काले धान व चावल को आप ही खरीद लीजिए योगीजी, मंडी में खा रहे हैं पशु-पक्षी
 

कमजोर मार्केटिंग और खरीदारों के रुचि न लेने के चलते ब्लैक राइस की खेती करने वाले किसानों के अरमानों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। इससे किसानों ब्लैक राइस की खेती से मोह भंग होता नजर आ रहा है।
 

मंडी में कई साल से पड़ा है सैकड़ों किसानों का धान

1300 क्विंटल काले धान को नहीं मिल रहे ग्राहक

सांसदजी से भी नहीं मिल रही है मदद

योगीजी तक नहीं जा रही किसानों की समस्या


वैसे अगर देखा जाय तो चंदौली में काले धान की खेती के लिए किसानों को काफी प्रोत्साहित करने की बात सरकारी व राजनैतिक मंचों पर जोरशोर से की जाती है और आय दोगुनी-तीन गुनी-चार गुनी करने के सपने दिखाए जाते हैं, लेकिन जब धान तैयार हो जाता है और काला चावल बना दिया जाता है तो किसानों की मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आता है। सैकड़ों किसानों ने इसकी खेती की पर लचर मार्केटिंग की वजह से नवीन मंडी में सैकड़ों किसानों का 1300 क्विंटल काला धान पड़ा हुआ है, जहां पर पक्षी व जानवर इसको अपना निवाला बना रहे हैं। न तो कालाधान को कोई खरीदार मिल रहा है और न ही सरकार धान खरीद कर किसानों को इसका पैसा दे पा रही है। 

कमजोर मार्केटिंग और खरीदारों के रुचि न लेने के चलते ब्लैक राइस की खेती करने वाले किसानों के अरमानों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। इससे किसानों ब्लैक राइस की खेती से मोह भंग होता नजर आ रहा है। जबकि कृषि विभाग और पूरे सरकारी अमला का दावा है कि ब्लैक राइस की खेती से किसानों की आय दोगुनी नहीं बल्कि तीन गुना बढ़ गयी है। वहीं ब्लैक राइस की खेती करने वाले किसानों ने बताया कि उन्होंने बेहतर आय की उम्मीद के चलते धान की खेती की थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और उनकी सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गईं। उनकी उपज का कोई खरीदार नहीं मिला।

 किसानों का कहना है कि वर्ष 2019-20 में जब दोबारा रोपाई का समय आ गया था, तब खरीदारी हुई थी। वर्ष 2020 - 21 और वर्ष 2021-22 में इसका कोई खरीदार नहीं मिला है। इससे वर्ष 2020-21 का 1200 कुंतल ब्लैक राइस चंदौली मंडी परिषद के गोदाम और वर्ष 2021-22 का ब्लैक राइस किसानों के घर पर पड़ा हुआ है। ये सब देखकर अब इसकी खेती मुनासिब नहीं लगती।

मचवा गांव के किसान अवनींद्र कुमार पांडेय ने करीब एक एकड़ में ब्लैक राइस की खेती करके इसका लाभ उठाने की कोशिश की लेकिन धान पैदा होने के बाद काफी निराश हो गए, क्योंकि उपज का कोई खरीदार आज तक नहीं मिल पाया।  वहीं इमिलिया गांव के किसान अजय कुमार सिंह ने भी कहा कि  बाजार में ब्लैक राइस को न तो सही दाम मिल पा रहा है न ही खरीदार मिल पा रहे हैं, ऐसे में इसकी खेती करना नुकसानदायक सिद्ध हो रहा है। 

कंदवा गांव के किसान अच्युतानंद त्रिपाठी ने बताया कि ब्लैक राइस के उपज की अनुमानित लागत 150 से 200 रुपए आंकी गई थी। वर्ष 2019-20 में चंदौली काला चावल समिति के माध्यम से किसानों ने 8500 रुपए कुंतल के हिसाब से बेंचा था, लेकिन 2020-21और 2021-22 में कोई खरीदार नहीं मिला है। कहा कि पहले 15 बिस्वे खेती करता था लेकिन इस वर्ष केवल अपने उपयोग के लिए पांच बिस्वे में खेती किया है। 

सिकठा गांव के किसान रतन सिंह का कहना है कि पहले दो वर्ष तक उन्होंने 16 बिस्वे में खेती किया था। जब 85 रुपए किलो मूल्य मिला तो डेढ़ एकड़ में ब्लैक राइस की खेती किया था। लेकिन इस बार कोई खरीदार ही नहीं मिला।

 इस संबंध में चंदौली काला चावल समिति के महामंत्री वीरेंद्र सिंह का कहना है कि अभी कोई खरीदार नहीं मिला है। इससे किसानों की उपज मंडी परिषद में रखी हुई है।इसकी बिक्री के लिए प्रयास किया जा रहा है। अगर सरकार ही खरीद लेती तो किसानों का हौसला बढ़ता, लेकिन सरकार के सामने इस समस्या को कौन पहुंचाए। अफसर व नेता दोनों कान में तेल डालकर बैठे हैं।