एलबीएस के छात्र छात्राओं की शैक्षिक औद्योगिक भ्रमण, जाना पारले-जी बिस्कुट का इतिहास
पारले-जी फैक्ट्री का बच्चों ने किया दौरा
पारले-जी बिस्कुट का इतिहास जाना
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चंदौली नगर स्थित वार्ड नंबर 5 भैरवनाथ कॉलोनी एनबीएस इंटरनेशनल स्कूल के छात्र-छात्राओं ने औद्योगिक क्षेत्र का भ्रमण कर औद्योगिक में बनाए जाने वाले प्रोडक्ट के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की। ज्ञात हो कि जनपद चंदौली स्थित रामनगर औद्योगिक क्षेत्र में अपनी पहचान के मोहताज नहीं पारले-जी के प्रोडक्ट के बारे में नजदीकियों से जाना कंपनी कंपनी व प्रोडक्ट के बारे में अजीत श्रीवास्तव द्वारा काफी गहराइयों से छात्र-छात्राओं को बताया गया की बिस्कुट का निर्माण कब और कहां हुआ था इसको बनाया कैसे जाता है इन सारी चीजों की जानकारी बच्चों को दी गई जैसे साल 1929 की बात है। सिल्क व्यापारी मोहनलाल दयाल ने मुंबई के विले पारले इलाके में एक पुरानी बंद पड़ी फैक्ट्री खरीदी। इसे उन्होंने कन्फेक्शनरी बनाने के लिए तैयार किया।
दरअसल, मोहनलाल स्वदेशी आंदोलन से प्रभावित थे। कुछ साल पहले वो जर्मनी गए और कन्फेक्शनरी बनाने की कला सीखी। 1929 में ही वो कन्फेशनरी मेकिंग मशीन लेकर भारत वापस लौटे थे तभी से पारले बिस्कुट शुरुआत हुईयह दूध और गेहूं के गुणवत्ता से भरपुर होते हैं और इसके नाम का जी खसतौर पर ग्लुकोस और जीनीयस प्रदर्शीत करता है जो शरीर और मस्तिष्क के लिए ऊर्जा का स्रोत है।
यह गेहूं के आटे, शक्कर, आधा हाइड्रोजीनेटड खाद्य वनस्पति तेल, इनवर्ट सिरप, लीव्निंग पदार्थ, नमक, मिल्क सोलीड, पायसी पदार्थ, मिले हुए स्वाद, ग्लुकोज़ और लेव्युलोस से बनता है। इसका स्वाद इतना सौम्य और संतुलित होता है कि यह दोनो बच्चो और बड़ो को पसंद आता है। भारत में पारले जी चाय या कॉफी के साथ परोसने वाला मशहुर सामग्री है और लोग अकसर खाने में देरी होने पर इसपर ऊर्जा के लिए निर्भर होते हैं।
इस मौके पर स्कूल के मैनेजर मनोज कुमार सिंह,प्रधानाचार्या सारिका सिंह, संपूर्णानंद तिवारी, संस्कार, प्रदीप प्रजापति,काजल, रोहित मौर्य, शिखा सिंह,अर्पित गुप्ता, आयुष मौर्य, यश पांडेय, ज्योति पाल,सौम्या यादव, रुचि मौजूद रहे