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सूर्य षष्ठी 27 अक्टूबर को, इस बार बनेगा दुर्लभ रवि योग का संयोग

इस दिन लहसुन-प्याज जैसे तामसिक पदार्थों का पूर्ण त्याग किया जाता है और केवल भात व कद्दू की सब्जी का सेवन किया जाता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य शरीर और मन दोनों की शुद्धि है।
 

27 अक्टूबर को मनाया जाएगा सूर्य षष्ठी पर्व

रवि योग का शुभ संयोग बना पर्व विशेष

नहाय-खाय से शुरू होगा व्रत का पहला चरण

लोक आस्था का महापर्व डाला छठ या सूर्य षष्ठी इस वर्ष 27 अक्टूबर को पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया जाएगा। भगवान भास्कर की उपासना और आराधना को समर्पित यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस बार का पर्व विशेष इसलिए भी है क्योंकि इस अवसर पर रवि योग का शुभ संयोग बन रहा है, जो सूर्य उपासना की महिमा को और अधिक बढ़ा देगा।

ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार सूर्य षष्ठी पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से 25 अक्टूबर को होगी। यह पर्व चार दिनों तक चलता है और प्रत्येक दिन का अपना धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व होता है। पहले दिन घरों की पूरी सफाई कर स्नानादि के बाद भक्त सात्विक भोजन करते हैं। इस दिन लहसुन-प्याज जैसे तामसिक पदार्थों का पूर्ण त्याग किया जाता है और केवल भात व कद्दू की सब्जी का सेवन किया जाता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य शरीर और मन दोनों की शुद्धि है।

दूसरे दिन 26 अक्टूबर को खरना मनाया जाएगा। इस दिन व्रती दिनभर निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद गुड़ और चावल से बनी खीर व रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना के बाद ही मुख्य व्रत की शुरुआत होती है।

तीसरे दिन 27 अक्टूबर को षष्ठी तिथि पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। व्रती महिलाएं बांस की सूप डालियों में ऋतुफल, नारियल, ईंख, मिष्ठान आदि रखकर नदी, तालाब या पोखरे के किनारे सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करती हैं। यह दृश्य लोक आस्था और श्रद्धा का अद्भुत संगम होता है।

रातभर भजन-कीर्तन और जागरण के बाद चौथे दिन 28 अक्टूबर की सुबह अरुणोदय काल में भगवान भास्कर को दूसरा अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा।

वैदिक मान्यताओं के अनुसार छठ व्रत संतान सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह व्रत केवल महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी समान श्रद्धा से करते हैं। छठ में भगवान सूर्य की दोनों पत्नियों उषा और प्रत्युषा के साथ छठी मइया की पूजा होती है।

धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि माता कुंती ने द्वापर युग में अपने पुत्रों के कल्याण के लिए यह व्रत किया था। वहीं त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने पर माता सीता सहित इस व्रत का पालन कर रामराज्य की स्थापना की थी।

सूर्योपासना की यह परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। सूर्य देव ऊर्जा के परम स्रोत हैं और संपूर्ण सृष्टि उनके प्रकाश से संचालित होती है। इसलिए सनातन धर्म में सूर्य देव को प्रत्यक्ष देवता कहा गया है।

यह पर्व सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। छठ व्रत में शरीर, जल और सूर्य की समन्वित साधना होती है, जो मनुष्य के तन और मन दोनों को शुद्ध करती है। यही कारण है कि सूर्य षष्ठी आज भी लोक आस्था का सबसे प्राचीन और पवित्र पर्व माना जाता है।

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