SDM नौगढ़ का आदेश ठेंगे पर, 4 नवंबर को बंद कराया था अस्पताल, कुछ ही दिनों में टूट गया ताला
 

चंदौली जिले के तहसील नौगढ़ में झोलाछाप डॉक्टरों और दबंगों के आगे कानून और प्रशासन का सम्मान मिट्टी में मिलता जा रहा है। चार नवंबर को एसडीएम कुंदन राज कपूर के आदेश पर बंद कराया गया
 

झोलाछाप डॉक्टर ने अफसरों को दिखाया ठेंगा

अपने आप खोल लिया ताला

झोलाछाप कर रहे हैं मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़

चंदौली जिले के तहसील नौगढ़ में झोलाछाप डॉक्टरों और दबंगों के आगे कानून और प्रशासन का सम्मान मिट्टी में मिलता जा रहा है। चार नवंबर को एसडीएम कुंदन राज कपूर के आदेश पर बंद कराया गया मझगावां पुलिया के पास स्थित जन सहायक पाली क्लीनिक, महज 23 दिनों में ताले तोड़कर बिना अनुमति और मानकों के फिर से खुल गया। सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन कानून की रक्षा करने में सक्षम है, या केवल दिखावटी कार्रवाइयों का नाटक कर रहा है ? 


23 दिन में ही ताश के पत्तों की तरह बिखर गया प्रशासन का दबदबा


4 नवंबर दिन सोमवार को एसडीएम कुंदन राज कपूर के निर्देश पर मझगावां पुलिया के पास संचालित क्लीनिक पर जाकर कार्रवाई करते हुए नायब तहसीलदार प्रभुनाथ और सहायक शोध अधिकारी रवि प्रकाश मिश्रा ने अस्पताल को बंद कराकर ताला लगा दिया था। यह घटना प्रशासन के लिए करारा तमाचा है, जो दर्शाता है कि या तो प्रशासन की कार्रवाई केवल दिखावे की थी या उसे दबंगों के सामने झुकने की आदत हो गई है। 


मरीजों की जान खतरे में, प्रशासन मूकदर्शक 

झोलाछाप डॉक्टर द्वारा बिना किसी मानक या डिग्री के ऑपरेशन करना सीधा-सीधा हत्या का निमंत्रण है। ऐसे में प्रशासन का मूक दर्शक बने रहना न केवल शर्मनाक है, बल्कि आपराधिक लापरवाही के बराबर है। क्या प्रशासन तब जागेगा जब यहां किसी निर्दोष मरीज की मौत हो जाएगी ? या फिर केवल फाइलों में मामले दर्ज कर काम खत्म समझ लिया जाएगा? 
अस्पताल को बंद करने के बाद भी अब तक सीएमओ कार्यालय में कागजात न पहुंचना, स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या विभाग जानबूझकर इस मामले को ढीला छोड़ रहा है, या फिर दबाव में अपनी जिम्मेदारी से बचने का रास्ता चल रहा है।


दबंगों के आगे प्रशासन लाचार


अस्पताल संचालक द्वारा ताला तोड़कर संचालन शुरू करना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि प्रशासन को खुली चुनौती भी है। यह घटना दर्शाती है कि दबंग और झोलाछाप डॉक्टरों के आगे प्रशासन लाचार है। एक ओर जहां आम जनता कानून के डर से घुटनों के बल चलती है, वहीं ऐसे दबंग खुलेआम प्रशासन के आदेशों को रौंद रहे हैं। लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या प्रशासन केवल कमजोर और गरीबों पर ही सख्ती दिखाने के लिए है? क्या दबंगों और नियम तोड़ने वालों के खिलाफ कार्रवाई केवल फाइलों तक ही सीमित रहेगी?


क्या प्रशासन यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों?


क्या झोलाछाप डॉक्टर के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी, या यह मामला भी अन्य मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा जरूरत है कठोर कदमों की,  बल्कि यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि भविष्य में कोई भी व्यक्ति कानून का मजाक न बना सके। जनता अब प्रशासन से सिर्फ वादे नहीं, ठोस कार्रवाई की उम्मीद कर रही है।