आखिर क्यों परेशान हैं काले चावल की खेती करने वाले किसान हैं परेशान, मोदी-योगी सरकार कब देगी इधर भी ध्यान

चंदौली जिले में काले चावल की खेती की जाती है। चावल की खेती से जुड़े संस्थाओं ने सरकार से काले चावल को एमडीएम में शामिल करने की मांग की है।
 

चंदौली में सिकुड़ती जा रही है काले चावल की खेती

धान न बिकने से परेशान होते हैं किसान

सरकारी अफसरों के पास नहीं है प्रोत्साहन की इच्छाशक्ति व योजना

एफपीओ भी बन सकते हैं मददगार

चंदौली जिले में काले चावल की खेती की जाती है। चावल की खेती से जुड़े संस्थाओं ने सरकार से काले चावल को एमडीएम में शामिल करने की मांग की है। न्यूजीलैंड सहित खाड़ी देशों में अपनी धमक बनाने वाले और ओडीओपी (एक जिला-एक उत्पाद) में चयनित जिले के काले चावल को कोई नहीं पूछ रहा है। 


उनका कहना है कि एमडीएम इससे 85 रुपये किलो की दर से में काले चावल के शामिल होने से बिकने वाला काले चावल का दाम गिरकर 30 रुपये हो गया है। इसके बावजूद खरीदार नहीं मिल रहे हैं। रुतबा के साथ ही जिले में काले चावल की खेती का रकबा भी घट रहा है। 


चंदौली काला चावल उत्पादक कृषक समिति के अध्यक्ष शशिकांत के मुताबिक 2021 में जिले में काले चावल की खेती पांच सौ एकड़ में होती थी। मांग घटने से काले चावल की खेती महज पांच एकड़ में सिमट गई है। बताया कि प्रारंभ में जिले के चार सौ किसान काले चावल की खेती करते थे परंतु अब केवल 10 किशन काले चावल की खेती करते हैं। 


उनका कहना है कि एमडीएम में काले चावल के शामिल होने से बच्चों को पौष्टिक आहार और किसानों को चावल की वास्तविक कीमत मिलेगा। चंदौली काला चावल फॉरमर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड व चंदौली काला चावल उत्पादक कृषक समिति के मुताबिक काले चावल का धान दो साल पहले 85 सौ रुपये प्रति क्विंटल बेचा गया था वही धान दो साल के रख रखाव के बाद तीन हजार रुपये प्रति क्विंटल भी नहीं बिक रहा है। 


ओडीओपी में चयनित एक उत्पाद का रुतबा हासिल फसल को बेचने के लिए लगातार दो साल से संघर्ष करना पड़ रहा है। गौरतलब है कि इस चावल के मुरीद प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री भी रहे हैं। इसके बावजूद इस उत्पाद को काला चावल फारमर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड व काला चावल उत्पादक कृषक समिति किसी तरह औने-पौने दाम पर बेचने पर विवश है।


 जिले में समिति ने प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालय में मिड डे मिल में मशरूम व मोटा अनाज की तरह काला चावल को भी उसके औषधीय गुणों के आधार पर शामिल करने की मांग की है। 


उनका कहना है कि मिड डे मिल के तहत सप्ताह में एक बार बच्चों को परोसी जाने वाली मीठी खीर में शामिल किया जा सकता है। ऐसा करने से जहां काला चावल को बाजार मिल जाएगा वहीं किसानों की खेती की लागत निकलने के साथ उन्हें मुनाफा भी होगा। 


उन्होंने बताया कि इसके लिए जिला प्रशासन व प्रदेश शासन को पत्र लिखा जा चुका है। उम्मीद है कि शासन काला चावल को उसके गुणवत्ता के आधार पर मिड डे मिल में शामिल करेगा । किसानों का कहना है कि काले चावल की खेती में निराशा ही हाथ लगी है। सरकार ने शुरू में बढ़ावा दिया। इसके बाद ध्यान नहीं दिया। अब उम्मीद है कि सरकार काले चावल को बढ़ावा देने के लिए नई पहल करेंगी।