DM के कहने पर खाद की कालाबाजारी करने वाले दुकानदारों की कृषि अधिकारी ने कसी नकेल
खरीफ अभियान 2025 को सफल बनाने की कोशिश
जिलाधिकारी के फरमान का दिखा असर
उर्वरकों की समय से आपूर्ति सुनिश्चित कराने की कोशिश
खाद की कालाबाजारी करने वालों को समझाने की कोशिश
चंदौली जिले के जिलाधिकारी चंद्र मोहन गर्ग के निर्देश पर जिला कृषि अधिकारी विनोद कुमार यादव की अध्यक्षता में खरीफ सीजन 2025 के लिए किसानों को समय पर उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु एक अहम समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में उर्वरक विनिर्माता कंपनियों के प्रतिनिधि, थोक विक्रेता, क्षेत्रीय प्रबंधक, इफको, और अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।
समितियों के माध्यम से होगी आपूर्ति सुनिश्चित
बैठक में तय किया गया कि प्राइवेट विनिर्माता कंपनियों द्वारा सहकारी समितियों के लिए आवंटित उर्वरकों की आपूर्ति समय से सुनिश्चित कराई जाएगी। इसके लिए समितियों को पहले से ही संबंधित खातों में धनराशि जमा करनी होगी। इस प्रक्रिया में जिला प्रबंधक पीसीएफ से समन्वय स्थापित कर समय पर उर्वरक किसानों तक पहुंचाया जाएगा।
सतत निगरानी और पारदर्शी वितरण प्रणाली
जनपद के हर क्षेत्र में उर्वरकों के वितरण की निगरानी के लिए कृषि विभाग, राजस्व विभाग, और जनपद स्तरीय अधिकारियों की ड्यूटी प्रेक्षक के रूप में लगाई गई है। साथ ही यह निर्देश दिया गया कि उर्वरक केवल पीओएस मशीन के माध्यम से किसानों की जोत के अनुसार ही वितरित किया जाए और उन्हें रसीद अनिवार्य रूप से प्रदान की जाए।
कालाबाजारी और टैगिंग पर सख्ती
बैठक में यह भी स्पष्ट किया गया कि किसी भी स्थिति में डीएपी और यूरिया के साथ किसी अन्य उत्पाद की टैगिंग नहीं की जाएगी। यदि ओवर रेटिंग या कालाबाजारी का कोई मामला सामने आता है तो संबंधित विक्रेता या संस्था पर कड़ी विधिक कार्रवाई की जाएगी।
उपलब्ध उर्वरकों की स्थिति
जिला कृषि अधिकारी ने जानकारी दी कि इस समय जनपद में पर्याप्त मात्रा में उर्वरक उपलब्ध हैं, जिनमें शामिल हैं:----
17818 मैट्रिक टन यूरिया
3468 मैट्रिक टन डीएपी
811 मैट्रिक टन एमओपी
2358 मैट्रिक टन एनपीके
11704 मैट्रिक टन एसएसपी
साथ ही, इफको की एक रेक से 850 मैट्रिक टन डीएपी और 500 मैट्रिक टन एनपीके जनपद को प्राप्त हो चुका है, जिसे प्राथमिकता के आधार पर सहकारी समितियों को वितरित किया जा रहा है।
किसानों को दिया गया अहम संदेश
किसानों से अपील की गई कि वे अपनी फसल की आवश्यकता के अनुसार ही उर्वरकों का प्रयोग करें, क्योंकि जरूरत से ज्यादा उर्वरक उपयोग करने से न केवल खेती की लागत बढ़ती है, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह बैठक प्रशासन की किसानों के प्रति प्रतिबद्धता और पारदर्शी उर्वरक वितरण प्रणाली को सुदृढ़ करने की दिशा में एक अहम कदम साबित हो सकती है।