विजया एकादशी व्रत के नियम और जरूरी सावधानियां, भूलकर न तोड़ें तुलसी के पत्ते

विजया एकादशी व्रत के दौरान महंगी पड़ेगी ये गलती
अनजाने में हुए पाप खत्म करने का खास मौका
विजया एकादशी के दौरान इन बातों पर दें ध्यान
हर माह में दो एकादशी पड़ती है। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। ये दोनों तिथियां भगवान विष्णु को समर्पित मानी जाती हैं। इस दिन व्रत रखने से शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं। साथ ही अनजाने में हुए पाप भी खत्म होते हैं और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, एकादशी व्रत 24 फरवरी को पड़ रहा है। इसका पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है। ऐसे में विजया एकादशी व्रत का पारण 25 फरवरी को सुबह 06 बजकर 50 मिनट से लेकर 09 बजकर 08 मिनट के बीच किया जाएगा है।
एकादशी के दिन मस्तक पर सफेद चन्दन या गोपी चन्दन लगाकर पूजन करने का खास महत्व है। इस दिन श्रीहरि को पंचामृत, फूल और इसी ऋतु का कोई फल अर्पित करें। एक पहर का उपवास जरूर रखें और एक वेला पूर्ण सात्विक आहार ग्रहण करें। शाम को भोजन करने के पहले उपासना और आरती जरूर करें।
दही, दूध और फलों को खाना भी एकादशी पर अच्छा माना जाता है। विजया एकादशी पर सुबह उठकर स्नान किया जाता है। इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनना बेहद शुभ माना जाता है। सुबह सबेरे से ही व्रत का प्रण लेकर पूजा पाठ शुरू कर दिया जाता है।
विजया एकादशी व्रत के नियम और जरूरी सावधानियां
एकादशी व्रत को विधिपूर्वक और पूर्ण श्रद्धा के साथ करना चाहिए।
इस दिन दान करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
इस दिन घर और मंदिर की सफाई का खास ध्यान देना चाहिए।
भगवान विष्णु को प्रिय भोग अर्पित करें।
भोग की थाली में तुलसी के पत्ते जरूर शामिल करें।
तुलसी माता की पूजा-अर्चना जरूर करें।
विजया एकादशी पर क्या न करें
एकादशी के दिन चावल का सेवन न करें, इसे वर्जित माना जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से माता लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं और व्रत टूट सकता है। इस दिन तुलसी से जुड़े विशेष नियमों का पालन करना चाहिए। तुलसी को किसी भी तरह की हानि नहीं पहुंचानी चाहिए, न ही तुलसी के पत्ते या मंजरी तोड़नी चाहिए। ऐसा करने से माता लक्ष्मी रूठ सकती हैं।
एकादशी तिथि के दिन काले रंग के वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए। इसकी जगह पीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह रंग भगवान विष्णु को प्रिय है। इन सभी नियमों का पालन करते हुए अगर श्रद्धा और विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाए, तो एकादशी व्रत का अधिकतम फल मिलता है और भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।