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ऐसा अनूठा मंदिर जहां होती है महादेव के पैर के अंगूठे की पूजा, दर्शन मात्र से तर जाते हैं भक्त

भोलेनाथ का एक प्राचीन व अनूठा मंदिर राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू में स्थित है जहां भोलेनाथ पैर के अंगूठे की पूजा होती है 

 

भोलेनाथ का एक प्राचीन व अनूठा मंदिर राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू में स्थित है जहां भोलेनाथ पैर के अंगूठे की पूजा होती है और माना जाता है कि यहां भक्त सच्चे मन से जो भी मांगता है उसकी वह मनोकामना महादेव पूरी करते हैं और इस मंदिर से कोई खाली हाथ नहीं जाता। 

सावन के महीना चल रहा है जो भगवान शिव को समर्पित है। इस पूरे माह भोलेनाथ की पूजा की जाती है, व्रत रखे जाते हैं और कई उपाय किये जाते हैं जिससे कि हमारे संकट दूर हो और हमें मनोवांछित फल का वरदान मिले। वहीं सावन के महीने में भगवान शिव के मंदिरों के दर्शन व पूजन करके भी भक्तजन धन्य होते हैं। यहां यह जानना जरूरी है कि सावन में महादेव के प्राचीन मंदिरों के दर्शन से अधिक पुण्यफल प्राप्त होता है।

भोलेनाथ का एक प्राचीन व अनूठा मंदिर राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू में स्थित है जहां भोलेनाथ पैर के अंगूठे की पूजा होती है और माना जाता है कि यहां भक्त सच्चे मन से जो भी मांगता है उसकी वह मनोकामना महादेव पूरी करते हैं और इस मंदिर से कोई खाली हाथ नहीं जाता। 

 बहुत कम लोग जानते हैं कि इस मंदिर के वजह से ही माउंट आबू को अर्धकाशी के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा भी यहां भगवान शिव के कई छोटे-बड़े मंदिर स्थित है। भोलेनाथ का यह अनूठा मंदिर अचलेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है औ यहां दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं। सावन और शिवरात्रि पर तो यहां भक्तों का मेला लग जाता है। माउंट आबू अरावली पहाड़ियों का सबसे ऊंचा शिखर है जो हिंदुओं के साथ-साथ जैन समुदाय के लोगों का भी तीर्थ स्थान है। जंगली वनस्पतियों के बीच यह पहाड़ी क्षेत्र राजस्थान की तपती गर्मी के बीच आराम देने का काम करता है।


अचलेश्वर महादेव मंदिर 

माउंट आबू से लगभग 11 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में अचलगढ़ की पहाड़ियों पर अचलगढ़ के पास स्थित है अचलेश्वर महादेव मंदिर। अब तक आपने कई ऐसे मंदिरों के दर्शन तो किये होंगे जहां भगवान शिव की मूर्ति या फिर शिवलिंग की पूजा होती है पर यहां इस अनूठे मंदिर में शिवजी के पैर के अंगूठे की पूजा होती है। इसके अलावा यहां भगवान शिव का विशेष जलाभिषेक भी किया जाता है। स्थानीय निवासियों के अनुसार यह जल बहुत ही खास होता है जो भगवान शिव को चढ़ाया जाता है। 

यह जानकर सहज ही जिज्ञासा होती है कि आखिर शिवजी के पैर के अंगूठे की पूजा क्यों होती है? आखिर क्या है इसका कारण ..तो आइये यहां मंदिर से जुड़ी रोचक जानकारी से आपको अवगत कराते हैं .....

lord shiva temple

यहां की गुफाओं में निवास करते हैं भोलेनाथ 

माना जाता है कि माउंट आबू की गुफाओं में पहाड़ियों की गुफाओं में भोलेनाथ स्वयं निवास करते हैं। और जिस भक्त की प्रभुभक्ति से भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं उन्हें साक्षात दर्शन देते हैं। स्कंद पुराण (अर्बुद खंड) के अनुसार भगवान शिव और विष्णु अर्बुद पर्वत की सैर करते हैं। इसलिए आपको यहां भोलेनाथ की पूजा करने वाले साधु-संत इन पहाड़ियों में जरूर दिख जाएंगे।  भगवान शिव को समर्पित अचलेश्वर महादेव मंदिर से हिन्दू लोगों की गहरी आस्था जुड़ी है। इसलिए यहां सोमवार और खास मौको पर श्रद्धालुओं का भारी जमावड़ा लगता है।

मंदिर से जुड़ी है ये पौराणिक कथा 

पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां के अर्बुद पर्वत का नंदीवर्धन अपनी जगह से अस्थिर हो गया था जिससे दूर कैलाश पर्वत पर बैठे शिवजी की तपस्या बाधित हो गई थी, इस पर्वत पर नंदी गाय भी थी। इसलिए पर्वत और नंदी को बचाने के लिए भगवान शिव ने अपने अंगूठे से इस हिलते पर्वत को अपनी जगह पर बैठा दिया था। इसलिए यहां भगवान शिव की पूजा उनके अंगूठे के रूप में होती है।

इसी अंगूठे के नीचे एक शिवलिंग भी स्थित है। मान्यता है कि अंगूठे ने ही पूरे माउंट आबू पर्वत के हिस्से को थाम रखा है, जिस दिन अंगूठे का निशा गायब हो जायेगा उस दिन माउंट आबू का पहाड़ ख़त्म हो जाएगा।

achaleshwar temple abu

रंग बदलता है शिवलिंग 

कहते हैं कि अंगूठे के नीचे स्थित शिवलिंग दिन में 3 बार अलग-अलग रंगों में दिखाई देता है। सुबह ये शिवलिंग लाल दिखाई देता है। दोपहर में केसरिया और रात में काला दिखता है।

मंदिर में स्थित है एक रहस्यमयी कुंड

इस मंदिर में शिव जी के अंगूठे के नीचे एक प्राकृतिक कुंड है। ये कुंड बहुत ही रहस्यमयी है। इस कुंड में कितना भी पानी डाला जाए, ये भरता नहीं है। कुंड से पानी कहां जाता है, ये एक रहस्य है।

मंदिर क्षेत्र में द्वारिकाधीश जी का मंदिर भी है। इनके अलावा भगवान के विष्णु दशाअवतार दर्शाती प्रतिमाएं भी यहां स्थापित हैं।

मंदिर के पास अचलगढ़ किला है। ये किला अब खंडहर हो चुका है। इस किले को परमार राजवंश ने बनवाया था। बाद में महाराणा कुंभा ने इसका जिर्णोद्धार करवाया था।

पंचधातु से बनी है शिव की मूर्ति 

इस मंदिर में स्थित महादेव की मूर्ति पंच धातुओं से बनी है। जहां शिव की मूर्ति है वहां उनके पैर के अंगूठे के निशा है। जिसकी पूजा-अर्चना होती है। मंदिर में प्रवेश करते ही पंच धातु की बनी नंदी की एक विशाल प्रतिमा है, जिसका वजन चार टन है। मंदिर की बायीं बाजु की तरफ दो कलात्मक खंभो का धर्मकांटा बना हुआ है।


 

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