मायावती पर दिए गए बयान पर फंस सकती थीं सांसद साधना सिंह, लेकिन खारिज हो गयी याचिका..जानें क्या है पूरा मामला
 

मजिस्ट्रेट आलोक वर्मा ने भी पुलिस की बात से सहमति जताई और कहा कि किसी मामले में एफआईआर दर्ज करने से पहले आरोपों की सच्चाई की जांच करना आवश्यक है।
 

एमपी-एमएलए कोर्ट ने नहीं मानी अमिताभ ठाकुर की दलील

आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर की याचिका खारिज

सबूतों की कमी और याचिकाकर्ता से कनेक्शन न होने का दिया हवाला

पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और मुलायम सिंह यादव के प्रति की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों को लेकर एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली याचिका को एमपी-एमएलए मजिस्ट्रेट, लखनऊ, आलोक वर्मा ने खारिज कर दिया है। यह याचिका आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने दायर की थी। कोर्ट ने याचिका को खारिज करने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण बताए हैं, जिनमें सबूतों की कमी और याचिकाकर्ता का इन मामलों से सीधा संबंध न होना शामिल है।

क्या थी याचिकाकर्ता की मांग
अमिताभ ठाकुर ने अपनी याचिका में कहा था कि अयोध्या के महंत राजू दास और अरुण यादव ने पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के प्रति अत्यंत ही आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं। इसी तरह, जनवरी 2019 में राज्यसभा सांसद साधना सिंह ने भी मायावती के खिलाफ अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया था। ठाकुर ने आरोप लगाया कि इन गंभीर मामलों में कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई, जबकि वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अभद्र भाषा के प्रयोग पर प्रदेश के हर थाने में तुरंत एफआईआर दर्ज हो रही हैं। उन्होंने इस निष्क्रियता को अनुचित और समानता के अधिकार के विपरीत बताया था।

लखनऊ पुलिस और कोर्ट का रुख
लखनऊ पुलिस ने इस याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि अमिताभ ठाकुर ने कोई पुष्टिकारक साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराए हैं। पुलिस के अनुसार, ठाकुर ने केवल सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो के आधार पर एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी, जो कानूनी रूप से मान्य नहीं है।

मजिस्ट्रेट आलोक वर्मा ने भी पुलिस की बात से सहमति जताई और कहा कि किसी मामले में एफआईआर दर्ज करने से पहले आरोपों की सच्चाई की जांच करना आवश्यक है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मानहानि के अपराध के लिए याचिकाकर्ता का 'व्यथित व्यक्ति' होना जरूरी है, लेकिन अमिताभ ठाकुर का इन नेताओं से कोई सीधा संबंध नहीं है, इसलिए वे इस श्रेणी में नहीं आते हैं।

इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी भी नहीं ली गई थी, जो कि ऐसे मामलों में एक अनिवार्य कानूनी प्रक्रिया है। कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मुख्यमंत्री से जुड़े मामलों को इस प्रकरण से जोड़कर नहीं देखा जा सकता, क्योंकि दोनों की परिस्थितियां अलग हैं।

याचिका खारिज होने के मायने
कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि केवल सोशल मीडिया पर वायरल हुई सामग्री के आधार पर किसी पर कानूनी कार्रवाई की मांग नहीं की जा सकती। कानूनी प्रक्रिया के लिए पुख्ता सबूतों का होना अनिवार्य है। साथ ही, मानहानि जैसे मामलों में सिर्फ वही व्यक्ति याचिका दायर कर सकता है, जो सीधे तौर पर उस टिप्पणी से प्रभावित हुआ हो। यह फैसला कानूनी प्रक्रिया की सख्ती और नियमों का पालन करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

इस फैसले के बाद, राजनीतिक हलकों में इस पर बहस छिड़ सकती है कि क्या राजनेताओं के खिलाफ की गई टिप्पणियों पर कार्रवाई के लिए कोई समान मानक होना चाहिए। फिलहाल, यह मामला कानूनी रूप से समाप्त हो गया है, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक बहस के लिए यह एक नया बिंदु बन गया है।