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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष महिलाओं के अदृश्य संघर्ष को सलाम

tds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_show चंदौली जिले में महिलाओं के अदृश्य संघर्ष व उनके जज्बे को सलाम करने और उनके सम्मान व समान अधिकार दिलाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 08 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है । अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के कई जायज कारण हैं, चाहे वह शिक्षक हो या फिर वकील, डॉक्टर, पत्रकार, सैनिक, सरकारी
 
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष महिलाओं के अदृश्य संघर्ष को सलाम

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चंदौली जिले में महिलाओं के अदृश्य संघर्ष व उनके जज्बे को सलाम करने और उनके सम्मान व समान अधिकार दिलाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 08 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है । अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के कई जायज कारण हैं, चाहे वह शिक्षक हो या फिर वकील, डॉक्टर, पत्रकार, सैनिक, सरकारी कर्मी, इंजीनियर आदि समाज के बीच से ऐसी कोई महिला जो समाज द्वारा फैलाई गई कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाए या फिर कोई गृहिणी ही क्यों न हों । महिलों के अद्रश्य संघर्ष व उनके जज्बे को सलाम करने के लिए उनके सम्मान व समान अधिकार दिलाने के उद्देश्य से हर वर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता हैं। जिले की महिलाओं का भी कल सम्मान किया जाएगा ।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जिलाधिकारी संजीव कुमार का कहना है कि समानता का अधिकार उन्हें भी उतना ही है, जितना की पुरुषों को है। आधी आबादी के तौर पर महिलाएं हमारे समाज की एक मजबूत आधार है। महिलाओं के बिना इस दुनिया की कल्पना करना ही असंभव है। कई बार महिलाओं के साथ पेशेवर जिंदगी में भेदभाव होता है। घर-परिवार में भी कई बार उन्हें समान हक और सम्मान नहीं मिल पाता है। 

बीते साल महामारी कोविड-19 के कहर से पूरी दुनिया प्रभावित हुई है। इस महामारी के दौर में कोरोना योद्धाओं ने अग्रिम पंक्ति में खड़े रहकर मानवीय सेवा की मिसाल भी पेश की। इन कोरोना योद्धाओं में कई महिलाओं ने आगे बढ़कर अग्रिम मोर्चे पर सेवाएं दीं और अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवाया। संयुक्त राष्ट्र की ओर से इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम को महिलाओं के नेतृत्व को समर्पित किया है।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हम उन महिलाओं से बात करते हैं जिन्होने समाज सेवा के साथ ही कोरोना महामारी के दौरान जनसेवा को ही अपना धर्म माना | इन्हें समाज में पहचान नहीं समाज में काम और महिलों के प्रति सम्मान चाहिए  ।

जीवन पर्यंत महिलाओं के हक की लड़ाई जारी रहेगी- डॉ सरिता मौर्य 

डॉ सरिता की प्रारंभिक शिक्षा गांव जगरनाथपुर चहनियां से हुई । इलाहाबाद से शोध अध्ययन किया । जनवरी 2021 में महिलाओं के संवैधानिक, महिला सशक्तिकरण, महिला उत्थान व अन्य प्रकार के अधिकारों पर कार्य करने के लिए इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज हुआ है ।

वह कहती हैं कि आज पल-पल की खबर आंख झपकते ही हमें विभिन्न तकनीकों के माध्यम से प्राप्त हो रही हैं फिर भी हमारे परिवेश, वातावरण में कुछ समस्याएं अब भी उसी तरह से जड़ जमाए हैं, जैसे बेटियों का तिरस्कार, विधवा महिलाओं को समाज, घर परिवार में उचित सम्मान नहीं । डॉ सरिता ने कहा कि बेटियों, विधवा महिलाओं को सम्मान दिलाने के लिए हर संभव प्रयास अनवरत जारी रहेगा।

पहल – 

आठ जनवरी 2019 को लगभग एक हजार विधवा महिलाओं को जनपद के पुलिस अधीक्षक अमित कुमार  द्वारा अंगवस्त्र देकर सम्मानित करवाया जिससे उनका घर परिवार में मान-सम्मान और बढ़ जाए।

लिंग भेद – 

डॉ सरिता ने कहा कि जब बेटी जन्म लेती है तो उसके लिए सोहर नहीं गाया जाता है,  उसके लिए उन्होंने गांवों में घूम-घूम कर लड़की के जन्म पर सोहर गवाया । उन्होने कहा कि कामयाबी हमें हमारे गांव से ही मिली जिसकी पहल करके कुछ विधवा महिलाओं को उनके बेटे की शादी में शुभ कार्यों में शामिल करवाया। इसके साथ ही कोविड-19 के दौरान जरूरतमंद लोगों की मदद की । 

रोटी तो जरूरी थी ही लेकिन साथ ही महिलाओं को साफ – सफाई के प्रति जागरूक करना –

घर- घर जाकर कहा कि रोटी तो जरूरी है लेकिन सफाई बेहद जरूरी है । इसलिए खुद का ख्याल रखो, तब बनाओं रोटी दाल । लॉकडाउन के दौरान गांव में महिलाओं ने लगभग एक हजार सेनेटरी पैड्स का वितरण किए । 

इसके साथ ही इस पर सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के लिए आवश्यक कार्य की और आज भी डॉ सरिता बालिकाओं, महिलाओं व विधवा महिलों के सम्मान, सुरक्षा व अधिकारों के लिए काम कर रही हैं | उन्होने कहा कि महिलाओं के उत्थान के लिए हम हमेशा संघर्षशील रहेंगे ।

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