फ्रेट विलेज परियोजना के विरोध में सांसद से मिला ग्रामीणों का प्रतिनिधिमंडल, पुश्तैनी ज़मीन बचाने की लगाई गुहार
मिल्कीपुर के ग्रामीणों ने सांसद वीरेंद्र सिंह से की मुलाकात
बंदरगाह और फ्रेट विलेज के लिए ज़मीन अधिग्रहण की योजना से ग्रामीणों में रोष
ग्रामीणों ने सांसद को सौंपा पत्रक
सांसद से गांव आकर हालात देखने की अपील की गई
चंदौली जिले के मिल्कीपुर क्षेत्र में प्रस्तावित बंदरगाह एवं फ्रेट विलेज परियोजना को लेकर स्थानीय ग्रामीणों में गहरी चिंता और आक्रोश व्याप्त है। आज ग्राम ताहिरपुर मिल्कीपुर के निवासियों का एक प्रतिनिधिमंडल सांसद वीरेंद्र सिंह से मुलाकात कर अपनी आपत्ति दर्ज करवाई। उन्होंने एक पत्रक के माध्यम से अपनी पीड़ा और आशंका सांसद के समक्ष रखी।
ग्रामीणों ने पत्रक में लिखा कि ताहिरपुर गांव की उपजाऊ भूमि को बंदरगाह व फ्रेट विलेज जैसी औद्योगिक परियोजनाओं के लिए अधिग्रहित करने की योजना ग्रामीणों के लिए गहरा सदमा है। यह जमीन सिर्फ खेती के लिए नहीं, बल्कि उनकी आजीविका, संस्कृति और परंपरा की प्रतीक है। इस भूमि से केवल अन्न नहीं उपजता, बल्कि पीढ़ियों से जुड़ी यादें और पहचान भी इसी से जुड़ी हुई हैं।
प्रतिनिधिमंडल ने सांसद वीरेंद्र सिंह का आभार जताया कि उन्होंने पहले भी इस मुद्दे को लोकसभा में उठाकर ग्रामीणों की आवाज बनने का प्रयास किया। इस मुलाकात में प्रमुख रूप से ईशान मिल्की, मास्टर विद्याधर, वीरेंद्र साहनी, चंद्र प्रकाश मौर्य, विनय मौर्य और आस मोहम्मद शामिल थे।
ग्रामवासी ईशान मिल्की ने स्पष्ट कहा कि वे किसी भी तरह के विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन ऐसा विकास जो पूरे गांव को उजाड़ दे, पुश्तैनी जमीन छीन ले और लोगों को उनके ही घरों में बेगाना कर दे, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह जनसुनवाई करे और प्रभावित ग्रामीणों से संवाद स्थापित करे।
प्रतिनिधिमंडल ने सांसद से आग्रह किया कि वे स्वयं एक बार गांव का दौरा करें और ग्रामीणों से आमने-सामने बात करें। ग्रामीणों का कहना है कि यदि कोई उनकी आंखों में झांकेगा तो वहाँ डर, दर्द और असहायता दिखाई देगी। उनकी जमीन केवल एक भूखंड नहीं, बल्कि उनके भविष्य की नींव है।
इस पूरी मुलाकात में शांति रही लेकिन ग्रामीणों की आंखों में चिंता स्पष्ट झलक रही थी। उन्होंने सरकार से अनुरोध किया है कि वह विकास कार्यों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाए और ऐसे किसी भी निर्णय से पूर्व ग्रामीणों की सहमति ले। साथ ही यह भी मांग की कि किसानों और ग्रामीणों के हितों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर अब देखना होगा कि जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक तंत्र ग्रामीणों की बातों पर क्या निर्णय लेता है और क्या यह परियोजना पुनः विचार के दायरे में आती है या नहीं।