रोदय के बाद भोजन करके व्रत तोड़ा जाता है।
कजरी तीज पर सुनें ये व्रत कथा
एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण का परिवार रहता था। ब्राह्मण की पत्नी ने भाद्रपद महीने में आने वाली कजरी तीज का व्रत रखा और ब्राह्मण से कहा, हे स्वामी आज मेरा तीज व्रत है। कहीं से मेरे लिए चने का सत्तू ले आइए लेकिन ब्राह्मण ने परेशान होकर कहा कि मैं सत्तू कहां से लेकर आऊं भाग्यवान। इस पर ब्राह्मण की पत्नी ने कहा कि मुझे किसी भी कीमत पर चने का सत्तू चाहिए। इतना सुनकर ब्राह्मण रात के समय घर से निकल पड़ा। वह सीधे साहूकार की दुकान में गया और चने की दाल, घी, शक्कर आदि मिलाकर सवा किलो सत्तू बना लिया। इतना करने के बाद ब्राह्मण अपनी पोटली बांधकर जाने लगा। तभी खटपट की आवाज सुनकर साहूकार के नौकर जाग गए और वह चोर-चोर आवाज लगाने लगे।
ब्राह्मण को उन्होंने पकड़ लिया साहूकार भी वहां पहुंच गया। ब्राह्मण ने कहा कि मैं बहुत गरीब हूं और मेरी पत्नी ने आज तीज का व्रत रखा है इसलिए मैंने यहां से सिर्फ सवा किलो का सत्तू बनाकर लिया है। ब्राह्मण की तलाशी ली गई तो सत्तू के अलावा कुछ भी नहीं निकला। उधर चांद निकल आया था और ब्राह्मण की पत्नी इंतजार कर रही थी। साहूकार ने कहा कि आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा। उसने ब्राह्मण को सत्तू, गहने, रुपये, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर अच्छे से विदा किया। सबने मिलकर कजली माता की पूजा की।