इसलिए सब्जी को छोड़ धान और गेहूं की खेती पर जोर दे किसान, सोचने वाली है बात
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नौगढ़ क्षेत्र में स्थित चंद्रप्रभा नदी के किनारे बसे कई गांव में सब्जियों की खेती अब नहीं हो रही है। यहां के लोग सिर्फ धान और गेहूं की खेती कर रहे हैं। नदी किनारे बसे ज्यादातर किसान परवल, बैंगन सहित दलहनी और तिलहनी की खेती किया करते थे।
 

पहले पड़ोसी देशों में जाती थी सब्जियां

अब कम हो गयी खेती

अधिकारियों ने भी नहीं दिया ध्यान

 मिट्टी की उत्पादकता भी होने लगी कम

अब फिर से सोचने की जरूरत

 

चंदौली जिले के नौगढ़ क्षेत्र में स्थित चंद्रप्रभा नदी के किनारे बसे कई गांव में सब्जियों की खेती अब नहीं हो रही है। यहां के लोग सिर्फ धान और गेहूं की खेती कर रहे हैं। नदी किनारे बसे ज्यादातर किसान परवल, बैंगन सहित दलहनी और तिलहनी की खेती किया करते थे। यहां के सब्जियों की मांग करांची और काठमांडू में भी हुआ करती थी। गर्मियों में चंद्रप्रभा नदी का पानी सूखने और मिट्टी की उत्पादकता कम होने से सब्जियों की पैदावार बंद हो गई।

आपको बता दें कि किसानों का कहना है की मिट्टी की सेहत खराब होने से फसलों में तमाम तरह की बीमारी और कीड़े लग जाते हैं। दूसरी तरफ नीलगाय फसलों को खराब कर दे रही हैं। ऐसे में केवल धान और गेहूं की खेती हो रही है।

बताते चलें कि चंद्रप्रभा नदी चकिया और नौगढ़ के बीच चंद्रप्रभा डैम से निकलती है। वहां से चकिया होते हुए मिर्जापुर जिले के जमालपुर होते हुए बबुरी तक आती है। नदी किनारे बसे विजयपुरवा, सिकंदरपुर, शेरपुर, करेमुआ, भैसही सहित दर्जनों गांव बसे हैं। चंद्रप्रभा बांध के क्षतिग्रस्त और रिसाव के चलते बांध का पानी गर्मी के दिनों में नाम मात्र हो जाता है।

इसके चलते नदी पूरी तरह से सूख जाती है। करीब 55 किमी लंबी नदी का प्रवाह अब सिर्फ बारिश के दिनों में ही देखने को मिलता है। यहां के किसान नदी के पानी से परवल, बैगन सहित कई प्रकार की सब्जियों की खेती हुआ करती थी। करेमुआ गांव का बैंगन और परवल कोलकाता से कराची और काठमांडू तक जाता था। लेकिन अब उसे कोई पूछने वाला नहीं है।

अधिकारियों का दावा है कि ज्यादा पैदावार के लिए बड़े पैमाने पर कीटनाशकों और उर्वरकों के इस्तेमाल के चलते अब गांवों के खेतों से ऑर्गनिक कार्बन कंटेंट लगभग गायब हो चुका है। इसके कारण देश-विदेश में इनकी मांग कम हुयी है। 

पूर्व प्रधान व किसान राजकुमार मौर्य ने बताया कि गांव के लोग बैंगन की खेती करते थे। लेकिन गांव में अब कोई बैंगन नहीं उगाना चाहता। एक वक्त था जब गांव का बैंगन सब्जी मंडी में पहुंचता था, लूट मच जाती थी। लाग आज भी करेमुआ का बैंगन ढूंढते हैं।

किसान संतोष मौर्य ने बताया कि हमारे गांव से सटी चंद्रप्रभा नदी पहले किसानों के लिए वरदान हुआ करती थी। इसके पानी से किसान सिंचाई कर लिया करते थे। यह नदी गर्मियों में सूख जाती है। नीलगाय भी फसलों को खराब कर दे रही हैं।

जिले के मृदा प्रयोगशाला के प्रभारी शुभम कुमार मौर्य ने बताया कि में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का इस्तेमाल करने से खेतों में ऑर्गेनिक कार्बन का स्तर 0.2 से 0.4 फीसदी रह गया है, जबकि वह 0.8 फीसदी से ज्यादा होना चाहिए। ऑर्गेनिक कार्बन में सभी पोषक तत्व होते हैं। इसकी कमी से पौधे का विकास रुक जाता है।

उनमें रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभाव के चलते पोषक तत्व घटकर 0.2 फीसदी रह गया है। नौगढ़ इलाके को छोड़ दें तो चकिया, चंदौली, चहनिया में आर्गेनिक कार्बन की स्थिति निचले पायदान पर पहुंच चुकी है। जंगल और पहाड़ों के चलते नौगढ़ में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा अभी 0.5 फीसदी है।

इस संबंध में चंदौली जिले के जिला उद्यान अधिकारी शीतल प्रसाद वर्मा ने बताया कि किसानों को सब्जियों की खेती करने के लिए फिर से प्रेरित किया जाएगा। चंद्रप्रभा नदी के किनारे बसे गांव के किसानों से बातचीत कर निदेशालय को प्रस्ताव भेजा जाएगा।