जानें बसंत पंचमी पर क्यों की जाती है मां सरस्वती की आराधना, क्या है इसका महत्व
जानें बसंत पंचमी पर क्यों की जाती है मां सरस्वती की आराधना
क्या है इसका महत्व
वैदिक धर्म ग्रंथों के आधार पर प्रत्येक व्रत और त्योहार का अपना विशेष महत्व है। ऐसा ही त्योहार है बसंत पंचमी। बसंत पंचमी का पर्व माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े विद्यार्थियों के लिए इस दिन का विशेष महत्व है।
बसंत पंचमी के दिन से ही वसंत ऋतु का भी आगमन होता है। वसंत ऋतु को सभी छह ऋतुओं में ऋतुराज के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन ही माता सरस्वती का अवतरण हुआ था।
बसंत पंचमी तिथि और शुभ मुहूर्त
पंचमी तिथि आरंभ: 05 फरवरी, शनिवार, प्रातः 03:48 बजे से
पंचमी तिथि समाप्त: 06 फरवरी, रविवार प्रातः 03:46 बजे पर
सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त: 05 फरवरी प्रातः 07:19 मिनट से दोपहर 12:35 मिनट तक
सरस्वती पूजा मुहूर्त की कुल अवधि: 05 घंटे और 28 मिनट
बसंत पंचमी में सरस्वती पूजा का महत्व
मान्यता है बसंत पंचमी ही वो दिन था जब वेदों की देवी प्रकट हुई थीं, इसलिए इस दिन को शिक्षा या कोई अन्य नई कला शुरू करने के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से साधकों को अपने घर में सरस्वती यंत्र स्थापित करना चाहिए। यदि आपके बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगता है, यदि आपके जीवन में निराशा का भाव है तो बंसत पंचमी के दिन मां सरस्वती का पूजन अवश्य करें। इसलिए होती है बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा।
मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती का अवतरण हुआ था। शास्त्रों एवं पुराणों कथाओं के अनुसार बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा को लेकर एक बहुत ही रोचक कथा है। पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभ में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने मनुष्य की रचना की। हालांकि अपनी रचना से ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं थे। उदासी से सारा वातावरण शांत सा हो गया था। यह देखकर ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल से जल छिड़का। उन जलकणों के पड़ते ही पेड़ों से एक शक्ति उत्पन्न हुई जिनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक थी। उनके तीसरे हाथ में माला और चौथा हाथ वरद मुद्रा में था। जैसे ही उस देवी ने वीणा की मधुर तान छेड़ी सृष्टि की प्रत्येक वस्तु को आवाज मिल गई। इसलिए इन्हें देवी सरस्वती के रूप में नामित किया गया।
चूंकि इस दिन माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी थी। इसलिए बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाने लगी।
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