रुंगटा का अपहरण कर कोलमंडी पर वर्चस्व स्थापित करना चाहता था मुख्तार अंसारी
सिंगरौली में कोल माइनिंग पर थी नजर
मुख्तार ने नंद किशोर रुंगटा से मांगी थी हिस्सेदारी
आज तक रुंगटा का कोई अतापता नहीं
यदा-कदा होती है घटना की चर्चा
बता दें कि सूत्रों के अनुसार मुख्तार ने उनसे इस कारोबार में हिस्सेदारी मांगी थी। नाम नहीं छापने की शर्त पर पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि 22 जनवरी 1997 को नंद किशोर रुंगटा भेलूपुर थाना क्षेत्र स्थित अपने घर में बने कार्यालय में बैठे थे। उस दिन शाम लगभग साढ़े पांच बजे एक व्यक्ति ने उनके गार्ड के जरिये उन तक संदेश पहुंचाया कि विधायक जी बाहर गाड़ी में बैठे हैं और उनसे मिलना चाहते है। इसके नंद किशोर रुंगटा आए और गाड़ी के पास खड़े होकर उसमें बैठे विधायक के साथ तीन से चार मिनट तक बातचीत की। इसके बाद उनकी स्टीम गाड़ी में बैठ कर कहीं चले गए।
उसी रात नंद किशोर रुंगटा के अपहरण की सूचना परिवार को लैंडलाइन पर आए फोन के जरिये मिली। इसके नंद किशोर रुंगटा के भाई ने महावीर प्रसाद ने भेलूपुर थाने में एक दरोगा व अज्ञात के विरुद्ध अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया। घटना के पांचवें दिन 26 जनवरी 1997 में अपहरणकर्ताओं ने पांच करोड़ रुपये की फिरौती मांगी।
सीबीआई की ओर से दाखिल आरोप में पत्र में बताया गया था कि अपहरण के बाद नंद किशोर को इलाहाबाद (प्रयागराज) में रखा गया था। परिवार वालों ने उनके जिंदा होने की आस बहुत पहले ही छोड़ दी है, लेकिन आज भी 22 जनवरी 1997 की शाम परिवार के लोग नहीं भूल पाते हैं।
ऑडियो कैसेट मिला, नहीं मिले रुंगटा
परिवार के लोगों ने बताया कि 11 फरवरी को उनके पड़ोसी के घर भी फोन आया था और मुगलसराय से लगभग 35 किलोमीटर दूर सासाराम 82 किलोमीटर लिखे माइल स्टोन पर रखे एक पैकेट में नंद किशोर रुंगटा के जीवित होने के सबूत मौजूद हैं। पैकेट में एक ऑडियो कैसेट था। सूत्रों के अनुसार परिवार के लोग उन्हें ढूंढते हुए पटना तक भी गए थे।
इस मामले में काफी प्रयास के बाद भी नंद किशोर रुंगटा का पता नहीं लग पाने पर उनकी पत्नी शांति देवी की मांग पर हाईकोर्ट ने पूरे मामले की जांच को सीबीआई को सौंप दिया था। फरवरी 1998 में सीबीआई ने लखनऊ स्थित न्यायालय में मुख्तार अंसारी समेत नौ लोगों के विरुद्ध अपहरणकांड में आरोप पत्र दाखिल किया था।
इस संबंध में न्यायालय ने जून 2000 में मुख्तार अंसारी समेत अन्य आरोपियों को अपहरण की साजिश समेत अन्य धाराओं से मुक्त कर दिया। हालांकि 27 वर्ष बाद भी नंद किशोर रुंगटा का कहीं पता नहीं चल सका।