जिले के अस्तित्व की लड़ाई लड़ने वाले योद्धाओं में से एक हैं शशि शंकर सिंह, अबकी बार मुगलसराय से दावेदार
चंदौली बन सकता था पूरब का प्रवेश द्वार
अब तक उदासीन रहे सारे दलों के जनप्रतिनिधि व नेता
जिले के अस्तित्व की लड़ाई लड़ने वाले योद्धाओं में से एक हैं शशि शंकर सिंह
अबकी बार मुगलसराय से दावेदार
चंदौली जिले से मुगलसराय विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने वाले दावेदारों की कमी नहीं है। हर दिन एक से एक बड़े दावेदार की चर्चा होती जा रही है। इसमें कुछ धनबल वाले राजनेता शामिल हैं, तो वहीं कुछ जमीनी स्तर के कार्यकर्ता भी अपने आप को मुगलसराय विधानसभा सीट पर तगड़े दावेदार के रूप में पेश कर रहे हैं। ऐसे ही दावेदारों में चंदौली जिले के अस्तित्व की लड़ाई लड़ने वाले अधिवक्ता शशि शंकर सिंह भी अपनी दावेदारी प्रस्तुत कर रहे हैं।
वरिष्ठ भाजपा नेता व अधिवक्ता शशि शंकर सिंह ने चंदौली समाचार के एडिटर विजय कुमार तिवारी के साथ बातचीत करते हुए चंदौली जिले की संघर्ष यात्रा को याद किया और कहा कि वह जनता के प्यार और सम्मान के बदले कुछ और देना चाहते हैं। इसलिए वह विधानसभा में जाने की इच्छा रखते हैं, ताकि जनप्रतिनिधि बनकर मुगलसराय विधानसभा के साथ साथ पूरे जनपद के सर्वांगीण विकास में अपना और भी योगदान दे सकें। अगर पार्टी ने उनको मौका दिया तो वह मुगलसराय के साथ-साथ पूरे चंदौली जनपद के लिए ऐतिहासिक कार्य करके दिखाएंगे।
चंदौली जिले के असित्व की लड़ाई लड़ने वाले वरिष्ठ भाजपा नेता व अधिवक्ता शशि शंकर सिंह ने चंदौली समाचार के एडिटर विजय कुमार तिवारी के साथ बातचीत में कई मुद्दों पर दिल खोलकर बातचीत की।
बसपा ने बनाया जिला, पर भूल गए विकास
वैसे अगर देखा जाय तो मई 1997 में चंदौली जिला बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के कार्यकाल में वाराणसी जनपद से अलग करके बनाया गया था, तब चंदौली जिले के लोगों में एक नई आशा की किरण जागी थी, कि जिले का सर्वांगीण विकास होगा और जिला बनने के बाद जनता को तमाम तरह की सहूलियतें जिला मुख्यालय पर मिलने लगेगी। लेकिन राजनीतिक उठापटक और श्रेय लेने की राजनीति में 12 जनवरी 2004 को तत्कालीन समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने चंदौली जिले का अस्तित्व ही खत्म कर दिया था। इसलिए एक बार फिर चंदौली जिले के अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ी।
सड़क से कोर्ट तक लड़ी थी लड़ाई
वरिष्ठ भाजपा नेता व अधिवक्ता शशि शंकर सिंह ने कहा कि इसके लिए सिविल बार के महामंत्री के रूप में एक लंबा आंदोलन चलाने की कोशिश की। इसके दौरान सड़क से लेकर हाईकोर्ट तक उन्होंने लड़ाई लड़ी। इतना ही जब शासन व सरकार की मंशा सही नहीं दिखी तो याचिका दाखिल करके एक बार फिर जिले का अस्तित्व बरकरार रखने में कामयाबी मिली।
शशि शंकर सिंह ने कहा कि इस आंदोलन के दौरान जनता और मीडिया ने उनका बखूबी साथ दिया और उसी के जरिए चंदौली जिले को बचाने की लड़ाई लड़ी जा सकी। उस दौरान जो कुछ भी महसूस किया और देखा तो उसी के बाद राजनीति में और भी सक्रिय तरीके से दिलचस्पी लेने लगा। इसी वजह आज वह मुगलसराय विधानसभा से अपनी दावेदारी प्रस्तुत कर रहे हैं।
वायदा करके दगा दे गए विधायक जी
शशि शंकर सिंह ने जिले के संघर्ष की कहानी को याद करते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी के द्वारा चंदौली जिले को खत्म करने की कोशिश की गई थी। इसलिए इसके संघर्ष में समाजवादी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से तो किसी भी तरह के समर्थन की उम्मीद नहीं थी, लेकिन उस समय चंदौली के सदर सीट से बसपा विधायक ने आर्थिक और अन्य तरह से मदद करने की जबानी तौर पर कही थी, लेकिन जब मदद करने का मौका आया तो अपने वायदे से मुकर गए। विधायक जी न पलटी मारते हुए कहा कि उनकी पार्टी अपने स्तर से जिले के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। इसलिए वह अधिवक्ताओं और चंदौली जिले के लिए संघर्ष कर रही जनता की कोई आर्थिक व अन्य तरह की मदद नहीं कर पाएंगे।
कौन भूलेगा 6 घंटे का ऐतिहासिक रेल रोको आंदोलन
शशि शंकर सिंह ने याद करते हुए कहा कि सड़क के संघर्ष के साथ-साथ हर दिन जिले पर सैकड़ों लोग इकट्ठा होते थे और सड़क पर काफी देर तक चक्काजाम चला करता था। इस दौरान उन्होंने एक दिन का ऐतिहासिक बंद भी आयोजित कराया था, जिससे जिले के आंदोलन को और बल मिला। इस दौरान 6 घंटे का रेलवे चक्का जाम भी किया था, जो कि काफी अभूतपूर्व था। उस समय तक रेल रोके जाने के इतिहास में इतनी देर तक आंदोलन चलाने वाला उत्तर प्रदेश का पहला जिला बना था।
हालांकि इस आंदोलन के दौरान उनको भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन जिला अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह का सहयोग जरूर मिला था और उन्होंने मंच साझा करते हुए हर तरह के मदद का भरोसा दिया था।
उदासीन बने रहे जनप्रतिनिधि, नहीं थी इच्छाशक्ति
वरिष्ठ भाजपा नेता व मुगलसराय विधानसभा सीट के दावेदारों में से एक अधिवक्ता शशि शंकर सिंह ने यह भी कहा कि आशा और उम्मीद के साथ चंदौली जिला बनाने की कल्पना की गई थी। पर इस बात का बड़ा दुख है कि उसके अनुरूप इसका विकास नहीं हो पाया। जिले के इंफ्रास्ट्रक्चर व अन्य संसाधनों के विकास के लिए न ही सरकारों ने तथा न ही जनप्रतिनिधियों ने इस पर अपनी ओर से कोई खास पहल की।
जिला मुख्यालय के विकास के प्रति चंदौली जिले के चुने गए जनप्रतिनिधियों की इच्छाशक्ति की कमी के कारण चंदौली जिले का जिला मुख्यालय भी नहीं बन पाया। 1997 में जिला बनने के बाद 2017 तक उत्तर प्रदेश में बसपा और समाजवादी पार्टी की सरकारें ही रही, लेकिन उन्होंने अपने स्तर से कोई पहल नहीं की। इसके बाद 2014 में भारतीय जनता पार्टी की केंद्र में सरकार बनने के बाद चंदौली के सांसद महेंद्र नाथ पांडेय ने अपने स्तर से जिला मुख्यालय और अन्य कार्यालयों के लिए मदद करने की पहल को आगे बढ़ाया। तब से जिले में कुछ चीजों की स्थापना होनी शुरू होने लगीं। इसके बाद 2017 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद जिले के विकास के लिए कई कार्य शुरू किए गए हैं और अब जल्द ही जिला अपने वास्तविक आकार में आ जाएगा।
चंदौली बन सकता था पूरब का प्रवेश द्वार
शशि शंकर सिंह ने इस बात का अफसोस जरूर जाहिर किया कि जिले के सर्वांगीण विकास के लिए अगर चंदौली जिले के जनप्रतिनिधि चिंतित हुए होते तो यह प्रदेश का पूर्वी प्रवेश द्वार बनता और चंदौली जिला एक विकसित जिले के रूप में प्रदेश के नक्शे पर उभर सकता था। पर सारे दलों के नेता आपसी खींचतान व निजी कार्यों में आवश्यकता से अधिक व्यस्त होने के कारण कुछ और चीजों पर ध्यान न दे सके।
वरिष्ठ भाजपा नेता व अधिवक्ता शशि शंकर सिंह ने कहा कि नए साल में पुरानी बातों को भूल कर अब नए सिरे से काम करना है। उन्हें उम्मीद जताते हुए कहा है कि एक ना एक दिन चंदौली जरूर उत्तर प्रदेश का पूर्वी प्रवेश द्वार बनेगा और जिले का भव्य व विकसित स्वरूप प्रदेश व देश के मानचित्र पर दिखाई देगा।