डिजिटल सिग्नेचर अब तक वेबसाइट पर अपडेट नहीं पर पाए साहबजी, कैसे होगा भुगतान..?

tds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_show चंदौली जिले में ग्राम प्रधानों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद शासन के फरमान पर एडीओ को गांवों की कमान सौंप दी गयी है। सरकारी अधिकारियों के द्वारा पंचायत विभाग के ब्लाक स्तरीय अधिकारियों को गांवों के विकास की बागडोर भी दे दी पर कागजी कार्रवाई को तेज करना भूल गए, जिससे अभी तक उनका
 

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चंदौली जिले में ग्राम प्रधानों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद शासन के फरमान पर एडीओ को गांवों की कमान सौंप दी गयी है। सरकारी अधिकारियों के द्वारा पंचायत विभाग के ब्लाक स्तरीय अधिकारियों को गांवों के विकास की बागडोर भी दे दी पर कागजी कार्रवाई को तेज करना भूल गए, जिससे अभी तक उनका डिजिटल सिग्नेचर पंचायती राज विभाग की वेबसाइट पर अपडेट नहीं किया गया।

इसके कारण कई गांवों में विकास कार्यों का भुगतान अटकने लगा है और मैटेरियल और लेबर कंपोनेंट का समय से पैसा न मिलने की वजह से ठेकेदार आगे काम कराने से कतरा रहे हैं। जिससे सरकार व विभाग की मंशा पर पानी फिरने वाला है।

वैसे तो सरकार के द्वारा त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। 25 दिसंबर 2020 को ग्राम प्रधानों का कार्यकाल समाप्त हो गया था। गांवों में विकास कार्यों के संचालन के लिए सहायक विकास अधिकारी प्रशासक नियुक्त किए गए। प्रशासकों को दो-दो दर्जन ग्राम पंचायतों की कमान सौंपी गई। विकास कार्यों के बदले भुगतान के लिए पंचायती राज विभाग की वेबसाइट पर प्रशासकों के डिजिटल सिग्नेचर अपलोड किए जाने थे। इसको लेकर जिलाधिकारी ने प्रशासकों को डिजिटल सिग्नेचर वेरीफाई कराने के निर्देश दिए थे, लेकिन इसको लेकर उदासीनता बरती जा रही है।

बताया जा रहा है कि इसके चलते विकास कार्यों के बदले भुगतान की प्रक्रिया ठप पड़ी है। विकास कार्यों के बदले मैटेरियल और लेबर कंपोनेंट का भुगतान अटक गया है। ऐसे में ठीकेदार आगे विकास कार्यों को जारी रखने में आनाकानी करने लगे हैं और गांवों में विकास कार्यों की रफ्तार धीमी हो गई है। इस संबंध में पंचायती राज व ग्राम विकास विभाग के जिम्मेदारी अधिकारी कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं।

गांवों में ऐसे हो रहे हैं विकास कार्य

शासन की मंशा के अनुरूप ग्राम पंचायतों में मिनी सचिवाल व सामुदायिक शौचालयों का निर्माण कराया जा रहा है। मिनी सचिवालयों का बजट 10 लाख से अधिक है जबकि पांच लाख की लागत से छह सीट वाले सामुदायिक शौचालय बन रहे हैं। कई ग्राम पंचायतों में शौचालय व सचिवालयों के लिए ईंट, बालू, सीमेंट , गिट्टी, छड़ आदि मंगाने की दरकार है लेकिन पैसा ही नहीं। इससे ठेकेदारों को परेशानी हो रही है।

ऐसी हो रही परेशानी

पंचायत चुनाव के लिए मतदान केंद्रों पर शौचालय, रैंप, विद्युतीकरण समेत अन्य कार्य कराए जाएंगे। यदि प्रशासक इसके बदले भुगतान नहीं करेंगे तो जरूरी इंतजाम कराना मुश्किल होगा। वहीं पंचायत चुनाव की तैयारी में जुटे निवर्तमान ग्राम प्रधान अब विकास कार्यों में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। इससे मुश्किलें और बढ़ गई हैं।