केवल अपने भौकाल के लिए हंगामा कर रहे थे अधिवक्ता, माफी मांगते ही खत्म हो गई रिश्वतखोरी
 

धरना देने वाले अधिवक्ता एक दिन पहले तक सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे थे, लेकिन अचानक ही उनकी रणनीति बदल गई। यह बदलाव संदेह पैदा करता है।
 
Advocates Protest

घूसखोर लेखपाल के माफी मांगने पर मामला रफा-दफा

तहसील नौगढ़ में खत्म हो गई सारी रिश्वतखोरी

अधिकारी मुर्दाबाद करने वाले अधिवक्ताओं पर आया दबाव

न जाने किसके दबाव में मान गए वकील साहब

चंदौली जिले के तहसील नौगढ़ में खुलेआम रिश्वतखोरी के खिलाफ अधिवक्ताओं ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया, लेकिन जिस घूसखोर लेखपाल के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का ऐलान हुआ था, वह महज माफी मांगकर बच निकला। सवाल उठता है—कल तक आर-पार की लड़ाई की बात करने वाले अधिवक्ता आखिर किस दबाव में शांत हो गए? क्या यह मामला केवल एक माफी से खत्म हो सकता है, या फिर इसके पीछे कोई और राजनीति है?

आपको बता दें कि पांच फरवरी से शुरू हुआ न्यायिक कार्य का बहिष्कार प्रशासन के खिलाफ अधिवक्ताओं की नाराजगी को दर्शाता है। बार एसोसिएशन अध्यक्ष सत्यानंद तिवारी के नेतृत्व में अधिवक्ताओं ने तहसील गेट पर विरोध प्रदर्शन किया और चेतावनी दी कि अगर भ्रष्ट लेखपाल को निलंबित नहीं किया गया तो उग्र आंदोलन होगा। लेकिन सवाल यह उठता है कि—आखिरकार अचानक ही यह उग्र आंदोलन एक माफी पर क्यों खत्म कर दिया गया?

क्या माफी से खत्म हो सकता है भ्रष्टाचार..इससे कई सवाल भी उठते हैं...
1- घूसखोरी के खिलाफ खड़े हुए अधिवक्ता आखिरकार किस कारण शांत हुए?
2- क्या लेखपाल के माफी मांगने से नौगढ़ तहसील से भ्रष्टाचार खत्म हो गया?
3- क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ उठी आवाज को किसी दबाव में दबा दिया गया?
4- क्या भ्रष्ट लेखपाल को संरक्षण दिया जा रहा है?

अधिवक्ताओं की रणनीति में बदलाव क्यों?
धरना देने वाले अधिवक्ता एक दिन पहले तक सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे थे, लेकिन अचानक ही उनकी रणनीति बदल गई। यह बदलाव संदेह पैदा करता है। ऐसा लगता है कि नेतागिरी चमकाने वाले कुछ लोगों ने प्रशासन ने कोई गुप्त समझौता कराया है, जिसके कारण अधिवक्ता बैकफुट पर हो गए। वहीं कुछ लोग कहने लगे हैं कि अगर वकील अब कोई और आंदोलन का मूड बनाएंगे तो कोई सपोर्ट नहीं करेगा। ऐसा लग रहा है कि उनका विरोध केवल दिखावटी था।

सरकार और प्रशासन को अल्टीमेटम या मात्र दिखावा?
अधिवक्ताओं ने चेतावनी दी थी कि यदि दोषी लेखपाल को बर्खास्त नहीं किया गया, तो वे कानून अपने हाथ में लेने को मजबूर होंगे। लेकिन जब भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक कदम उठाने का वक्त आया, तो आंदोलन अचानक ठंडा कैसे पड़ गया। अगर प्रशासन भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा कदम नहीं उठाता और अधिवक्ताओं का संघर्ष केवल माफी तक सीमित रह जाता है, तो यह पूरे आंदोलन की गंभीरता पर सवाल खड़े करता है। क्या यह सच में न्याय की लड़ाई थी, या फिर केवल एक दिखावटी प्रदर्शन?