RTE योजना में प्रवेश प्रक्रिया में फिर गड़बड़ी, जरूरतमंदों की जगह धनाढ्यों के बच्चे ले रहे हैं प्रवेश, DM साहब करवा दीजिए जांच

चंदौली जिले में शासन ने समाज के दुर्बल व अलाभित वर्ग के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने का सुअवसर प्रदान किया है। इसके लिए आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों की 25 फीसदी सीटें आरक्षित की गई हैं।
 
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RTE को लेकर तरह-तरह की शिकायतें

80% लाभार्थी अपात्र पाए जाने की खबर

फसरों की हीलाहवाली से मारा जा रहा है गरीब बच्चों का हक

फर्जी दस्तावेजों के सहारे अमीर परिवारों के बच्चे पा रहे मुफ्त शिक्षा

चंदौली जिले में शासन ने समाज के दुर्बल व अलाभित वर्ग के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने का सुअवसर प्रदान किया है। इसके लिए आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों की 25 फीसदी सीटें आरक्षित की गई हैं। लेकिन इस योजना में इतने छेद हैं कि जरूरतमंद व दुर्बल वर्ग इस सुविधा के लाभ से पूरी तरह वंचित हैं। जबकि मानक को ताक पर रखकर धनाढ्य लोगों ने इन सीटों पर कब्जा कर रखा है। जाहिर है कि इसमें विभागीय विचौलियों की भूमिका अहम है। आगामी सत्र के लिए विभाग ने प्रवेश की प्रक्रिया शुरू कर दी है। एक बार फिर पात्रों के हक पर अपात्रों का कब्जा होगा और शासन की पवित्र मंशा धरी की धरी रह जाएगी।

आपको बता दें कि शासन ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 (आरटीई) के तहत समाज के दुर्बल व अलाभित वर्ग के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में बेहतर शिक्षा देने का प्रावधान किया है। इसमें छह से 14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा दी जानी है। अधिनियम का उद्देश्य भारत में पारिवारिक आय, लिंग, जाति या पंथ की परवाह किए बिना प्रत्येक बच्चे को उचित शिक्षा प्रदान करना है। इसके तहत गरीब व वंचित वर्ग के बच्चों के लिए प्राइवेट स्कूलों में 25 फीसदी सोटें आरक्षित की गई हैं। इसके एवज में शासन स्कूल को प्रति बच्चा साढ़े चार सौ रुपए प्रति माह प्रतिपूर्ति देता है। महत्वपूर्ण यह है कि सरकार की यह योजना, जो पूर्ण रूप से गरीब व वंचित बच्चों के लिए आरक्षित है, उस पर 80 फीसदी धनाढ्य लोगों के बच्चों का कब्जा है। 

कारण स्पष्ट है कि इस योजना के तहत आवेदन में कई छेद हैं। जिसमे महज माता-पिता के आय प्रमाणपत्र को आधार बनाकर शिक्षा विभाग सीटों का बंटवारा कर देता है। जबकि वास्तविकता यह है कि यदि भौतिक सत्यापन कराया जाए तो आवेदनकर्ता के पास खेत, पक्का मकान, बाइक व कार तक मिलेगी। दरअसल भौतिक सत्यापन न होने के कारण महज फर्जी दस्तावेज के आधार पर धनाढ्य वर्ग गरीबों के हक पर कब्जा किये बैठे हैं। जिसमे विभागीय विचौलिए सक्रिय होते हैं। यदि इस योजना के लाभार्थियों की निष्पक्ष जांच की जाए तो एक बड़े भ्रष्टाचार की पोल खुल जाएगी।

विगत चार वर्षों से नही मिली प्रतिपूर्ति की राशि: 

जिले के सभी प्राइवेट स्कूलों में अलाभित वर्ग के तमाम बच्चे अध्ययनरत हैं। जिन्हें नियमतः साढ़े चार सौ रुपए प्रति माह की दर से भुगतान का प्रावधान है। लेकिन विगत चार वर्षों से स्कूलों को इसका भुगतान नही किया गया है। हर 3-4 माह पर विभाग छात्रों की सूची मांगता तो है।

नियमों को ताक पर रखकर आवंटित कर रहे स्कूल: 

शासनादेश के तहत इस योजना में यह प्रावधान है कि स्कूल में आवंटित छात्र को उसी के ग्राम पंचायत या वार्ड का निवासी होना चाहिए। लेकिन इस नियम को नजरंदाज कर विभाग 4-5 किमी दूर के छात्रों को सूची में डालकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है।


इस संबंध में वीईओ अवधेश राय ने बताया कि इस योजना के तहत आवेदन का आधार आय प्रमाण पत्र है। उसी के आधार पर जिले से सीट आरक्षित की जाती है।