सुहागिनों ने पति की दीर्घायु के लिए रखा व्रत
चंदौली जिले के अलीनगर जनपद में महिलाओं के अचल सुहाग की मंगल कामना को लेकर शनिवार को निर्जला करवा चौथ व्रत रखा गया । इस दौरान दिनभर निर्जला व्रत रखने के पश्चात रात में चांद का चलनि से दर्शन कर अपने के दीर्घायु होने की कामना की। इसके पूर्व महिलाओं ने भगवान गणेश एवं माता गौरी का विधिवत पूजन अर्चन किया ।
इस दौरान महिलाओं ने सोलह सिंगार कर अपने ईस्टसे अपने पति की मंगल कामना के साथ निर्जला व्रत के विभिन्न नियमों का विधान पूर्वक पालन करते हुए करवा चौथ के व्रत को किया । पौराणिक कथाओं के अनुसार चौथ तिथि को मिट्टी के बने विशेष पात्र अर्थात करवा से चंद्रमा को जल देने के इस क्रिया को करवा चौथ के नाम से जाना जाता है । महिलाओं द्वारा करवा चौथ मूलतःअपने पति को दीर्घायु होने के लिए किया जाता है । करवा चौथ के सुबह ही महिलाओं द्वारा स्नान ध्यान कर भगवान गणेश एवं गौरी का पूजन अर्चन किया जाता है । उत्साहित महिलाओं द्वारा मेहंदी सहित सोलह सिंगार करते हुए निर्जला व्रत किए जाने के इस व्रत को मान्यता पौराणिक है । करवा चौथ को लेकर कई दिन पहले से ही महिलाओं में उत्साह रहता है । इसकी तैयारियां कई दिनों पहले से की जाती है । इस अवसर पर पति द्वारा अपनी पत्नियों को अमुल्लू उपहार भी दिया जाता है । एक पौराणिक कथा के अनुसार एक मगरमच्छनी ने अपने पति को काल के गाल से बचाया था । उस दिन कार्तिक मास की चौथ तिथि थी । इसीलिए इस तिथि को करवा चौथ के नाम से पुरातन समय से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है । अधिकांश पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मनाये जाने वाला यह त्यौहार लगभग पूरे देश में किसी न किसी नाम से मनाया जाता है ।
अपने पति के दीघार्यु होने एवं उसके मंगल कामना के लिए किया जाने वाला यह करवा चौथ का व्रत अति महत्वपूर्ण एवं जनप्रिय ब्रत है । पति-पत्नी के बीच अनुराग बढ़ाने एवं एक दूसरे के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर करने के लिए पौराणिक आस्थाओ से परिपूर्ण यह व्रत अब पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी प्रचलित हो चला है । रात्रि में चन्द्रमा भगवान का चलनी दर्शन करने के पश्चात निर्जला व्रत रखी महिलाओं ने अपने पति का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त किया । इसके पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराने के लिए उपरांत निर्जला रखी महिलाओं को पतियों ने अपने हाथों से जल ग्रहण कराया । पति दीर्घायु होने के लिए मनाया जाने वाला यह निर्जला व्रत बड़े ही श्रद्धापूर्वक मनाया गया ।