मां कोट भगवती के मंदिर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, साल 1752 में नीम के पेड़ के नीचे हुई थी स्थापना
 

चंदौली के सिकंदरपुर गांव में चन्द्रप्रभा नदी के तट पर स्थित राजा बलवन्त सिंह के किले (आरामगाह ) के ऊपर स्थापित कोट मां भगवती देवी का मंदिर भी शक्त्ति उपासना की एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित है।
 

कोट मां भगवती देवी का मंदिर

सैकड़ों श्रद्धालुओं ने देवी के दर्शन करके लोक मंगल की कामना

चंदौली के सिकंदरपुर गांव में चन्द्रप्रभा नदी के तट पर स्थित राजा बलवन्त सिंह के किले (आरामगाह ) के ऊपर स्थापित कोट मां भगवती देवी का मंदिर भी शक्त्ति उपासना की एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित है। जहां तंत्र-मंत्र के ज्ञाता और ज्ञानी पंडित शारदीय नवरात्र में साधनारत रहते हैं। रविवार को सैकड़ों श्रद्धालुओं ने देवी के दर्शन करके लोक मंगल की कामना की।

आपको बता दें कि मां कोट भवानी की ऐतिहासिकता की गाथा सैकड़ों वर्ष पुरानी है। मां भगवती श्रद्धा व विस्वास की प्रतिमूर्ति है। लोगों का मानना है कि सच्चे मन से मांगी गयी मुरादे देवी अवश्य पूरी करती हैं। देवी के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सारे कष्ट नष्ट हो जाते हैं।

 ग्रामीण बताते हैं कि पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा बलवन्त सिंह काल वर्ष 1752 ई0 में शक्त्ति पीठ मां भगवती देवी की स्थापना नीम के पेड़ वाले चबूतरा पिंडी के रूप में की गई थी। देवी की पूजा वर्षों तक की जाती रही। इस कोठी से सिकंदर शाह नामक जागीर राजा बलवन्त सिंह का लगान वसूली किया करता था।

उस समय सिकन्दरपुर का प्राचीन नाम दाशीपुर था। रामकुमार बताते हैं कि 1861 ई0 में महाराज साहब बहादुर काशी नरेश ( राजा ईश्वरी प्रसाद सिंह ) द्वारा स्थित आरामगाह ( किला ) प्रांगण में कोट मां भगवती देवी मंदिर का निर्माण कराकर मंदिर के पूजा पाठ राग भोग एवं सफाई व मरम्मत व देख भाल कार्य हेतु पुजारी के रूप में रामरतन पाठक निवासी सिकंदरपुर को नियुक्त करके सुपुर्द कर दिए।

बीच- बीच में महाराजा साहब का आना जाना लगा रहता था। फिर धीरे धीरे कोठी पूरी तरह से ध्वस्त हो गई थी। लेकिन बाद में विनय पाठक ने वर्ष 2000 में उक्त भूमि प्रांगण में दो कमरे मकान का निर्माण कराया गया। साथ ही वर्ष 2020 में मंदिर के आगे भव्य बरामदे व हवन कुण्ड के चबूतरे का निर्माण जन सहयोग से कराया गया। पुजारी विनय पाठक ने बताया कि मंदिर के परिसर का सुंदरीकरण,शौचालय, विद्युतीकरण,रैन बसेरा व वृक्षारोपण की आवश्यकता है।