झांसी की घटना से कितना सबक लेंगे चंदौली जिला अस्पताल के CMS, 28 अग्निशमन यंत्र यूं ही हो जाएंगे बेकार
अस्पताल में कितने लोगों को है अग्निशमन यंत्र चलाने की जिम्मेदारी
जिला अस्पताल में अग्निशमन यंत्र बने हैं शोपीस
अग्निशमन यंत्रों को लेकर मॉकड्रिल करने की जरूरत
चंदौली जिले में झांसी मेडिकल कॉलेज में आग से नवजात शिशुओं की मौत की घटना ने सबको मर्माहत कर दिया है। लापरवाही के चलते हुई इस घटना ने सारे इंतजामों की पोल खोलकर रख दी है। बाबा कीनाराम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध पं. कमलापति त्रिपाठी जिला अस्पताल का भी हाल कुछ ऐसा ही है। यहां लगे अग्निशमन यंत्र शो पीस बने हुए हैं। अग्निशमन यंत्र को संचालित करने का तरीका तक स्वास्थ्य कर्मियों को मालूम नहीं है। यही हाल सीएचसी और पीएचसी की भी है।
आपको बता दें कि चंदौली में दो जिला अस्पताल, चार सीएचसी और पांच पीएचसी हैं। सबसे ज्यादा भीड़ जिला अस्पताल चंदौली में होती है। जिला अस्पताल में कुल 28 प्वाइंटों पर अग्निशमन सिलंडर यंत्र लगाए गए हैं। इसमें 12 बेड के बच्चों के एसएनसीयू वार्ड के अलावा इमरजेंसी, आईसोलेन वार्ड, पुरूष व महिला वार्ड, इंडोर व आउट डोर में अग्नि शमन सिलेंडर लगाया गया है। लेकिन इसमें अधिकांश शो पीस ही बने हुए हैं। यही नहीं अगलगी की घटना होने पर अग्निशमन सिलिंडर को संचालित करने का तरीका तक स्वास्थ्य कर्मियों को मालूम नहीं है।
बताते चलें कि जिला अस्पताल में उच्च क्षमता के चार आक्सीजन प्लांट हैं। लेकिन बेड तक लगे पाइप से मरीजों को आक्सीजन मुहैया नहीं कराया जाता है। क्योंकि इसके लिए संसाधन पूरा नहीं है। आलम यह है कि 80 बड़े टाइप और 25 छोटे टाइप के सिलेंडर से काम चलाया जाता है। सीएचसी व पीएचसी पर भी इस तरह के संसाधनों का अभाव देखने को मिलती है। चकिया स्थित जिला अस्पताल में अग्निशमन यंत्र लगे हैं वहीं सीएचसी और पीएचसी पर भी इसकी व्यवस्था है।
यंत्र चलाने की जानकारी का अभाव
जिले के सरकारी अस्पतालों में यंत्र लगे हैं। बहुतेरे कार्यालयों में बालू की बाल्टी नदारद हैं। यंत्र को चलाने वालों को जानकारी का अभाव है। अग्निशमन विभाग ने भी स्कूलों, अस्पतालों में कार्यक्रम आयोजित कर आग से बचने का प्रशिक्षण देकर औपचारिकता पूरी की है।
मीटर की सुई रेड जोन में तो रिफिलिंग करना जरूरी
नियमानुसार अग्निशमन यंत्र की जांच करने वाले जिम्मेदार अफसरों का दूर-दूर तक पता नहीं चलता है। यदि संयोग से आग लग भी गई तो यंत्र काम नहीं आएगा। इस पर संस्थान के जिम्मेदार तो दूर जिले के आला अधिकारी भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। विभाग के मुताबिक, यंत्र को पारदर्शी बनाया गया है। मीटर (घड़ी) में ग्रीन व रेड जोन हैं। सुई रेड जोन में हो, तब रिफिलिंग कराना जरूरी होता है। इसके लिए शासन संबंधित विभागों को बजट अवमुक्त करता है।
इस संबंध में चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सत्यप्रकाश ने बताया कि जगह-जगह अग्निशमन यंत्र रखे गए हैं सभी सुचारू रूप से संचालित है, ताकि कोई अनहोनी होने पर उसका उपयोग किया जा सके। जहां तक इसे चलाने की बात है तो उसे भी देखकर सबको ट्रेनिंग देने की कोशिश की जाएगी।