सुशील सिंह विशेष : क्यों व कैसे हुयी थी राजनीति में इंट्री, राजनीति न करते तो और क्या करते नेताजी

चंदौली समाचार से बातचीत में सुशील सिंह ने अपने से जुड़ी कई और चीजों पर भी चर्चा की और बताया कि वह किस तरह से राजनीति में आए और कैसे सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए।
 

सुशील सिंह क्यों व कैसे हुयी थी राजनीति में इंट्री

राजनीति न करते तो और क्या करते नेताजी

इसलिए भाजपा विधायक सुशील सिंह को मुसलमान भी देते हैं वोट

तीन जिलो पर फैला है रुतबा

चंदौली जिले में सुशील सिंह एक चर्चित विधायक हैं और बहुत सारे लोग उनके राजनीतिक जीवन को तो जानते हैं लेकिन उसके बारे में बहुत सारी ऐसी गैर राजनीतिक बातें हैं, जो लोग नहीं जानते हैं, लेकिन जानना चाहते हैं। चंदौली समाचार से बातचीत में सुशील सिंह ने अपने से जुड़ी कई और चीजों पर भी चर्चा की और बताया कि वह किस तरह से राजनीति में आए और कैसे सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए।

ऐसे हुयी 22 साल की उम्र में राजनीति में इंट्री

चंदौली समाचार के एडिटर विजय तिवारी से बातचीत के दौरान विधायक सुशील सिंह ने कहा कि वैसे तो उनका परिवार कोई राजनीतिक परिवार नहीं था, उनके दादाजी एक सरकारी कर्मचारी थे और उनका आसपास के इलाके में अच्छा रसूख था। लेकिन 1995 में उनके पिता उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह ने परिवार में राजनीतिक पारी शुरू की। वह सबसे पहले 1995 में जिला पंचायत सदस्य बने और वहीं से उनके परिवार की राजनीतिक में इंट्री हो गयी। पिता की इस राजनीतिक पारी से शुरू हुई राजनीति धीरे धीरे परिवार का अंग बन गयी।

सुशील सिंह कहते हैं कि धीरे-धीरे यह ग्राफ बढ़ता गया। राजनीति में पिता चुलबुल सिंह भारतीय जनता पार्टी के करीब थे और इसीलिए भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें पहले जिला पंचायत उपाध्यक्ष और फिर अध्यक्ष की कुर्सी सौंपते हुए कुछ समय बाद उन्हें विधान परिषद का सदस्य भी बनाया। वह भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चंदौली-भदोही और वाराणसी इलाके से विधान परिषद के सदस्य चुने जाते रहे। इस जगह से वह दो बार विधान परिषद के लिए चुने गए थे। 

विधायक सुशील सिंह ने कहा कि पिताजी की राजनीतिक कार्यों में हाथ बटाते-बटाते उनकी भी दिलचस्पी राजनीति में होने लगी और वह चुनाव लड़ने की इच्छा लेकर 2002 में धानापुर आ धमके। बसपा के टिकट पर धानापुर विधानसभा सीट पर बहुत शानदार तरीके से पहला चुनाव लड़े लेकिन उन्हें नजदीकी मुकाबले में केवल 26 वोटों से हार का सामना करना पड़ा।

पहली हार से नहीं टूटा हौसला

कहते हैं कि विधानसभा का चुनाव हारने के बाद भी उन्होंने हौसला नहीं हारा और लगातार 5 सालों तक जनता के बीच बने रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि 2007 के चुनाव में उन्हें जनता ने भारी बहुमत से विजय दिलाई और यहीं से सुशील सिंह की राजनीतिक जीत का सिलसिला शुरू हुआ है, जो आज तक थमा नहीं है।

 सुशील सिंह ने बताया कि वह राजनीति में केवल इसलिए नहीं आए कि उन्हें अपना नाम कमाना है बल्कि वह सेवा के उद्देश्य से राजनीति में आए हैं। वह लगातार लोगों के बीच बने रहे इसी के चलते हर विधानसभा चुनाव के बाद उनका वोट प्रतिशत बढ़ता रहा और वह चुनाव जीतते चले गए। 

राजनीति में न होते तो क्या करते

सुशील सिंह ने यह भी कहा कि अगर वह राजनीति में नहीं आते तो वह एक बड़ा बिजनेसमैन बन जाते, क्योंकि उनके परिवार के लोग आज भी उनके बिजनेस को संभालते हैं। अब राजनीति अधिक समय देने से उधर ध्यान कम दे पाते हैं। बिजनेस के लिए समय कम बचता है, इसलिए सारा फोकस राजनीति पर ही रहता है। आज भी उनका व्यवसाय है जिसके लिए थोड़ा बहुत समय निकाल कर ध्यान देते हैं। 

अपनी पहली पसंद थी राजनीति

उन्होंने यह भी बताया कि राजनीति में आने का फैसला उनके परिवार का नहीं था, बल्कि यह उनके द्वारा लिया गया अपना फैसला था। वह अपने पिताजी के कार्यों को देख देखकर बड़े हुए थे और वह उसी से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने राजनीति को चुना और राजनीति में लगातार तीन बार विधायक का चुनाव जीतकर चौथी बार जीत का रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं।

 सुशील सिंह ने इस बात का दावा किया कि उनको हर जाति और धर्म के लोगों से वोट देते हैं क्योंकि वह जातिगत और दलगत राजनीति नहीं करते बल्कि विकास और विश्वास की राजनीति करते हैं। इसीलिए उन्होंने अपने 20 साल के राजनीतिक सफर में जनता का विश्वास हासिल किया है और जनता उनके विकास कार्यों को देख कर आशीर्वाद देती रहती है। हर साल उनका वोट बढ़ता ही जाता है। 2002 के चुनाव को अगर छोड़ दिया जाए तो उसके बाद से सुशील सिंह हमेशा अजेय प्रत्याशी के रूप में देखे जाते हैं और उनके खिलाफ लड़ने वाले सारे उम्मीदवार दहशत में रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि सुशील सिंह पार्टी के सिंबल पर चुनाव जरूर लड़ते हैं, लेकिन उनका चुनाव मैनेजमेंट बेहतरीन होता है। उन्हें न सिर्फ चुनाव लड़ना, बल्कि बखूबी तरीके से चुनाव जीतना भी आता है।

 सुशील सिंह अपने व्यक्तिगत संपर्क को और साधनों का भी उपयोग चुनाव में बखूबी करना जानते हैं। बूथ मैनेजमेंट से लेकर विशाल जनसभा के आयोजन में अगर सुशील सिंह का हाथ लगता है तो फर्क साफ नजर आता है। 

तीन जिलों तक फैला है वर्चस्व

सुशील सिंह अक्सर कहते थे कि उनके परिवार और पिता जी की राजनीतिक विरासत न सिर्फ चंदौली और बनारस तक सीमित है बल्कि उसका दायरा भदोही तक जाता है। चुलबुल सिंह इन तीनों जिलों की सीमा को टच करने वाली विधान परिषद सीट से लगातार दो बार विधायक रहे तो वहीं एक बार सुशील सिंह की चाची अन्नपूर्णा सिंह और उसके बाद उनके चाचा बृजेश सिंह विधान परिषद के सदस्य बने हुए हैं। इस तरह से देखा जाए तो लगातार चार बार से इस सीट पर उनके परिवार का दबदबा है और वह विधान परिषद की सीट पर लगातार पिछले 4 चुनाव से अपना परचम लहरा रहे हैं।

क्यों व कैसे मुसलमान देते हैं वोट

सुशील सिंह का दावा है कि उनको हर धर्म और जाति के लोग सिर्फ इसलिए वोट देते हैं क्योंकि वह हर धर्म का सम्मान किया करते हैं और जाति-धर्म और परिवारवाद की राजनीति नहीं करते हैं। लोगों का उनके ऊपर इसलिए भरोसा रहता है क्योंकि वह हमेशा सबके सुख दुख में खड़े रहते हैं। सुशील सिंह ने याद दिलाते हुए कहा कि 2007 में चुनाव जीतने के बाद 2012 में जब वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सकलडीहा विधानसभा का चुनाव लड़े थे और उस समय भी उन्हें अन्य धर्मों के साथ-साथ मुस्लिम मतदाताओं ने भरपूर साथ दिया था। इतना ही नहीं 2017 के चुनाव में बहुत सारे मुसलमानों ने वोट देने के बाद फोन भी किया था। भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मुसलमानों का समर्थन पाकर चुनाव जीतना उनके लिए काफी अच्छा अनुभव था और उन्हें उम्मीद है कि अबकी बार भी चुनाव में उन्हें हर जाति के लोगों के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय का भी वोट उसी तरह से मिलेगा, जैसे पिछले चुनाव में उन्हें मिलता था। 

कोई नहीं है टक्कर में

सुशील सिंह का दावा है कि अबकी बार सैयदराजा विधानसभा में कोई भी उम्मीदवार उन्हें टक्कर नहीं दे पाएगा, उन्होंने दावा किया कि 2017 के चुनाव में दूसरे नंबर पर उनके टक्कर विनीत सिंह से हुई थी, लेकिन अब की बार वह चंदौली जिले की राजनीति में सक्रिय नहीं है। उनका चुनाव क्षेत्र भी बदल गया है। ऐसे में कोई और उम्मीदवार उन्हें कितना टक्कर दे पाएगा, इसके बारे में वह कुछ नहीं कह सकते हैं। लेकिन जनता दोनों के कार्यों को देखेगी, तब खुद ही फैसला करेगी। भारतीय जनता पार्टी और उसके पहले के किए गए कार्य में जमीन आसमान का अंतर है। राजनीति में जिसके मन में जो कुछ भी आए वह कहे..पर जनता कामकाज व व्यवहार देखने के बाद उसी हिसाब से फैसला करेगी। उनको भरोसा है कि सैयदराजा विधानसभा में एक बार फिर उनकी एकतरफा जीत होगी।