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आज अक्षय तृतीया पर मां लक्ष्मी को इन चीजों का लगाएं भोग, लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने का मंत्र

आज अक्षय तृतीया का पावन पर्व मनाया जाएगा। इसे हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त माना जाता है जिसका अर्थ है कि बिना मुहूर्त विचार के कोई भी शुभ मांगलिक कार्य कर सकते हैं।
 

लक्ष्मी जी को इन चीजों का लगाएं भोग

लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने का मंत्र

लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने का मंत्र

श्री लक्ष्मी महामंत्र

आज अक्षय तृतीया का पावन पर्व मनाया जाएगा। इसे हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त माना जाता है जिसका अर्थ है कि बिना मुहूर्त विचार के कोई भी शुभ मांगलिक कार्य कर सकते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी के साथ-साथ गणेश जी और कुबेर महाराज की पूजा करने का विधान है। इस दिन सोना, चांदी खरीदना बेहद शुभ माना जाता है। इससे जातक के धन में वृद्धि होती है। 

इस बार अक्षय तृतीया बेहद खास होने वाली है क्योंकि इस बार शुक्रवार के दिन अक्षय तृतीया  मनाई जाएगी। हिंदू धर्म में शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी को समर्पित है। इस दिन देवी की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दौरान आप मां लक्ष्मी को उनके पसंदीदा भोग से प्रसन्न कर सकते हैं। इसी कड़ी में आइए मां देवी के पसंदीदा भोग को जान लेते हैं।


लक्ष्मी जी को इन चीजों का लगाएं भोग

 
अक्षय तृतीया पर मां लक्ष्मी को बताशे का भोग लगा सकते हैं। माना जाता है कि मां लक्ष्मी को इसका भोग लगाने से प्रसन्न किया जा सकता है।
अक्षय तृतीया पर आप सिंघाड़े का भोग लगा सकते हैं। यदि सिंघाड़ा न मिले, तो इसके आटे से मिष्ठान बनाकर इसका भोग लगा सकते हैं।
मां लक्ष्मी की पूजा में देवी को मखाने की खीर का भोग लगा सकते हैं।
इस दौरान मां देवी को पान का भोग लगा सकते है।


लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने का मंत्र


ऊँ महालक्ष्म्यै नमो नमः । ऊँ विष्णुप्रियायै नमो नमः ।।
ऊँ धनप्रदायै नमो नमः । ऊँ विश्वजन्नयै नमो नमः ।।


लक्ष्मी जी का बीज मंत्र


ऊँ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नम:।।


श्री लक्ष्मी महामंत्र


ऊँ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।


सुख-समृद्धि के लिए मंत्र


या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी ॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी। 
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥

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