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धनु, मकर, कुंभ, मिथुन और तुला राशि वाले शनि जयंती पर करें ये उपाय, कम होगा शनि का अशुभ प्रभाव

tds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_showtds_top_like_show ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर शनि जयंती मनाई जाती है। इस दिन पूजा-अर्चना करने से शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। 10 जून 2021 को शनि जयंती मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान शनि का जन्म हुआ था। ज्योतिष में शनि को पापी और क्रूर ग्रह कहा जाता है। शनि
 
धनु, मकर, कुंभ, मिथुन और तुला राशि वाले शनि जयंती पर करें ये उपाय, कम होगा शनि का अशुभ प्रभाव

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ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर शनि जयंती मनाई जाती है। इस दिन पूजा-अर्चना करने से शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। 10 जून 2021 को शनि जयंती मनाई जाएगी।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान शनि का जन्म हुआ था। ज्योतिष में शनि को पापी और क्रूर ग्रह कहा जाता है। शनि के अशुभ प्रभावों से व्यक्ति को जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगने पर शनि अशुभ फल देते हैं। किसी एक राशि पर शनि की साढ़ेसाती साढ़े-सात वर्षों तक और शनि की ढैय्या ढाई वर्षों तक रहती है। ग्रहों में शनि सबसे हल्की गति से चलते हैं।

शनि एक राशि में ढाई वर्षों तक विराजमान रहते हैं। इस समय धनु, मकर, कुंभ पर शनि की साढ़ेसाती और मिथुन, तुला राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। इन जातकों को इस समय शनि को प्रसन्न करने के लिए उपाय करने चाहिए।

शनि देव को प्रसन्न करने का सबसे आसान उपाय है दशरत कृत शनि स्तोत्र का पाठ। धार्मिक कथाओं के अनुसार राजा दशरथ ने शनि देव को प्रसन्न करने के लिए इस स्तोत्र की रचना की थी। ऐसा माना जाता है इस स्तोत्र का पाठ करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं।

  • दशरथ कृत शनि स्त्रोत

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।

तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।

देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।

प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।

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