इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद बदलेंगे हालात, रबर स्टैंप टाइप महिलाएं नहीं बनेंगी प्रधान
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चंदौली जिले में पंचायतों में महिलाओं को केवल अंगूठा लगाने वाली और कागजों पर साइन करने वाले काम तक सीमित रखा गया है। ग्राम, क्षेत्र पंचायत के साथ-साथ जिला पंचायतों की बैठकों व कार्यों को पत्नी की जगह पति ही किया करते हैं।  
 

महिला सशक्तिकरण के अभियान को बचाने की पहल

रबर स्टैंप टाइप महिलाएं नहीं बनेंगी प्रधान

चुनाव में देना होगा एक और हलफनामा

 

चंदौली जिले में पंचायतों में महिलाओं को केवल अंगूठा लगाने वाली और कागजों पर साइन करने वाले काम तक सीमित रखा गया है। ग्राम, क्षेत्र पंचायत के साथ-साथ जिला पंचायतों की बैठकों व कार्यों को पत्नी की जगह पति ही किया करते हैं।  महिलाओं की स्थिति केवल खाना पूर्ति और रबर स्टैंप वाली बनकर रह गई है।  महिलाएं ज्यादातर केवल कागजों पर हस्ताक्षर या अंगूठा लगाने तक सीमित है उनका सारा कामकाज उनके पति, देवर या बेटों के द्वारा किया जा रहा है। वर्तमान समय में जिले में गांव की ग्राम पंचायत और क्षेत्र पंचायत की स्थिति तो और बुरी है, यहां पर ज्यादातर सारा काम महिलाओं के परिवार के लोगों के द्वारा किया जाता है।  


कहा जाता है कि वर्तमान समय में जिले की पंचायत में महिलाओं की 33 प्रतिशत हिस्सेदारी है। महिला ग्राम प्रधानों और क्षेत्र पंचायत सदस्यों को अपने अपने इलाके में काम करने नहीं दिया जाता है। बल्कि उनसे दस्तखत कराकर उनको घर में रहने के लिए मजबूर किया जाता है। हालांकि अफसरों का मानना है कि कोर्ट के आदेश व हलफनामा लेने के बाद हो सकता है कि हालात बदल जाएं।


बताते चलें कि कुल 734 ग्राम पंचायतों में से 242 महिला ग्राम प्रधान हैं। इनमें कई तो निरक्षर भी हैं, जिनका काम उनके पति ही करते हैं। वहीं कुछ महिला ग्राम प्रधान तो जीतने के बाद घर से निकली तक नहीं ।सारा कार्य उनके बेटे और पति करते हैं। ग्राम सभा, बैठक आदि में उनके परिजन ही शामिल होते हैं। यह सब जानने के बाद भी खंड विकास अधिकारी, जिला पंचायती राज अधिकारी खामोश बने रहते हैं। 


इसके पीछे महिलाएं व पंचायत प्रतिनिधियों के पतियों या बेटों का अलग अलग तर्क है। परिजन कहते हैं कि हर गांव में पंचायत अधिकारी न होने और जरूरत से ज्यादा दौड़भाग होने के कारण सहयोग करना पड़ता है। एक महिला इतनी दौड़भाग नहीं कर पाएगी। अगर सरकार यह व्यवस्था कर दे कि ग्राम पंचायत अधिकारी व अन्य सहयोगी गांव में सोमवार से शनिवार तक रहेंगे। कागजी कार्यों व दौड़भाग में सहयोग करेंगे तो ही स्थिति बदलेगी। हालांकि अफसरों का दावा है कोर्ट के नए आदेश के बाद अब शायद इस पर लगाम लगे, क्योंकि महिलाओं को अब हलफनामा देना होगा कि अगर वह चुनाव जीतेंगी तो अपना काम खुद करेंगी। 


एक महिला ग्राम प्रधान ने कहा कि वह बैठकों में जाना चाहती हैं और काम भी करना चाहती हैं, लेकिन गंवई राजनीति व सुरक्षा के खतरों के कारण बाहर नहीं निकलती हैं। सरकारी अफसर जब मीटिंग बुलाते हैं तो उसमें जरूर जाती हैं।


एक एमए पास महिला ग्राम प्रधान ने कहा कि उसे किसी काम में कोई परेशानी नहीं होती है, लेकिन दूर दराज के इलाके में कोई कच्चा-पक्का काम हो रहा होता है तो वहां हमेशा देख रेख करने के लिए घर वालों को जाने के लिए कह देती हूं। बाकी सारा काम बहुत अच्छे से देख लेती हूं।