अबकी बार बिना रामकिशुन यादव के चुनाव जीतेगी सपा, ऐसी है पार्टी की रणनीति

समाजवादी पार्टी के विधायक और पार्टी के प्रत्याशी खुद नहीं चाहते कि रामकिशुन यादव उनके साथ मंच साझा करें और चुनाव प्रचार में दखल दें। उनको यह लगता है कि रामकिशुन यादव के पास केवल मुगलसराय के कुछ यादवों के वोट हैं।
 

सपा प्रत्याशी को नहीं चाहिए पूर्व सांसद का साथ

रामकिशुन बोले- चुनाव और जीत उनको मुबारक

सलाहकार ही कर रहे हैं पार्टी को हराने की रणनीति पर काम

सुरेन्द्र पटेल की कोशिश भी हो रही है फेल

चंदौली जिले में नेताओं के आपसी मनमुटाव और गुटबाजी के चलते समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। ऐसा लग रहा है कि एक दूसरे को निपटने के चक्कर में अबकी बार भी समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी चंदौली जिले की दलीय-राजनीति का शिकार होगा और चुनाव में हार का स्वाद चखने के लिए मजबूर हो जाएगा। अभी भी लोकसभा चुनाव में करीब 3 सप्ताह का समय बचा हुआ है। अगर इस दौरान समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी और आला कमान ने अपनी आंखें नहीं खोलीं, तो चंदौली जनपद में भारतीय जनता पार्टी को हैट्रिक लगाने से कोई नहीं रोक सकता है, क्योंकि अबकी बार बहुजन समाज पार्टी के वोटों में भी सपा के वोटों में सेंध लगाने से बाज नहीं आएगी।

 आपको बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में चंदौली संसदीय सीट समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन तथा चौहान वोटरों के एकजुट होने के बावजूद भी समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे संजय चौहान नजदीकी वोटों से चुनावी हार का सामना करना पड़ा था, क्योंकि वह भी चंदौली जिले के सभी नेताओं का सहयोग लेने से चूक गए थे। उसी के चलते भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडेय एक नजदीकी मुकाबले में इस सीट को लगातार दूसरी बार जीत ली। कुछ वैसा ही नजारा  एक बार फिर चंदौली जिले की इस सीट पर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी और दूसरे धड़े के नाराज लोगों के बीच दिख रहा है। आपसी कलह व खींचतान के चलते देखा जा रहा है कि नेताओं के साथ-साथ समर्थक व कार्यकर्ता गुटों में बंट गए हैं।

नामांकन के बाद बढ़ेगी कलह
पहले तो ऐसी उम्मीद थी कि नामांकन के बाद से सारी नाराजगी दूर करके लोगों को सपा प्रत्याशी एकजुट कर लेंगे, क्योंकि इसके लिए चुनाव संचालन समिति का कोऑर्डिनेटर बने पूर्व मंत्री व वरिष्ठ नेता सुरेन्द्र पटेल अपनी ओर से पूर्व सांसद रामकिशुन यादव व मनोज सिंह डब्लू को मनाने के लिए घर तक गए थे। यह माना जा रहा था कि सुरेन्द्र पटेल की कोशिश रंग लाएगी और लोग कंधे से कंधा मिलाकर समाजवादी पार्टी और इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार को जीत दिलाने के लिए आगे आएंगे, लेकिन नामांकन के दिन भी पार्टी के अंदर आपसी मनमुटाव और एक दूसरे को नीचा दिखाने की आदत की वजह से समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद रामकिशुन यादव इस पूरे कार्यक्रम से दूर रहे।

सपा प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह को रामकिशुन की जरूरत नहीं
वहीं पत्रकारों के सवाल के जवाब में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह ने कहा कि उनको रामकिशुन यादव के पिता और पूर्व विधायक गंजी प्रसाद का आशीर्वाद प्राप्त है। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह के द्वारा रामकिशुन का यादव का नाम लिए बिना यह संकेत दे दिया कि शायद उनको रामकिशुन यादव के सहयोग की जरूरत नहीं है। रामकिशुन को लेकर चुप्पी साधे रखना संकेत दे रहा है कि रामकिशुन यादव की जरूरत न समाजवादी पार्टी को है और न ही उम्मीदवार को है। यह बात वीरेंद्र सिंह ने भले ही अपने मुंह से नहीं कही हो, लेकिन इसका अंदाजा समाजवादी पार्टी पूर्व सांसद रामकिशुन यादव को भी हो गया है। इसीलिए उन्होंने नामांकन के बाद पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए खुले तौर पर इसे स्वीकार किया।

रामकिशुन ने कहा कि समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को उनकी जरूरत नहीं है। इसीलिए वह चुनाव प्रचार और नामांकन से दूर हैं, लेकिन वह समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता हैं और राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए काम करते रहेंगे। एक कार्यकर्ता के रूप में आखिरी दम तक वह समाजवादी पार्टी के साथ हैं और आगे भी साथ रहेंगे।

ये हैं असली वजह
चंदौली समाचार ने जब नामांकन से दूरी बनाए रखने की हकीकत पता करने की कोशिश की तो पता चला कि समाजवादी सरकार में पूर्व मंत्री और चंदौली लोकसभा चुनाव संचालन समिति के कोआर्डिनेटर बनाए गए सुरेंद्र पटेल ने पूर्व सांसद रामकिशन यादव से बातचीत करके यह कहा था कि वह नामांकन के दिन उनके घर आएंगे और उनको अपने साथ लेकर नामांकन स्थल पर चलेंगे।  इसके लिए रामकिशुन यादव लगभग 10 बजे तक अपने घर पर बैठकर सुरेंद्र पटेल का इंतजार करते रहे, लेकिन सुरेंद्र पटेल पार्टी प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह की इच्छा का सम्मान करते हुए रामकिशुन यादव के घर नहीं गए, बल्कि सीधे नामांकन स्थल के पास होने वाली जनसभा में पहुंच गए। जब रामकिशुन ने सुरेन्द्र पटेल को घर आने में हो रही देरी का कारण जानना चाहा तो उन्हें कुछ ऐसा जवाब मिला जिससे उनको करारा झटका लगा।

सूत्रों से मिली जानकारी में कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के विधायक और पार्टी के प्रत्याशी खुद नहीं चाहते कि रामकिशुन यादव उनके साथ मंच साझा करें और चुनाव प्रचार में दखल दें। उनको यह लगता है कि रामकिशुन यादव के पास केवल मुगलसराय के कुछ यादवों के वोट हैं। इसलिए उनकी ज्यादा अहमियत अब नहीं रह गयी है। पूरे प्रदेश में यादव समाज समाजवादी पार्टी का सिंबल देख मतदान करता है। ऐसे में रामकिशुन यादव के साथ रहने और ना रहने का कोई फर्क नहीं पड़ता। इसीलिए अब दोनों ने रामकिशुन को दरकिनार रखने की रणनीति बनायी है और इसके संकेत भी पूर्व सांसद रामकिशुन यादव को दे दिया है।

 जब चंदौली समाचार इस बारे में मिल रही इनफार्मेशन को जांचने व परखने की कोशिश की और यह जानना चाहा कि आखिर रामकिशुन यादव नामांकन के दौरान क्यों नहीं गए तो पता चला कि उनको सम्मान के साथ बुलाया ही नहीं गया था।

चुनाव और जीत उनको मुबारक
चंदौली समाचार से बात करने के दौरान कहा कि उनको न बुलाकर पार्टी प्रत्याशी और पार्टी के पदाधिकारी ने उनका कोई अपमान नहीं किया है। पूरे देश और प्रदेश में देखा कि कन्नौज में अखिलेश यादव के द्वारा मंदिर में पूजा किए जाने के बाद मंदिर को एक जाति विशेष के लोगों ने धोया था। उससे जब अखिलेश यादव का अनादर नहीं हुआ तो नामांकन के दौरान मुझे ना बुलाए जाने से मेरी प्रतिष्ठा को कोई आंच नहीं आएगी। हो सकता है कि समाजवादी पार्टी को एक गलत संदेश जाए । जिससे पार्टी को थोड़ा बहुत नुकसान जरूर हो जाए। फिर भी मैं समाजवादी पार्टी का एक कार्यकर्ता हूं और पार्टी के निर्देश पर पार्टी के लिए काम करता रहूंगा।  पार्टी के प्रत्याशी का काम पार्टी के कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं से सहयोग लेना होता है। अगर उसे सहयोग की जरूरत नहीं है तो इस बारे में वह कोई टिप्पणी नहीं कर सकते हैं। चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार या खुद ही तय करता है कि उसे चुनाव जीतना है या हारना है।

रामकिशुन यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के पास बहुत अच्छे सलाहकार हैं और उन्हें लगता है कि वे उनको चुनाव जितवा देंगे.. तो अच्छी बात है। अगर रामकिशुन यादव के बगैर ही वीरेंद्र सिंह की जीत हो रही है तो यह चुनाव और जीत उनको मुबारक हो।