कारगिल शहीद अब्दुल खालिक अंसारी को अब याद नहीं करते लोग, नहीं पूरे हुए वादे
 

चंदौली जिले के शहीद अब्दुल खालिक अंसारी कारगिल के युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए बलिदान हो गए थे। जवान को उनके गांव ने ही भुला दिया है। उनका खंडहर मकान ही गांव में शेष बचा है।
 

कारगिल के युद्ध में शहीद हो गए थे अब्दुल खालिक अंसारी

आज तक नहीं बनी उनके नाम की सड़क

ना ही तो मिला उनको उनका हक

चंदौली जिले के शहीद अब्दुल खालिक अंसारी कारगिल के युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए बलिदान हो गए थे। जवान को उनके गांव ने ही भुला दिया है। उनका खंडहर मकान ही गांव में शेष बचा है। एकाध बुजुर्गों को छोड़ दें तो किसी को उनका नाम तक नहीं मालूम। उनकी शहादत पर नेताओं ने स्मृति द्वार, स्मारक सड़क बनवाने के वादे किए थे लेकिन एक ईंट तक नहीं रखी गई। 


आपको बता दें कि बरहनी ब्लॉक के बहोरा चंदेल गांव निवासी शहीद अब्दुल खालिक अंसारी 1988 में भारतीय थल सेना में भर्ती हुए थे। सन 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान वह लांस नायक के पद पर तैनात थे और दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। देश की रक्षा के लिए प्राण गंवाने वाले वीर जवान को वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे। गांव में एकाध बुजुर्गों को छोड़कर किसी को उनका नाम तक नहीं पता। 

युवाओं से यदि पूछा जाता है तो कहते है कि यहां से कारगिल में कोई शहीद नहीं हुआ है। यह सुनकर शहीद के पिता शरीफ अंसारी आंखों में आंसू आ गए। वह कहते हैं कि उनका बच्चा अगर कारगिल शहीद नहीं हुआ तो उसकी मौत कैसे हुयी। 


आपको याद होगा कि पहाड़ों की हड्डियां गला देने वाली ठंड में भी भारतीय सैनिक डटे रहे और मई 1999 से जुलाई 1999 तक ये ऑपरेशन जारी रहा और इन तीन महीनों की लड़ाई में हमारे देश के लगभग 490 सैन्य अधिकारी और जवान शहीद हुए थे।